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हमारी सांसों में हर रोज़ ज़हर घुल रहा है: ग्रीनपीस रिपोर्ट

ग्रीनपीस इंडिया की रिपोर्ट ‘एयरपोक्लिप्स’ में हुआ खुलासा:

सोमवार को ग्रीनपीस इंडिया द्वारा जारी वार्षिक रिपोर्ट ‘एयरपोक्लिप्स’ के दूसरे संस्करण में उत्तर प्रदेश के वायु प्रदूषण पर डरावने तथ्य सामने आए हैं। इस रिपोर्ट में देश के 280 शहरों के वर्ष 2015 और 2016 के साल भर के औसत पीएम-10 को दर्ज़ किया गया है। इस आधार पर देश के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में 15 शहर उत्तर प्रदेश के हैं। इसमें सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहर वाराणसी है जो रिपोर्ट में छठे स्थान पर है, वहीं 7वें स्थान पर गाजियाबाद, 17वें स्थान पर कानपुर और 18वें स्थान पर लखनऊ है। शीर्ष 30 में हापुड़, बरेली, फिरोज़ाबाद, आगरा, नोएडा, इलाहाबाद और मथुरा जैसे प्रमुख शहर शामिल हैं।

इस रिपोर्ट में शामिल आंकड़ों को राष्ट्रीय वायु निगरानी कार्यक्रम, राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से प्राप्त आरटीआई जवाबों और विभिन्न राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वार्षिक रिपोर्ट और वेबसाइट्स से प्राप्त किया गया है। इसमें यह सामने आया है कि 280 में से एक भी शहर विश्व स्वास्थ्य संगठन के वायु गुणवत्ता मानक (औसतन 20 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर) से कम प्रदूषित नहीं है। इतना ही नहीं 80% भारतीय शहर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक (औसतन 60 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर) से अधिक प्रदूषित हैं।

अगर औसत पीएम-10 स्तर के आधार पर रैंकिग को देखें तो पता चलता है कि साल 2016 में उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों वाराणसी, गाजियाबाद, हापुड़, बरेली, फिरोजाबाद, कानुपर, लखनऊ, आगरा, नोएडा, मुरादाबाद, इलाहाबाद, गजरौली और मथुरा में क्रमशः 236, 236, 235, 226, 223, 217, 211, 197, 195, 195, 192, 191 और 172 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर है।

ग्रीनपीस के सीनियर कैंपेनर सुनील दहिया कहते हैं, “उत्तर प्रदेश की हालत सबसे चिंताजनक है। यह आंकड़े उत्तर प्रदेश के सिर्फ 22 ज़िलों से लिए गए हैं, जहां वायु गुणवत्ता निगरानी केन्द्र बनाए गए हैं। जबकि 53 ज़िलों में आज भी वायु गुणवत्ता नापने के लिए कोई यंत्र नहीं लगाया जा सका है। ऐसे में अगर बाकी ज़िलों से भी वायु गुणवत्ता के डाटा को प्राप्त किया जाता है तो उत्तर प्रदेश में प्रदूषित शहरों की संख्या और भी भयानक होगी। सबसे ज़्यादा जनसंख्या जो बिना डाटा वाले इलाके में रह रहे हैं वो उत्तर प्रदेश (करीब 13 करोड़ 30 लाख) में ही है। इससे साफ जाहिर होता है कि वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए उठाए जाने वाले कदमों में सबसे पहले सभी जगह निगरानी यंत्र लगाने की ज़रूरत है।”

इन आंकड़ों में देश के 280 शहरों के 63 करोड़ लोगों को कवर किया गया, जिनमें से 55 करोड़ लोग पीएम-10 के राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक से औसतन अधिक पीएम-10 स्तर वाले इलाकों में रह रहे हैं। इनमें 5 साल से कम उम्र के 4 करोड़ 70 लाख बच्चे शामिल हैं, जिनमें से ज़्यादातर बच्चे उत्तर प्रदेश (65 लाख) में रह रहे हैं।

सुनील का कहना है, “दिल्ली वायु प्रदूषण से सबसे अधिक प्रभावित शहर बना हुआ है, जहां का औसत पीएम-10 स्तर राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों से पांच गुना अधिक है, लेकिन उत्तर प्रदेश के शहर भी उतने ही प्रदूषित हैं। सिर्फ 20% भारतीय शहरों का राष्ट्रीय और सीपीसीबी (Central Pollution Control Board) के मानकों पर खरा उतरना बताता है कि इस समस्या से निपटने के लिए तय समय सीमा के भीतर एक ठोस व कठोर कार्ययोजना का अभाव है।”

रिपोर्ट में यह सामने आया है कि वायु प्रदूषण से सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहर गंगा के मैदानी इलाके में हैं। हालांकि दक्षिण भारत के शहरों में भी एक तय समय सीमा के भीतर योजना बनाकर वायु गुणवत्ता को राष्ट्रीय मानक के अंदर लाने की ज़रूरत है।

पर्यावरण मंत्रालय ने राज्यसभा में हाल ही में राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्यक्रम बनाने की घोषणा की थी। इस कार्यक्रम को व्यापक, व्यवस्थागत और तय समय-सीमा के भीतर ज़िम्मेवारी तय करके ही सफल बनाया जाना चाहिए। इसके साथ-साथ इस कार्यक्रम को सार्वजनिक करने की ज़रूरत है जिससे इसे ज़मीन पर उतारा जा सके और उसमें आम जनता भी सरकार के साथ मिलकर अपनी भागीदारी निभा सके। इस कार्यक्रम को राष्ट्रीय, राज्य एवं शहर के स्तर पर विभिन्न प्रदूषण के कारणों की पहचान करके उनसे निकलने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए मज़बूत बनाने तथा मज़बूत तरीके से लागू करने की आवश्यकता है।

आगे का रास्ताः वायु प्रदूषण से निपटने के लिये रिपोर्ट में ये रास्ते सुझाए गए हैं-

  1. पूरे देश में वायु गुणवत्ता की निगरानी की व्यवस्था करना।
  2. वायु गुणवत्ता से जुड़े सभी डाटा को वास्तविक समय (रियल टाइम) में सार्वजनिक करना।
  3. लोगों को एहतियात बरतने और फैक्ट्रियों में कम उत्सर्जन के लिये, खराब हवा वाले दिन स्वास्थ्य सलाह और रेड अलर्ट जारी करना।
  4. जब भी मानकों से अधिक वायु प्रदूषण का स्तर पहुंचे तो स्कूलों को बंद करना, ट्रैफिक कम करना, पावर प्लांट और उद्योगों आदि को बंद रखने जैसे कदम खुद ब खुद उठाए जाने के लिए तैयार रहना।
  5. जनरेटर और वाहनों से निकलने वाले जीवाश्म ईंधन के धुंए को कम करने के उपाय करना। सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को दुरुस्त करने को प्राथमिकता देना और वाटर पंप सेट्स को डीजल की बजाय सोलर ऊर्जा से संचालित करने पर ज़ोर देना।
  6. वायु प्रदूषण फैलाने वाली गाड़ियों को सड़क से हटाना। उच्च गुणवत्ता वाले इंधन (भारत-6) को प्रयोग में लाना।
  7. थर्मल पावर प्लांट और उद्योगों पर कठोर उत्सर्जन मानकों को लागू करना होगा।
  8. अक्षय ऊर्जा के स्रोतों को बढ़ावा देना तथा छत पर सोलर लगाने को प्रोत्साहित करना।
  9. ई-वाहनों का इस्तेमाल को बढ़ावा देना।
  10. रोड से धूल हटाने तथा पेवमेंट्स को हरी घास एवं पेड़ों से ढकने के साथ-साथ निर्माण कार्यों से निकलने वाले प्रदूषण को कम करना।
  11. कचरा जलाने पर प्रतिबंध।
  12. खेतों में जीवाश्म ईंधन को जलाने से दूर हटने के लिए वैकल्पिक रास्तों की तलाश करना होगा।

इन सभी बिंदुओं को समाहित करने वाला महत्वाकांक्षी व व्यवस्थित राष्ट्रीय/क्षेत्रीय कार्ययोजना बनाने की ज़रूरत है जिसमें स्पष्ट लक्ष्य, तय समय-सीमा, वायु प्रदूषण के सभी कारकों और लोगों के स्वास्थ्य के प्रति विभागों एवं सरकारी तंत्र की ज़िम्मेदारी तय हो और जिसका अनुपालन कठोर तरीके से किया जा सके।

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