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नीतीश जी, बिहार में बंदूक सटा के बियाह होने वाला ये कैसा बहार है?

अजीब देश है हमारा! हमें लगता है कि बिहार में ‘पकड़ुआ शादी’ या जबरन शादी एक नया ट्रेंड है, ‘चोटी-कटवा’ की तरह ये भी कुछ नया-नया आया है। नहीं भाई, बड़े होते हुए हमने देखी हैं ऐसी चीज़ें। आस-पड़ोस में ऐसे उदाहरण मौजूद हैं। दूर के रिश्तेदारों ने ढेरों जबरन शादियां करवाई हैं। और वो उन शादियों का बखान कुछ ऐसे करते हैं जैसे कि उन्होंने आतंकियों से लोहा लिया हो या पता नहीं बेटी के बाप पर कितना बड़ा एहसान कर दिया हो। ऐसी ही कुछ पकड़ुआ शादियों के हश्र इतने बुरे हुए हैं जिसे बयान नहीं किया जा सकता।

जबरन शादी के बाद वह लड़का सालों तक उस दुल्हन को नहीं अपनाता जिसके परिवार वाले लड़के को बंदूक की नोंक पर, रस्सी से बांधकर और पूरे परिवार को जान से मारने की धमकी देते हुए ज़बरदस्ती लड़की की मांग में सिंदूर भरवाते हैं।

शादी हो जाती है तो ‘अगुआ (मीडिएटर समझ लीजिए)’ लड़की के परिवार के लिए मसीहा बन जाता है, लेकिन अफसोस होता है उन लोगों की उस निरक्षरता पर जो इक्कीसवीं सदी के भारत के लिए एक कलंक साबित हो रहे हैं। अगर उन रिश्तेदारों के बारे में लिख दूं तो कई तो मेरे पिता जी के पास शिकायत लेकर पहुंच जाएंगे कि “गौरव्वा बड़का समाज-सुधारक बन रहा है?”

हकीकत ये है कि पिछले 2 दशकों से ज़्यादा समय से बिहार में ऐसी घटनाएं इतनी आम हैं कि लोग सुनकर हंसी उड़ाते हैं। चौक-चौराहों पर, चाय की गुमटी से लेकर थानों तक में इन वारदातों की मिसालें दी जाती रही हैं, जिनमें प्रशासन खुद शामिल होता है। ऐसे में आज अचानक ऐसा क्या हो गया जो लोग इतने बौखला गए? हमें तो अब तक आदत हो जानी चाहिए थी? हम वीडियो सामने आने का वेट कर रहे थे क्या?

विनोद बोकारो के रहने वाले हैं, पेशे से जूनियर मैनेजर हैं बोकारो स्टील सिटी में। उन्होंने बताया है कि एक दोस्त के बुलावे पर वो हटिया-पटना पाटलिपुत्र एक्सप्रेस से मोकामा आते हैं। वहां पहुंचने के बाद वो अपने मित्र के साथ एक शादी में जाते हैं, जहां उन्हें बंदूक की नोक पर अगवा करके पंडारक (पुण्यार्क) लाया जाता है। एक कमरे में ले जाकर उन्हें बुरी तरह पीटा जाता है। कमरे में बंद करके तरह-तरह की यातनाएं दी जाती हैं। उन्हें एक महिला से शादी करने पर मजबूर किया जाता है।

वीडियो में साफ दिख रहा है कि विनोद ने इसका विरोध किया और वो रोते रहे, मगर जबरन उनके हाथ पांव रंगे गए जिसे एक ‘विध’ माना जाता है। शादी के मंडप में पहले से ही सारी तैयारियां हो गई थी। लोकल मीडिया ने लिखा है कि मंडप देख विनोद ने भागने की कोशिश भी की लेकिन लड़की के घरवालों ने उसे पकड़ लिया। जिसके बाद इस शादी की वीडियोग्राफी भी कराई गई। विनोद छोड़ देने की गुहार लगाता है। लड़की के घरवाले धमकी देकर उसे चुप रहने को कहते हैं। जबरन शादी कराने के आरोपी और उसके साथियों ने यह भी कहा, “आपको फांसी नहीं दे रहे हैं, शादी करा रहे हैं।” फिर उन्हें नए कपड़े पहनाए जाते हैं। उनके पैरों को रस्सी से बांध दिया जाता है, फिर उनसे ज़बरदस्ती एक अंजान महिला की मांग में सिंदूर डलवाया जाता है। शादी हो जाने के बाद उनके पास रोने के अलावा बचा ही क्या था? वीडियो में एक महिला विनोद के आंसू पोंछते हुए नज़र आ रही हैं। वाह! काश ऐसी संवेदनशीलता आपने पहले दिखाई होती।

इस पूरी घटना ने लोकल पुलिस की पूरी कलई खोलकर रख दी है। शिकायत के बाद भी समझौता करने की सलाह देने वाली और पकड़ुआ शादी को आम बताने का पुलिस का बयान सुशासन का मज़ाक नहीं तो और क्या है? ज़रूरी नहीं है कि हर घटना को सिटी एसपी, डीएम, एडीजी या कमिश्नर ही देखें, पहली ज़िम्मेदारी तो लोकल प्रशासन की बनती है। लेकिन सिस्टम को दीमक की तरह चाटकर नेताओं ने इसे ऐसा नंगा कर दिया है कि उसे कम्बल ओढ़ाने की ज़ुर्रत कोई पुलिसवाला नहीं कर सकता। हुआ भी यही होगा। जिस तरह की बातें सामने आ रही हैं उससे ये लगता है कि स्थानीय नेता ने कहीं न कहीं ज़रूर मदद की होगी।

पिछले दिनों नीतीश कुमार ने दहेज जैसी कुरीति को ख़त्म करने के लिए राज्य भर में कैंपेन चलाया। पता नहीं उन्होंने ‘पकड़ुआ शादी’ पर कुछ ठोस कदम क्यों नहीं उठाए आज तक? एक रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में कुल 2,877 अपहरण की घटनाएं हुईं, 2015 में 3,001 घटनाएं, 2014 में 2,533 और 2013 में 2,922 मामले दर्ज किए गए। रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में बिहार में करीब तीन हजार पकड़ुआ शादियां हुई थीं। पिछले छः सालों में ये आंकड़ा 20,000 पार कर चुका है। ऐसे जबरन विवाहों के लिए कुख्यात ज़िलों में बेगुसराय, मोकामा, पटना, लखिसराय, मुंगेर, जहानाबाद, गया, नवादा, शेखपुरा और अरवल सबसे आगे हैं।

बाढ़-मोकामा हमेशा से ही गलत कारणों से सुर्खियों में रहा है। इसके इर्द-गिर्द के इलाकों से एक से एक धुरंधर निकले हैं जिन्होंने राज्य में एक समय दहशत का माहौल कायम किया था। इनमें नागा सिंह, भोला सिंह, अनंत सिंह, सूरजभान सिंह और पता नहीं ऐसे कितने बाहुबली हुए जिन्होंने बाढ़, मोकामा, पंडारक, लखीसराय और बेगूसराय के आस-पास की जगहों में आतंक के नाम पर अपना सिक्का चलाया है।

इनमें से एक बाहुबली अनंत सिंह उर्फ छोटे सरकार, माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के चहेते रहे हैं जिनपे मर्डर, अपहरण, फिरौती और जबरन वसूली जैसे दर्जनों मुकदमे दर्ज हैं। अब ये मोकामा विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय विधायक हैं। एक हत्या का चश्मदीद तो मैं और मेरे कुछ दोस्त भी रहे हैं।

आज भी माहौल कुछ ज़्यादा नहीं बदला है। गैंग्स ऑफ वासेपुर का वो डॉयलाग है न, “हर लौंडा अपने आप को फैज़ल खान समझने लगा था”, कुछ ऐसी ही स्थिति बनती नज़र आ रही है फिर से। नए-नए बाहुबली तैयार होने लगे हैं जो खुद को दशहत और आतंक का उत्तराधिकारी समझने लगे हैं। आपको ये बातें शायद अजीब लग रही होंगी, लेकिन सच से मुंह फेरने में हमारा ही नुकसान है। मोकामा की ये घटना बिहार में हर दिन दुहराई जाती है। बस वीडियो आज दिखा है।

बिहार की राजनीति के चाणक्य हैं नीतीश कुमार। जब उन्होंने देखा कि धीरे-धीरे क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियां सिमटने लगी थीं तो उन्होंने समय को भांपते हुए अपने धुर-विरोधी लालू यादव का दामन थाम लिया था। उनकी कुर्सी बची रही। फिर मजबूरी ऐसी रही कि राजग में दोबारा चले गए। कोई दिक्कत नहीं है, इस देश में ये कोई नई बात नहीं है।

आईए-जाईए, लेकिन कानून व्यवस्था को शर्मशार कर देने वाले ऐसे सामाजिक अभिशाप पर भी ध्यान दीजिए। ये आपकी बची-खुची छवि को धूमिल करने वाली है।

ध्यान दीजिए बिहार की बदहाल शिक्षा व्यस्वस्था पर। ध्यान दीजिए मुजफ्फरपुर के लंगट सिंह कॉलेज से लेकर बेगूसराय के जीडी कॉलेज तक, ताकि परीक्षार्थिओं की नकल करने का वीडियो पूरी दुनिया में फिर से वायरल न हो। ध्यान दीजिए शराब की तस्करी पर, रेलों के आवागमन पर, दानापुर मंडल की मनमानी पर, गुंडागर्दी पर।

चुनाव के वक्त आपके समर्थकों ने एक नारा बनाया था जो बहुत फेमस हुआ था, “बिहार में बहार है, नितिशे कुमार है।” अगर इसे बहार कहते हैं तो मुझे फणीश्वर नाथ रेणु को दुबारा पढ़ना पड़ेगा।

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