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भोजपुरी के ई दुनो फिलिम देखीं, रउवा लोगन के पूरा स्टीरियोटाइप टूट जाई

कौनो भाषा अउरी ओमे रचल गईल साहित्य, संगीत अऊर सिनेमा ऊ संस्कृति आ समाज के परिचय देले जवना समाज में ऊ भाषा बोलल जाला। दुर्भाग्यवश भोजपुरी सिनेमा आ गीत -संगीत के वर्तमान छवि अश्लील, भौंडा, स्तरहीन मनोरंजन के साधन के रूप में बा। चाहे संगीत के बात क लिहल जाव, चाहे सिनेमा के बात क लिहल जाव। अऊर इहे कारन बा कि ई सब मिलाके भोजपुरी भाषी समाज के एगो छद्म तस्वीर पेश करेला जवन ए समय लगभग सर्व स्वीकृत हो चुकल बा।

एकर सबसे बड़ कारन बा अइसने मनोरंजन पेश करे वाला लोगन के बाजार प कब्जा। जल्दी पईसा आ नाम कमावे के लोभ के कारन कुछ लोग इहे ट्रेंड प चले लागल आ इ भाषा के स्वस्थ स्वरुप अउरी इतिहास के लगभग मिटा देवे के कोशिश करे लागल। पढ़ल-लिखल भोजपुरी भाषी लोग इ सब के गन्दा कही के कट लिहल ज्यादा आसान बुझल आ ए भाषा के छवि सुधारे के प्रति आपन जिमवारी ना बूझल बल्कि खुदे आपन पहचान बहरी में छुपा के घुमे लागल।

ए निराशा जनक माहौल में कुछ संस्था अउरी लोग अईसनो बा जे संसाधन आ तमाम तरह के सुविधा के कमी होखला के बावजूद भी भोजपुरी में अश्लील सिनेमा अउरी संगीत के खिलाफ स्वस्थ आ गुणवत्ता पूर्ण सिनेमा-संगीत उपलब्ध करावे के कोशिश करत बा। एही कोशिश के क्रम में ए साल दुगो अईसन शार्ट फिलिम भोजपुरी में आइल ह जेकर चर्चा कइल एजा हम जरुरी बुझातानी।

साल 2017 के अंत में भोजपुरी में एगो शार्ट फिल्म देखे के अवसर मिलल ह ‘ललका गुलाब’। पनरह मिनट के समय में इ फिलिम ना सिर्फ एगो जीवन दर्शन के स्थापित करत बा बल्कि भोजपुरी क्षेत्र के संस्कृति से बहुत इमानदारी से परिचय करावत बा।

फिल्मकार एगो उपांत पर खड़ा व्यक्ति के मन: स्थिति के देखावे के प्रयास करत बा जेकरा स्मृति के केंद्र में ओकर गाँव-जवार के मूल्य अउरी याद बा आ सामने अपना संस्कृति से दूर अथाह सम्भावना के समुन्द्र बा। फिल्म के माध्यम से रउवा लोग आदमी अउर औरत के आपसी सम्बन्ध के दूगो कोंड़ देख सकेनी जा। एक ओरी महिला-पुरुष में वृद्धावस्था तकले एतना प्रेम पूर्ण वैवाहिक सम्बन्ध के देखावल गईल बा त दूसरा ओरी महिला-पुरुष के घर के काम में भागीदारी के जवन पैटर्न देखे के मिलेला उहे एईजो देखावल गईल बा, पर्दा के साथ।

त कुल मिलाके स्त्री-पुरुष के सामाजिक स्थिति, आ घरेलू स्थिति के जवन पैटर्न पावल जाला ओकर प्रदर्शन ऐ फिलिम में बड़ा ईमानदारी से कईल गईल बा, अब ओपर आपन अलग-अलग सिध्दांत के हिसाब से, फिलिम देखला के बाद रउवा सब जजमेंटल हो सकेनी जा। एगो आउरी बहुत खास पहलू जवन हमके ऐ फिलिम में देखे के मिलल, ऊ ह बचपन आ वृद्धावस्था के मध्य एगो संवाद स्थापित करे के कोसिस, जवन की ए दौर में कही खो गइल बा। ए वजह से अलग-अलग तरिका के सामाजिक समस्या उपरियात रहता। फिलिम के ज्यादातर संवाद जवन बा उ दादा आ पोता के बीच में होत देखावल गइल बा जेमे दादा आपन मन: स्थिति के आपना पोता से बहुत सहजता से बाँटत देखावल गईल बा।

कुल मिलाके विषयवस्तू के लिहाज से देखल जाव त ‘ललका गुलाब’ जरुर देखे वाला फिलिम के श्रेणी में बावे।
संवाद, कहानी में रोचकता आ ओकर प्रस्तूतिकरण में कसावट, बैकग्राउंड के संगीत, अभिनय, इ कुल के हिसाब से ‘ललका गुलाब’ के उत्कृष्ट फिलिम के श्रेणी में रखल जा सकेला। एमे रउवा सब के कौनो चीज बेसी ना बुझाई और नाही मिसिंग बुझाई।

अमित मिश्र जी के बनावल इ फिलिम ह अउर भोजपुरी में इ उनकर पहिला प्रयास ह। ‘आखर’ के प्रस्तुति के रूप में भोजपुरी में स्वस्थ, साफ़-सुथरा मनोरंजन देवे के प्रयास ह।

इ फिलिम बहुत लोग के इ भ्रम के तोड़ी की भोजपुरी में खाली ओछा विषय वस्तू पर ही फिलिम बनेला, आ भौंडापन से ओकरा के प्रदर्शित कईल जाला। रउवा सब के ‘ललका गुलाब’ के एक बार जरुर देखे के चाही ताकि ओकर सुगंध न सिर्फ भोजपुरिया समाज में बल्कि ओकरा बहरो फईले।

साल 2017 में ही एगो औरी भोजपुरी में शार्ट फिलिम देखे के मिलल ह ‘कोहबर’। फिलिम अपना कहानी आ संवाद के माध्यम से आदमी अउर औरत के समाजिक स्थिति, निर्णय लेवे के अवसर में आदमी आ औरत के भागीदारी के सवाल के खंगालत बा।

फिलिम समाज में बनल कईगो स्टीरियोटाइप पर सवाल खड़ा करत बा जवन ढेर पढ़ल-लिखल आ कम पढ़ल-लिखल दुनो समाज में लउक जाला।

फिलिम में ‘नारीवादी’ आधार वाक्य देके ‘मानववादी’ निष्कर्ष पर पहुचे के कोशिश कइल गइल बा लेकिन कईगो संवाद में इहो बुझाई की ई नारीवादी दर्शन के प्रस्तुत कईला के बावजूदो कईगो स्टीरियो टाइप के अबो पकड़ले बा। खैर ‘नारीवाद’ के आपन-आपन समझ के आधार पर ऐ फिलिम के विषयवस्तू बहस के एगो मुद्दा उठावता जवन आज के समय में अपना देश में प्रासंगिक बा आ जरुरी बा।

एगो बात जवन फिलिम देखला प सबसे ज्यादा महसूस होई ऊ एकर स्वाभाविकता, सहजता आ ओरिजिनल होखल, खास तौर प भाषा के आधार प। हम जेतना भी ए समय में बालीवुड के हिंदी फिलिम देखले बानी ओमे प्रयोग कइल गईल भोजपुरी आ ओकर टोन हमके नकली भा कही सकेनी की आर्टिफीसिअल बुझाइल बा। जवना से हम अपना के जोड़ ना पावत रहनी ह। ई एगो फिलिम के बड़ खासियत बा की रउवा के ई बहुत सहज लागी चाहे भाषा के आधार प, चाहे दृश्य के आधार प, चाहे लोकगीतन के प्रयोग के आधार प।

फिलिम के एगो अउरी सबसे बड़ मजबूती बा कलाकारन के अभिनय। फिलिम के मेन पात्र के अभिनय ऐतना सहज लागी की रउवा में अपना इर्द-गिर्द रहे वाला अईसन व्यक्तित्व के खातिर संवेदना जगावे में सफल हो जाई।

फिलिम उज्जवल पाण्डेय जी के बनावल आ ‘आरोहन फिल्म्स’ के प्रस्तुति ह जवन मात्र एगारह मिनट में ना सिर्फ जरुरी सामाजिक सवालन के उठावता बल्कि कहानी, दृश्य आ संवाद के माध्यम से भरपूर मनोरंजनो करता। इ रउवा के हसइबो करी आ गंभीर होके सोचहूँ के मजबूर क दी।

संसाधन आ समय के सीमा के हिसाब से फिलिम कई गो उद्देश्य के पूरा करता आ इहे ए फिलिम के सफलता बा हमरा समझ से। भोजपुरी सिनेमा में वर्तमान में व्याप्त स्तरहीन मनोरंजन के चुनौती देवे के क्रम में देखल जाव त ई फिलिम बहुत महत्वपूर्ण हो जात बिया की एके देखल जाव औउर बाकी लोगन के देखे खातिर प्रेरित कईल जाव। एही से इ दूनो फिलिम के ना सिर्फ देखला के काम बा बल्कि भोजपुरी के स्वस्थ आ स्वच्छ स्वरुप के फेर से पटल प लेआइला खातिर आपन -आपन जिमवारी बूझला के भी काम बा।

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