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नाले के ऊपर बिठाकर मिड डे मील खिलाने वाला झारखंड का प्राइमरी स्कूल

झारखंड के दुमका ज़िले के हरिजन टोला स्थित प्राथमिक विद्यालय में मध्याह्न भोजन योजना दम तोड़ती नज़र आ रही है। आलम यह है कि बच्चे विद्यालय प्रांगण में मध्याह्न भोजन करने के बजाए सड़क किनारे नाले के ऊपर भोजन करने को विवश हैं। सड़कों पर उड़ने वाली धूल-धक्कड़ के बीच स्कूल के तमाम बच्चे, खुले नाले के ऊपर बैठ कर हर रोज़ भोजन करते हैं। विद्यालय प्रशासन की इस हरकत से ना सिर्फ बच्चों के स्वास्थय के साथ खिलवाड़ हो रहा है बल्कि मध्याह्न भोजन को लेकर चली आ रही तमाम तरह की नकारात्मक बातें भी सच होती दिखाई पड़ रही हैं।

गौरतलब है कि मध्याह्न भोजन में प्रयोग की जाने वाली सामग्रियों की साफ-सफाई को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं। इन्हीं दावों के बीच आज मध्याह्न भोजन योजना फिर से सवालों के घेरे में है।

नहीं है विद्यालय भवन :-

प्राथमिक विद्यालय भवन

हरिजन टोला स्थित प्राथमिक विद्यालय का भवन खंडहर हो चुका है और पिछले कुछ माह से निर्माण कार्य जारी है। इस विषय पर जब हमने विद्यालय प्रशासन से बात करने की कोशिश की तब हमें बताया गया कि स्कूल की बिल्डिंग ना होने की वजह से इन बच्चों को फिलहाल पास के एक मध्य विद्यालय में जाकर क्लास लेनी होती है। लेकिन बच्चों को मिड डे मील टूटी हुई विद्यालय भवन के नाले के समीप परोसा जाता है।

मध्य विद्यालय के प्राचार्य मुकुल झा बताते हैं कि जब तक प्राथमिक विद्यालय में भवन निर्माण का कार्य चल रहा है तब तक हमने वहां के बच्चों को अपने विद्यालय में पढ़ने की व्यवस्था मुहैया कराई है। मेरे विद्यालय में बच्चों की संख्या काफी अधिक है जिस वजह से मैं प्राथमिक विद्यालय के बच्चों के मध्याह्न भोजन की व्यवस्था अपने विद्यालय परिसर में करने के लिए सक्षम नहीं हूं। इन्हें मैनें पढ़ने के लिए यहां क्लासरूम दे रखा है और वे सिर्फ भोजन करने पुरानी बिल्डिंग में जाते हैं।

नाले के ऊपर भोजन करने को लेकर प्राचार्या ने दी ऐसी दलील :-

प्राथमिक विद्यालय की प्राचार्या वंदना कुमारी से जब बच्चों के नाले के ऊपर बैठकर भोजन करने के संबंध में प्रश्न पूछा गया तो उन्होंने विद्यालय भवन निर्माण कार्य को इसकी वजह बताई। वंदना कहती हैं कि हमने बच्चों से कहा है कि वे मध्याह्न भोजन करने के वक्त दड़ी (कपड़े की चटाई) का प्रयोग करें, लेकिन वे सुनते ही नहीं।

मध्याह्न भोजन की राशि 4.13 प्रति छात्र है अपर्याप्त :-

वंदना बताती हैं कि सरकार की ओर से एक बच्चे पर 4.13 रूपये दिए जाते हैं, जिसमें चावल सरकार की ओर से मुफ्त में मुहैया कराई जाती है। इसके अलावा दाल, सब्ज़ी, अंडे, मसाले एवं जलावन का खर्च इसी पर निर्भर होता है। वंदना आगे बताती हैं कि सरकार उन्हें जलावन का कोई खर्च नहीं देती और इस वजह से मध्याह्न भोजन को चलाने में काफी बाधाएं उत्पन्न होती हैं। यदि स्कूलों में जलावन के लिए अतिरिक्त राशि दी जाए तब हालात और भी बेहतर हो सकते हैं।

मिडल स्कूल में मिड डे मील खाते स्टूडेंट्स

बहरहाल सरकारें अपनी उपलब्धियों का बखान करने के क्रम में मध्याह्न भोजन जैसे हथियार को शीर्ष पर रखती है। वहीं सरकारें विद्यालय प्रबंधन को इस योजना के संचालन हेतु अल्प राशि आवंटित कर आने वाले वक्त के लिए मुश्किलें पैदा कर रही हैं। विद्यालय प्रशासन द्वारा मध्याह्न भोजन के दौरान बच्चों की अनदेखी भी बेहद शर्मनाक है।


नोट- सभी तस्वीरें लेखक द्वारा ली गई हैं।

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