सूरज ढ़ल चुका है l मोमबत्तियाँ अपनी पूरी लौ में जल रही हैं l पर रोशन कुछ भी नही l
अंतस का अंधेरा छट नही रहा l
कुछ कराहते प्रश्न जो आज तक गैर महत्वपूर्ण मानकर टाले गए थे, उसी मासूमियत के साथ अपनी नजरअंदाजी पर सुबक कर पूछ रहे हैं l
हमें क्यों नही बताया कि हर अजनबी ‘अंकल’ नही होता l
हमें क्यों नही बताया कि हर व्यक्ति हमारे विनम्र अभिवादन का अधिकारी भी नही होता l
क्यों सिर्फ हमारी कोमलता को सराहा, मासूम बदमाशियों को नही ?
हमें क्यों नही बताया कि कुछ अनुचित की शंका होने पर मदद के लिए अपना पूरा जोर लगाकर चिल्लाना है l विरोध में थप्पड़-मुक्के और दांतों का भी उपयोग करना हैl
क्यों हमेशा बहादुरी की बजाय अहिंसा का पाठ पढ़ाते रहे ??
क्यों PTM में सिर्फ हमारे क्लास टीचर से मिलकर report card पर ही बात की ??? बस कंडक्टर, चपड़ासी, स्वीपर, वाशरुम, play ground पर क्यों नही ????
क्यों सिर्फ home work पर ही बात की, out door पर क्यों नही ???
क्यों नही बताया कि जहाँ से रोज सुबह मैं अपने शरीर का कचरा निकालता हूँ वहाँ कुछ दानवों की दमित इच्छाओं का निकास भी है l
मैं जा रहा हूँ अपना A+++ report card छोड़ कर l
मैं फिर से आऊँगा आपका प्रेम पाने को, जब तक आप ‘बाप’ बनने की कोशिश करना l