साझी संस्कृति और जुल्म के खिलाफ विद्रोह का प्रतीक है, लोहड़ी का त्यौहार
~Gulshan Udham
हर पर्व देखा जाये तो प्रकृति से किसी न किसी तरह जुड़ा रहता है।
वैसे ही लोहड़ी का पर्व भी प्रकृति से जुड़ा हुआ है। ये पर्व सर्द ऋतू के अंत में मनाया जाता हैं। लोहड़ी का त्योहार सर्दियों के जाने और बसंत ऋतु के आने का संकेत माना जाता है। इसलिए किसानों में भी इस पर्व को लेकर भारी उत्साह होता है।
वैसे ही लोहड़ी के पर्व पर गया जाने वाला लोक गीत,
सुन्द्रिये मुंदरिये तेरा कोन बेचारा दुल्ला भट्टी वाला..
पंजाब के robinhood दुल्ला भट्टी की याद में गया जाता है।
जिसके बारे में कहा जाता है, की वे एक विद्रोही था जो मुग़ल शासक अकबर से अपने पिता की मौत का बदला लेना चाहता था।
दुल्ले के पिता को अकबर ने कर (tax) न दिए जाने के कारण मौत के घाट उत्तर दिया था। और दुल्ला भट्टी इसी बात का बदला अकबर से लेना चाहता था। कहा जाता है कि दुल्ले ने कई लड़कियों को अकबर के जुल्मी नवावो की कैद से आजाद करवाया था और फिर खुद पिता बनकर उनका विवाह करवाया था। इसलिए लोगो ने लोकगीतों के जरिये आज तक दुल्ले को याद रखा है।
यूं तो दुल्लाह भट्टी मुस्लिम था लेकिन लोहड़ी का त्यौहार हिन्दू, सिख मुस्लिम, वल्कि पूरा उत्तर भारत सब मिलकर मनाते है। और यही से पता चलता है की भारत में सदियों से विभिन्न धर्मों के लोग मिलजुल कर रहते आये है।
और आज के इस साम्प्रदायिक दौर में ऐसे पर्वो का महत्व और भी बढ़ जाता है।
आयो मिलकर लोहड़ी का पर्व मनाये और विद्रोही दुल्लाह भट्टी को याद करे, जिसने जिसमे जुल्म के विरुद्ध बग़ावत की थी और जुल्म के खिलाफ आवाज़ बुलंद करे।
समय के साथ पर्वो के साथ विभिन्न गाथाएं भी जुड़ती जाती है और साथ में कुछ अजीब प्रथाएं भी कई बार जुड़ जाती है।
हमें इस कुप्रथायो को पर्व से अलग करना देना चाहिए और जो सही है उसे स्वीकार करना चाहिए। वैसे ही हजारों ही हजारों दोस्तो को msg करने से अच्छा है कि कुछ दोस्तों के साथ मिल कर पर्व को मनाये और शहीदों को याद करे व अपने तरीके से पर्व को मनाते हुए खुशियां बांटे।
सुंदर मुंदरिये ! ………………हो तेरा कौन बेचारा, ……………..हो दुल्ला भट्टी वाला, ……………हो दुल्ले घी व्याही, ………………हो सेर शक्कर आई, ……………..हो कुड़ी दे बाझे पाई, ……………..हो कुड़ी दा लाल पटारा, ……………हो
Happy lohri..
Resistance is inevitable..