Site icon Youth Ki Awaaz

साइबर क्राइम का शिकार होने से बचना है तो जानकारी ही उपाय है

वर्तमान समय में जब बात कंप्यूटर आधारित तकनीक की हो रही हो तो ऐसे में उसे अपनाना और उसका उचित प्रयोग करना कई चुनौतियां भी साथ लाता है। **संसद के शीतकालीन सत्र में इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना राज्य मंत्री द्वारा एक प्रश्न के जवाब में ये बात सामने आई- भारतीय कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (CERT-IN) को प्राप्त सूचना और छानबीन के अनुसार, “साल 2014, 2015, 2016 और 2017 (नवंबर तक) के दौरान क्रमशः 44679, 49455, 50362 और 27482 साइबर सुरक्षा संबंधित मामले सामने आए हैं।” इनमें वेबसाइट इंट्रूजन, फिशिंग और रैनसमवेयर आदि से संबंधित मामले जुड़े हैं, जबकि CERT-IN के पास साइबर हमलों में भारतीय कंपनियों द्वारा उठाई गई हानि का कोई भी विवरण नहीं है।

किसी भी देश के लिए ये एक गंभीर मामला है और भारत में ऐसे मामले अब आम हो गए हैं। पिछले दिनों केरल के एक मर्केंटाइल सहकारी बैंक को ऐसे ही एक साइबर हमले का सामना करना पड़ा, जबकि जून के महीने में ही वानाक्राई रैनसमवेयर से दक्षिण रेलवे के कार्यालय के तक़रीबन छः कंप्यूटर प्रभावित हुए थे। अन्य साइबर हमलों की बात करें तो यूनियन बैंक, एक्सिस बैंक, यस बैंक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में  डाटा चोरी के मामले इनमें शामिल हैं।

जहां तक देश की नीति का प्रश्न है तो साइबर सुरक्षा के लिए हमारे पास एक राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति है जो 2013 में लाई गई थी, जबकि  राष्ट्रीय सूचना सुरक्षा नीति और दिशानिर्देश (NISPG) 2014 के तहत भी ऐसे मामलों को देखा जाता है। जहां तक साइबर सुरक्षा के मामलों में संगठन की बात है तो भारतीय कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (CERT-IN), ITTE (इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय) के तहत और राष्ट्रीय क्रिटिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर सूचना सुरक्षा केंद्र (NCIIPC) राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन के तहत काम करता है, जिनका  कार्य महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की रक्षा करना है।

इस सिलसिले में गृह मंत्रालय कुछ आपराधिक मामलों में अपने स्तर से भी जांच करता है, जबकि कुछ मामलों में साइबर सुरक्षा से जुड़े लोगों से मदद भी ली जाती है। जहां तक राज्यों का प्रश्न है तो ज़्यादातर मामले राज्य स्वयं ही देखते हैं। ऐसे में साइबर सुरक्षा के मामलों में एक भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है कि साइबर क्राइम के मामलों में किससे संपर्क किया जाए, ताकि किसी भी वित्तीय या अन्य हानियों को समय रहते रोका जा सके।

साइबर क्राइम के व्यक्तिगत मामलों में अक्सर देखा गया है कि पीड़ित को स्थानीय पुलिस द्वारा संबधित विभाग में भेज दिया जाता है, जबकि उचित कार्यबल न होने के चलते मामलों का निपटारा शीघ्र नहीं हो पाता है और पीड़ित को अधिकतम हानि उठानी पड़ती है। सच्चाई तो ये है कि देश में कई राज्य है जहां ऐसे मामलों में उचित व्यवस्था का अभाव है। साइबर अपराध से जुड़े कई मामलों में जागरूकता के अभाव में लोग पुलिस के पास नहीं जाते हैं। कई मामलों में लोगों को ऐसे किसी मामले की जानकारी काफी समय बाद होती है, जिसमें अपराधी को पकड़ना काफी मुश्किल हो जाता है।

विगत सालों में केंद्र सरकार द्वारा कुछ ऐसे अहम फैसले लिए गए हैं, जिन्होंने साइबर सुरक्षा को पहले से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण बना दिया है। जैसे आधार कार्ड के डाटा का सुरक्षा का मामला। इस संबंध में सरकार के नियम के अनुसार बैंक खातों को आधार के साथ लिंक करना अनिवार्य कर दिया गया है। ऐसे में आधार कार्ड से संबंधित डाटा की सुरक्षा सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती भी है। दूसरी तरफ सरकार द्वारा नोटबंदी के बाद ऑनलाइन हस्तांतरण को बढ़ावा दिया है और लोगों में इसके लिए जागरूकता भी फैलाई जा रही है, लेकिन ये भी सत्य है कि इससे साइबर अपराध के मामलों में भी वृद्धि हुई है।

आज के समय में बैंकिंग क्षेत्रों में साइबर सुरक्षा का प्रश्न बहुत अहम हो गया है। उदाहरण के लिए एक घटना याद कीजिए, 2016 में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को 6 लाख डेबिट कार्ड बंद करने पड़े थे जो एक चिंता का विषय है। वर्तमान में ये बहस का मुद्दा है कि क्या बैंकिंग, टेलीकॉम और अन्य क्षेत्रों के लिए एक अलग कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम होनी चाहिए ताकि साइबर सुरक्षा के मामलों से अधिक कारगर तरीके से निपटा जा सके।

आज के समय में टेलीकॉम आधारित कम्पनियों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है और इनका प्रवेश बैंकिंग के क्षेत्र में भी हो चुका है। ऐसे में इन्हे भी साइबर सुरक्षा के दायरे में लाने की सख्त ज़रूरत है।

ये बात तो तय है कि साइबर सुरक्षा के मामलों में हमें एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता है, जिसमें लोगों में जागरूकता फैलाना एक अहम हिस्सा है। हमें समय-समय पर लोगों को साइबर सुरक्षा और साइबर अपराध के बारे अवगत कराना होगा। सरकार को कई संगठनात्मक विकास करने होंगे ताकि साइबर अपराध के मामलों में लोगो में भ्रम की स्थिति न पैदा हो और ऐसे मामलों का निपटारा शीघ्र किया जा सके।

** जानकारी का श्रोत- http://164.100.47.190/loksabhaquestions/qhindi/13/AU1586.pdf

Exit mobile version