झारखण्ड: कोडरमा ज़िला मुख्यालय से महज़ 12 किलोमीटर दूर और प्रखंड मुख्यालय से 3 किलोमीटर की दूरी पर मुख्य सड़क पर बसा डोमचांच दक्षिणी पंचायत का लाठियोबर गांव में दलित समुदाय के (भुइया और तुरी जाति) के लोग निवास करते है। यहां के 18 घरों में उनके लगभग 20 परिवार रहते हैं। यह वार्ड नंबर 12 है।
सरकार के पंचायती राज विभाग की माने तो पंचायती राज व्यवस्था के अनुसार पंचायत को हर वित्तीय वर्ष में आबादी और क्षेत्रफल के आधार पर पंचायत के विकास के लिए राशी का आवंटन करना होता है। इस राशि को पंचायत के वार्ड सदस्यों की सहभागिता से ग्राम सभा के निर्णय द्वारा खर्च किए जाने का प्रावधान है, लेकिन इस वार्ड की हालत ही कुछ और ही है।
हम आपको दिखाते हैं कि यहां की ज़मीनी हकीकत क्या है? डोमचांच दक्षिणी के लाठियोबर गांव में 13 जनवरी 2018 को एक महिला रीना देवी की मौत कथित रूप से ठंड के कारण हो गई। इस मामले ने मानवाधिकार जन निगरानी समिति की टीम जब पड़ताल करने पहुंची तो कई चौंकाने वाले तथ्य उभर कर सामने आए।
रीना देवी के पति प्रकाश भुइया के अनुसार वह एक दिहाड़ी मज़दूर है और जिस दिन मजदूरी करता है उसी दिन एक शाम ही घर का चूल्हा जलता है। आगे पूछने पर वह बताते हैं कि उनकी पत्नी रीना देवी गर्भ से थी। उस समय सिर्फ हम काम पर जाते थे वह घर में ही रहती थी। इस तरह धीरे-धीरे उसके प्रसव का दिन नजदीक आया और उसका प्रसव गांव से 3 किलोमीटर दूर रेफरल अस्पताल डोमचांच में 16 सितम्बर 2017 को समय सुबह 6:28 बजे हुआ। जन्म के समय बच्चे का वज़न 3 किलोग्राम था।
आंगनबाड़ी के रजिस्टर में नहीं दर्ज है उसका नाम
पर इस दौरान रीना देवी का नाम आंगनबाड़ी के रजिस्टर में दर्ज नहीं था और उसे आंगनबाड़ी से किसी भी तरह का कोई सुविधा नहीं मिली थी। पोषाहार के पैकेट के बारे में पूछने पर वह बताते हैं कि वह कैसा होता है वह जानते भी नहीं हैं। मतलब साफ है कि उन्हें आंगनबाड़ी से किसी तरह का कोई लाभ नहीं मिल रहा था।
आवास पूरा जर्जर था, जिस कारण घर के बाहर सोती थी रीना
प्रकाश भुइया आगे बताता है की मेरा घर पूरी तरह जर्जर हालत में है और कई बार घर का छत टूटकर मेरी पत्नी पर गिर चुकी थी। इस डर से मेरी पत्नी घर के बाहर सोती थी की कही बेटा पर गिर गया तो वह मर जायेगा इस कारण एक शॉल लपेट कर खुद और अपने बच्चे को बाहर सुलाती थी।
पैसे के आभाव में इलाज के लिए नहीं ले गए रांची
इस तरह लगातार ठंड में सोने की वजह से वह 4 दिनों से बीमार थी और इस बीमारी के कारण उसको इलाज के लिए सदर अस्पताल कोडरमा ले जाया गया। वहां से डाक्टर ने उन्हें रांची ले जाने को कहा, लेकिन आर्थिक बदहाली के कारण प्रकाश अपनी पत्नी को नहीं ले जा पाए और फिर इसके बाद पार्वती की मृत्यु हो गई।
मेरी पत्नी के मौत पर मिला 50 किलो चावल
प्रकाश बताते हैं, “मेरी पत्नी की मौत के बाद इस गांव में कई आला अधिकारी पहुंचे और आनन-फानन में हमें 50 किलो चावल दिए और मेरे बच्चों रूपा कुमारी (5 साल) , आकाश कुमार (3 साल), विकास कुमार (2 माह) को स्वेटर दिए। इसके अलावा गांव में कई अन्य लोगों को भी कंबल बांटे गए, उसके बाद वो लोग चले गए।”
प्रखंड कार्यालय में दो तीन पेपर पर हस्ताक्षर करवाए
प्रकाश बताते हैं, “हमें डोमचांच प्रखंड कार्यालय बुलाया गया जहां दो तीन पेपर पर हमसे हस्ताक्षर लिए और हमें घर भेज दिया गया। वह पेपर किस चीज़ के थे, हमें नहीं पता। उन्होंने बताया कि जो चावल दिए हैं और जो राशनकार्ड बनेगा उसके लिए वो सब कागज़ हैं।”
नहीं था राशन कार्ड और नहीं था जॉब कार्ड
प्रकाश आगे बताते हैं, “हमारे पास राशन कार्ड नहीं था। इस बारे में वार्ड सदस्य मुकेश से कई बार शिकायत की थी कि मेरा राशन कार्ड बना दो।” मनरेगा के तहत बनने वाले मज़दूर कार्ड के बारे में पूछने पर प्रकाश ने बताया की वह कैसा और कितना बड़ा होता है वो नहीं जानते, आज तक उनका मज़दूर कार्ड नहीं बना है।
घर के दरवाज़े पर ही है चापाकल लेकिन खराब है, गंदे कुएं का पानी उपयोग करते हैं
पीने के पानी के बारे में पूछने पर प्रकाश बताते हैं, “घर के दरवाज़े पर ही चापाकल (हैण्डपंप) है पर वह कई माह से खराब पड़ा है। इस बारे में शिकायत भी की थी। जो सरकारी मिस्त्री बनाने आया था वह पूरे गांव के लोगों से 600 रुपया ले कर चला गया और चापाकल 15 दिन में फिर खराब हो गया। घर के सामने ही एक कुआं है जो बहुत गन्दा है, उसी का पानी हम लोग अन्य घरेलु काम के लिए उपयोग में लाते हैं।”
वार्ड सदस्य मकेश की कोई नहीं सुनता
स्थानीय वार्ड सदस्य मुकेश अपने बयान में यह कहते हैं कि हम प्रखंड और ज़िले के अधिकारियों को कई बार आवेदन दे चुके हैं, पर उनकी कोई नहीं सुनता।
वार्ड सदस्य का पूरा बयान सुने यहां-