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सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स को लेनी होगी साइबर बुलिंग कम करने की ज़िम्मेदारी

अभी हाल ही में ट्विटर ने अपनी एक प्रेस वार्ता में बताया कि ‘वैश्विक’ नेताओं के ‘Tweets’ पर कोई पाबन्दी नहीं लगेगी, भले ही वो विवादस्पद बयान दें। अगर आपको लग रहा है कि सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स का ये दोहरापन सिर्फ तथाकथित ‘वैश्विक’ नेताओं के लिए ही दिखता है तो आप गलत हैं। दरअसल सोशल मीडिया के प्लैटसबुक/यूट्यूब आदि ऑनलाइन गुंडागर्दी/बुलीज़ को लेकर बहुत सॉफ्ट रहे हैं और आगे भी इसे लेकर यह सीरियस होते नहीं दिख रहे हैं।

ये ऑनलाइन बुलीज़ की मदद कैसे कर रहे हैं इसे जानने के लिए अपनी एक-दो केस स्टडी सामने रखता हूं-

रोज़ लोगों को ट्रोल होते देख और गंदी-गंदी गालियों को देखने-सुनने के बाद मैंने एक एप्लीकेशन बनाया जो हमारे देश के उन ट्वीट्स को खोज निकाले जो गालियां देते हैं। इसके लिए पहले मैंने अपने देश में दी जाने वाली गालियों की एक लिस्ट बनाई और फिर मैंने एक ट्विटर हैंडल बनाया जो उन ट्वीट्स को सामने लाए जिनमें ये गालियां दी गई हैं।

करीब तीन महीने में इस एप्लीकेशन ने 46000 से ज़्यादा ऐसे ट्वीट्स खोज निकाले और इस बीच बुलीज़ द्वारा की गई अलग-अलग ‘रिपोर्ट्स’ को संज्ञान में लेते हुए ट्विटर ने मेरे ही हैंडल को 5-6 बार ट्वीट करने से ब्लॉक कर दिया, क्यूंकि ऐसे लोगों को लगातार एक्सपोज़ करना ट्विटर के ‘नियम-कानून’ की गठरी में सने हुए किसी नियम को प्रभावित कर रहा था।

वहीं न्यूड फोटोज़ और पॉर्न-मैटेरियल्स को जब मैंने रिपोर्ट किया तो ऐसे कंटेंट को ट्विटर के किसी नियम कानून के मुताबिक गलत नहीं माना गया है।

क्या होता है रिपोर्ट करने के बाद?

जब आप रिपोर्ट करते हैं तो आपकी ये रिक्वेस्ट सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स के पास जाती है, जिसे एग्ज़ीक्यूटिव देखते हैं और एक्शन लेते हैं।

देखने के बाद भी क्यूं नहीं लेते एक्शन?

क्यूंकि वो ‘टर्म्स एंड कंडीशन’ में इसे गलत नहीं मानते, हां आपकी शिकायत निपटे इसलिए ये ज़्यादा से ज़्यादा आपके लिए (जी हां सिर्फ आपके लिए) इसे इनविजिबल कर देते हैं। यानी आप किसी अन्य अकाउंट से इसे देख सकते हैं, यानी कि वो ट्वीट्स आपके सिवा बाकी सब लोग देख सकते हैं। ये कुछ ऐसा ही है कि आपकी आंख बंद करके ये बताया जाए कि रात हो चुकी है।

क्या हैं समाधान?

सभी सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स एक साझा समिति का गठन करें जो ऑनलाइन कानून बनाए और हर 6 महीने में इसकी समीक्षा भी करे। फिलहाल सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स अपने खुद के ही नियम कानून बनाते हैं और उस पर अमल करते हैं। ज़रूरी यह है कि एक सर्वमान्य समिति टर्म्स को परिभाषित करे और उन्हें सभी प्लैटफॉर्म्स पर लागू करवाए।

सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स शब्दों को फिल्टर करने में सक्षम हैं, ऐसे में सबसे बेहतर तरीका है गालियों की एक डिक्शनरी मेंटेन करना। किसी टेक्स्ट में इन गालियों के मिलते ही बिना कॉन्टेक्स्ट देखे इन्हें डिलीट किया जाना, साथ ही इसकी हिस्ट्री भी मेंटेन करना ताकि कोई बार-बार ऐसा करे तो इसे साक्ष्य के तौर पर प्रस्तुत करके उसे वॉर्न किया जा सके। यह साझा रूप से सभी सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स को वितरित हों जो इसके अंतर्गत आते हैं।

गालियों की जगह उनका ‘सब्सिटयूट’ या अन्य तरीके से किये गए हैरासमेंट को रिपोर्ट करने पर उसकी भी सुनवाई हो। चूंकि ऑनलाइन मीडियम बिना किसी बॉर्डर के होते हैं इसलिए सरकारों से इतर भी इनकी व्यवस्था बने जहां ‘एकाउंट्स/प्रोफाइल’ को एक एंटिटी माना जाए और उनकी सज़ा एंटिटी को ही मिले (सबसे आखिरी पनिशमेंट ये हो कि अकाउंट को डिलीट किया जाए)।

अब तक ऑनलाइन माध्यमों को बहुत हलके में लिया जाता रहा है, इसे अभी भी समाज में व्याप्त नहीं बल्कि आभासी और बाहरी तौर पर देखा जा रहा है। लेकिन अब दुनिया बहुत सारी सोशल मीडिया क्रांतियां देख चुकी है और हम सब इन माध्यमों की वजह से अपने आस-पास बदलते परिदृश्य को भी देख रहे हैं। ऐसे में ज़रूरी है कि इसे ‘सीरियसली’ कंसीडर किया जाए ताकि इन ढीले-ढाले प्लैटफॉर्म्स पर थोड़ा लगाम लगे और हम सब सुरक्षित माहौल में रह सकें।

सोशल मीडिया फोटो आभार: flickr

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