भारत के महालेखाकार और नियंत्रक (Comptroller and Auditor General of India या CAG) का पद एक संवैधानिक पद है जिसका उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 148 में किया गया है, इसका दर्जा उच्चतम न्यायालय के जज के समान है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कर्तव्यों, अधिकार और सेवा की शर्तें) अधिनियम 1971 के तहत कैग (CAG), अकाउंट ऑडिट और किसी वित्तीय लेनदेन के परीक्षण जैसे कई महत्वपूर्ण कार्य करता है। ऐसे संवैधानिक पदों में तटस्थ व्यवहार एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है।
पिछले दिनों 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की सुनवाई कर रही सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा सभी 18 दोषियों को बरी कर दिया गया। यह मामला तब का है जब 2010 में भारत के महालेखाकार और नियंत्रक (CAG) की रिपोर्ट में वर्ष 2008 में आवंटित किए गए स्पेक्ट्रम पर सवाल उठाए गए, जिस पर सभी विपक्षी पार्टियों ने काफी विरोध किया था, जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की छवि को नुकसान पहुंचा था।
महालेखाकार और नियंत्रक, कार्यकाल के समाप्त होने के बाद भारत सरकार के या किसी राज्य के अधीन किसी और पद का पात्र नहीं होता है। यहां पर ये गौर करने वाली बात है कि इन पदों में गवर्नर के पद और कई गैर सरकारी पद शामिल नहीं है, इस सन्दर्भ में कई प्रश्न उठाए जा रहे हैं। ऐसे आरोप लगते रहे हैं कि CAG जैसे संवैधानिक पद का उपयोग विपक्षी पार्टियों द्वारा सरकार कि छवि खराब करने में किया जाता है।
2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में भी इस बात का अंदेशा लगाया जा रहा है। इसके पक्ष में ये तर्क दिए जा रहे है कि विनोद राय को फरवरी 2016 में बोर्ड ऑफ़ बैंकिग ब्यूरो का चेयरमैन बनाया गया जो एक तरह का लाभ देने कि कोशिश है। हालांकि सभी राजनीतिक पार्टियां ऐसे आरोप एक दूसरे पर लगाती रही हैं लेकिन संवैधानिक पद का अगर राजनीतिक लाभ उठाया जा रहा है तो यह काफी गंभीर प्रश्न है।
संविधान निर्माताओं द्वारा इस पद के महत्व को समझते हुए कई संवैधानिक संरक्षण प्रदान किये गए, जिसके तहत CAG को पद से हटाने के लिए उसी प्रक्रिया का प्रयोग किया जाएगा जिससे उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है।
यहां एक और ध्यान देने वाली बात ये भी है कि यह एक ऐसा संवैधानिक पद है जो संसद से पूर्ण रूप से स्वतंत्र होकर काम करता है। यह अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को देता है, जिसे राष्ट्रपति संसद के समक्ष प्रस्तुत करते हैं, जबकि ब्रिटेन में CAG संसद का भाग होता है और वो अपनी रिपोर्ट स्वयं प्रस्तुत करता है।
इन बातों से साफ ज़ाहिर है कि संविधान निर्माताओं ने वो सारे कदम उठाए हैं ताकि CAG अपने काम में निष्पक्षता ला सके। सवाल सिर्फ राजनीतिक पार्टियों का आरोप-प्रत्यारोप का नहीं है, बल्कि संवैधानिक पद के निष्पक्ष व्यवहार को कायम करने का है। CAG एक ऐसा पद है जो कई वित्तीय अनियमितता को सामने लाने का काम करता है, जिसमें औचित्य का परिक्षण एक महत्वपूर्ण पक्ष है।
कॉमन वेल्थ गेम में औचित्य के परिक्षण के आधार पर कई वित्तीय अनियमितताएं सामने आई थी, इनमें बाज़ार मूल्य से अत्यधिक दर पर चीज़ों को किराए पर लेने का मामला शामिल था। कई बार ये सवाल उठाए जाते हैं कि CAG द्वारा किया गया परीक्षण किसी वित्तीय अनियमितता के घटित हो जाने के बाद का परिक्षण है, जबकि उसको पूर्वपरीक्षण से रोका जा सकता है। जवाब काफी सरल है, CAG का कार्य वित्तीय अनियमितता को खोज निकालना है, ताकि ऐसे कार्य व्यवहार पर नकेल लगाई जा सके।
आज हम जहां प्रशासन में पारदर्शिता लाने के लिए कई पदों पर नियुक्ति करने की बात करते हैं, जिसमें सीवीसी, लोकपाल और लोकायुक्त शामिल हैं। CAG एक संवैधानिक पद है जिसका कार्य वित्तीय अनियमितता से जुड़ा है तो क्यों न इस पद को और तटस्थ बनाया जाए, ताकि इसकी प्रभाविकता सुनिश्चित की जा सके।
ऐसे में ज़रूरत है एक ऐसी सकारात्मक पहल की जो इस संवैधानिक संस्था की खामियों को दूर कर सके। इसके लिए सभी राजनीतिक पार्टियों को सामने आना होगा ताकि जिस अपेक्षा से हमारे संविधान निर्माताओं द्वारा इस संवैधानिक पद की नींव डाली गई थी, उसे पूरा किया जा सके।