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बेहद डराने वाले हैं भारत में मानव तस्करी के यह आंकड़े

यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम (UNODC) की एक रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में हो रही मानव तस्करी में 71% महिलाएं व लड़कियां और एक-तिहाई बच्चे शामिल हैं और इनमें से दुनिया के आधे भारत में रहते हैं। दूसरी ओर, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार भारत को एशिया में मानव तस्करी का गढ़ माना जाता है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा जारी आकड़ों के अनुसार, साल 2016 में भारत में तकरीबन 20 हज़ार महिलाएं और बच्चे मानव तस्करी का शिकार हुए।

2016 में मानव तस्करी के कुछ 19,223 मामले दर्ज किये गए, जिनकी संख्या साल 2015 में 15,448 थी। इनमें से सबसे ज्यादा मामले पश्चिम बंगाल के पूर्वी इलाकों में देखने को मिले।

संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा के अनुसार, “कोई भी ऐसी गतिविधि, जिसके तहत किसी को डरा-धमकाकर या किसी अन्य दोषपूर्ण तरीके से किसी अमानवीय कार्य में संलग्न किया जाता है तो उसे मानव तस्करी माना जाएगा।” इनमें वेश्यावृति, अंग तस्करी, भीख मंगवाना और बंधुआ मज़दूरी आदि शामिल हैं। भारतीय संविधान की धारा 23 में भी मानव तस्करी या बंधुआ मजदूरी को अपराध की श्रेणी में रखा गया है, इसके बावजूद नशीली दवाओं और हथियारों के कारोबार के बाद मानव तस्करी विश्व का तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध है। दुनिया भर में 80% से ज़्यादा मानव तस्करी यौन शोषण के लिए और बाकी बंधुआ मजदूरी के लिए की जाती है।

आखिर क्या कारण है कि तमाम सरकारी योजनाओं और प्रयासों के बावजूद ये आंकड़ें कम होने के बजाय लगातार बढ़ते जा रहे हैं? अगर हम इस समस्या की जड़ में जाएं, तो पाते हैं कि मानव तस्करी का सबसे बड़ा कारण गरीबी, अशिक्षा और बेरोज़गारी है। इन वजहों से छोटे शहरों और गांवों में रहने वाले पुरुष अपने घर-परिवार को छोड़कर बड़े शहरों में कमाने जाते हैं। नए शहर का अकेलापन और सड़ांध मारती गलियों के दमघोंटू कारखानों या छोटी-मोटी प्राइवेट कंपनियों में पूरे दिन की गयी जी तोड़ मेहनत के बाद अपनी मानसिक व शरीरिक थकान को मिटाने की इच्छा भी व्यापारिक सेक्स की मांग को बढ़ावा देती है। इस वजह से महिलाओं व छोटी बच्चियों की तस्करी का खतरा बढ़ जाता है।

लड़कियों और महिलाओं की तस्करी न सिर्फ देहव्यापार के लिए की जाती है, बल्कि उन्हें उन क्षेत्रों में भी बेचा जाता है, जहां कन्या भ्रूण हत्या के कारण लड़कियों का लिंग अनुपात लड़कों के मुकाबले बहुत कम है। इसके अलावा, ग्लैमर का मोह, घरेलू कामगारों की ज़रूरत, बेहतर जीवन की चाह, पारिवारिक उपेक्षा और अशिक्षा की वजह से भी इस अपराध में दिनों-दिन बढ़ोतरी हो रही है। झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ, आंध्रप्रदेश, पश्चिमी बंगाल जैसे राज्य की गरीब आबादी इस अपराध की प्रमुख भुक्तभोगी है।

पिछले कुछ समय से लोगों में गोरेपन के प्रति बढ़ते रूझान ने भी भारत-नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्रों में मानव तस्करी के एक नए कारण को जन्म दिया। यहां नेपाली महिलाओं को उनकी चमड़ी की खातिर भी बेचा जा रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली और मुंबई में 100 स्क्वॉयर इंच गोरी चमड़ी का टुकड़ा 50,000 से 1,00,000 तक में बिकता है। इसके लिए महिलाओं से पूर्व में ही यह लिखित बयान ले लिया जाता है कि उन्होंने स्किन डोनेट की है ना की बेची है। इस वजह से तस्कर आसानी से बच निकलते हैं।

भारत में ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन्स एंड टिशूज़ रुल्स, 2014 के अनुसार, टिश्यूज और मानव अंगों को बेचना गैर कानूनी है। इस कानून के मुताबिक ऐसा तभी किया जा सकता है जब डोनर रजिस्टर्ड हो, इसके बावजूद भारत-नेपाल सीमा पर यह मानव अंगों को यह कारोबार धड़ल्ले से फल-फूल रहा है।

झारखंड बना मानव तस्करी का गढ़

झारखंड को अलग राज्य बने हुए 17 वर्ष बीत चुके हैं। बावजूद इसके राज्य सरकार मानव तस्करी को अब तक रोक पाने में पूरी तरह से नाकाम रही है। रांची, खूंटी, सिमडेगा एवं पश्चिम सिंहभूम ज़िलों से अभी भी बड़ी तादाद में लड़कियां बाहर भेजी जा रही हैं। पहले यह काम जहां जान-पहचान या धोखे से किया जाता था, वहीं अब बाकायदा यह काम एजेंसियों के माध्यम से किया जाता है।

अपार खनिज संपदा होने के बावजूद झारखंड के पिछड़े और आदिवासी समुदायों को न तो ढंग से शिक्षा मिल रही है और न ही रोज़गार के समुचित अवसर उपलब्ध हो पा रहे हैं। ऐसे में रोज़गार के नाम पर कई प्लेसमेंट एजेंसियां झारखंड के ग्रामीण-आदिवासी बाहुल्य इलाकों की अशिक्षित, कम पढ़ी-लिखी युवतियों एवं किशोरियों को बड़े शहरों और महानगरों में बेहतर ज़िंदगी का लालच दिखाती हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार झारखण्ड में साल 33 हज़ार नाबालिग लड़कियों और लड़कों की तस्करी होती है। इस काम में स्थानीय बिचौलिए प्लेसमेंट एजेंसियों के एजेंट की भूमिका निभाते हैं। दिल्ली और मुंबई जैसे महानगर ऐसी मानव तस्करी के गढ़ माने जाते हैं, जहां घरेलू कामकाज, जबरन शादी और वेश्यावृत्ति के लिए छोटी लड़कियों का अवैध व्यापार खुलेआम किया जाता है।

क्या हैं कानूनी प्रावधान

भारत सरकार द्वारा 30 मई, 2016 को महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा ट्रैफिकिंग ऑफ पर्सन्स (प्रिवेंशन, प्रोटेक्शन एंड रिहेबिलिटेशन) बिल, 2016 का मसौदा पेश किया गया। इस बिल में ह्यूमन ट्रैफिकिंग के लिए सात से दस साल की सजा का प्रावधान है। मौजूदा कानून इमॉरल ट्रैफिक प्रिवेंशन एक्ट 1956 के अंतर्गत मात्र देह व्यापार को अपराध की श्रेणी में रखा गया था, लेकिन इस बिल में बंधुआ मज़दूरी और बाल मजदूरी से लेकर वेतन कम देने तक को अपराध की श्रेणी में शामिल किया गया है। इसके अलावा इस विधेयक में वैसे सभी प्रावधानों को शामिल किया गया है, जो अब तक किसी अन्य कानून में वर्णित नहीं थे, जैसे कि-

– तस्कर और गवाह की पहचान का खुलासा करने वाले के लिए दंडात्मक प्रावधान में छूट।

– तस्करी या शोषण के उद्देश्य से मादक दवा, शराब, रासायनिक पदार्थ या हॉरमोन के उपयोग को दंडात्मक श्रेणी में रखना।

– इस मसौदे के तहत ‘प्लेसमेंट एजेंसियों’ को विधेयक के दायरे में रखा गया है। इस अधिनियम के तहत इनका पंजीकरण अनिवार्य होगा।

– अपराध के 24 घंटे के भीतर पुलिस द्वारा रिपोर्टिंग उपलब्ध कराने की अनिवार्यता।

– आघात के शिकार लोगों की मज़दूरी तथा अन्य मौद्रिक नुकसान की वसूली का प्रावधान।

– अपराधों की जांच के लिए एक प्राधिकृत एजेंसी की स्थापना तथा अल्पकालिक और दीर्घकालिक पुर्नवास सहायता के लिए संरक्षण गृह और विशेष गृह का प्रावधान।

मानव तस्करी का धंधा देश में धड़ल्ले से फल-फूल रहा है और ऐसा नहीं है कि इसकी जानकारी पुलिस या प्रशासन को नहीं होगी। लेकिन कई बार भ्रष्टाचार तो कई बार अनदेखी की वजह से अपराधी पकड़ भी लिए जाएं, तो आसानी से बरी हो जाते हैं।

हमें क्या करना होगा आगे

चाइल्ड ट्रैफिकिंग के मामलों को रोकने की दिशा में हमारा एक छोटा सा प्रयास कई मासूमों को अपराध के गर्त में जाने से बचा सकता है। आगे से अगर आप जब भी किसी बच्चे को ट्रैफिक पर भीख मांगते, ढाबों या होटलों में काम करते या किसी भीख मांगती औरत की गोद में बेसुध सोया हुआ देखें, तो उसकी एक फोटो क्लिक करके तुरंत 7042425544 नंबर पर व्हाट्स एप या कॉल करके सूचित कर सकते हैं। इसके अलावा आपने उस बच्चे को आपने कहां, कब और किस हालत में देखा, इस बात की जानकारी देते हुए उसकी फोटो को फेसबुक पेज ‘No More Missing’ पर पोस्ट कर दें। यह एक संस्था है, जो गुमशुदा बच्चों को उसके सही अभिभावकों तक पहुंचाने का कार्य करती है।

एक नई पहल

पूर्वोत्तर और दक्षिणी राज्यों में मानव तस्करी के खिलाफ बच्चों को जागरूक बनाने के लिये कॉमिक किरदारों की मदद ली जा रही है। इन कॉमिक्स का उद्देश्य बच्चों को ऐसी स्थिति के प्रति सतर्क करना है और उनमें जागरूकता लाना है।

किसी भी सामाजिक समस्या या अपराध को जड़ से मिटाने के तमाम प्रयासों की सफलता तभी संभव है जब ज़मीनी स्तर पर लोग उस विषय में जागरूक और गंभीर रहें। अक्सर हम अपने आस-पास ऐसे लोगों या ऐसी घटनाओं को देख-सुन कर भी साइड से निकल जाते हैं। अगर हम ऐसी घटनाओं प्रति संवेदनशील हो जाएं, तो ऐसी लाखों-करोड़ों ज़िंदगियां तबाह होने से बच सकती हैं।

 

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