Site icon Youth Ki Awaaz

एक तरफ भ्रष्टाचार के लिए सरकार को गाली, दूसरी तरफ अपने फायदे के लिए घूस, वाह री जनता

हम लोग रोज़ अखबारों और पत्रिकाओं में पढ़ते हैं कि भ्रष्टाचार बढ़ गया है। फलां अधिकारी ने रिश्वत ली, फलां नेता ने घोटाला किया, फलां मंत्री ने पैसे खाए वगैरह-वगैरह। अधिकांश मामलों में हम लोग सारा दोष नेता, मंत्री या अफसर लोगों पर डाल देते हैं। हमें लगता है कि उनकी वजह से ही हमारे देश का पैसा डूब रहा है या व्यर्थ जा रहा है। लेकिन हम आम जनता तो आम की तरह इतनी मीठी है ना कि कोई चाहकर भी गलत नहीं कर सकता। शायद कुछ ऐसी ही धारणा हम लोगों के मन में बनी हुई है।

पिछले दिनों मेरे बीएड के एग्ज़ाम चल रहे थे, इसलिए एग्ज़ाम देने के लिए घर से पाली (राजस्थान) तक बस में ही आना-जाना पड़ता था। हमारी राज्य सरकार ने महिलाओं के लिए किराये में 33% की छूट दी हुई है, ऐसे में सुमेरपुर से पाली तक का किराया महिलाओं के लिए 60₹ और पुरुषों के लिए 80₹ होता है। फिर भी हम ‘पढ़े-लिखे’ लोग इसे और कम करवाना चाहते हैं।

एक दिन की ही बात है, मेरा एग्ज़ाम था तो मैं बस से पाली जा रही थी। वहीं मेरे बीएड के कुछ साथी जिनमें ज़्यादातर लड़के थे, मेरे साथ ही पाली जाने के लिए बस में चढ़े। जब कंडक्टर आया तो मैंने 60₹ किराया देकर अपना टिकट कटाया, लेकिन मेरे साथी लड़कों ने कंडक्टर को 50-50 ₹ दिए और टिकट नहीं लिया। ऐसा करने पर जब मैंने उनसे सवाल किया तो उन्होंने बताया, “हम रोज़ एग्ज़ाम देने आते हैं और इतना ही पैसा देते हैं। इससे हमारा तो फायदा ही हैं, हम तो रोज़ 50₹ में कंडक्टर को पागल बना कर आना-जाना कर लेते हैं।”

अब देखिये जो लोग हमारे लोकतान्त्रिक देश के भावी अध्यापक बनने जा रहे हैं, उन्हें लगता है कि चन्द रुपयों के लिए वो कंडक्टर को रोज़ ‘पागल’ बनाते हैं। लेकिन शायद वो इस सच्चाई से अंजान हैं कि जो पैसे बिना टिकट लिए उन्होंने दिए वो तो उस कंडक्टर की जेब में ही गए ना? तो ये है हमारी ‘पढ़ी-लिखी’ जनता!

धन्य हैं हम ऐसे ‘शिक्षित’ भावी अध्यापक पाकर! जब हमारे देश के ‘आम’ लोग ही हमारे देश का पैसा डुबोने पर तुले हैं तो ऐसे में नेता, मंत्री या अधिकारी लोग इस भ्रष्टाचार की गंगा में नहा लेते हैं तो इसमें भी क्या गलत है? बड़े ही शर्म की बात है कि लोग चंद रुपये बचाकर समझते हैं कि हमने कोई बड़ा तीर मार लिया। इस तरह के लोग थाली में पड़े उस बैंगन की तरह हैं जो कभी इधर बिक जाते हैं तो कभी उधर।

हम ही लोग कहते हैं कि टैक्स बढ़ गया, कमबख्त सरकार पैसा कमाने के चक्कर में टैक्स लगा कर जनता को लूट रही है, लेकिन जो यह ‘पढ़ी लिखी’ जनता उन्हें आगे से होकर ही रिश्वत दे रही है उसका क्या? खैर अब जो जैसा भी हो बस समझ जाए, समझदारी से अपने अधिकारों का सही उपयोग करे और एक नागरिक होने के अपने कर्तव्यों का पालन करें। अपने देश को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में मदद करें, ना कि चंद रुपये बचाने की खातिर देश और सरकार का नुकसान करें।

Exit mobile version