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“गहलोत जी, पंचायत चुनावों में शैक्षणिक योग्यता हटाकर आप राज्य को पिछड़ा बनाना चाहते हैं?”

पंचायती राज चुनावों में शैक्षणिक योग्यता का प्रावधान समाप्त कर राजस्थान सरकार समाज को क्या संदेश देना चाहती है यह मेरी समझ से परे है।

हमारे देश की दुर्गति का सबसे बड़ा कारण है कि चपरासी की नौकरी के लिए शिक्षा ज़रूरी है लेकिन बड़े-बड़े मंत्रालयों को चलाने वाले नेताओं के लिए शिक्षा की कोई अनिवार्यता नहीं। एक शिक्षक बनने के लिए बीएड चाहिए लेकिन शिक्षा मंत्री बनने के लिए कुछ भी नहीं। वकालत करने के लिए एलएलबी जबकि कानून मंत्री के लिए कुछ भी नहीं। यही हाल सभी जगह है।

वसुंधरा सरकार को भले ही किन्हीं मुद्दों पर आपने विपक्ष में बैठा दिया है लेकिन सरपंच बनने के लिए 8वीं और पंचायत समिति व ज़िला परिषद सदस्य बनने के लिए 10वीं पास की योग्यता एक अच्छा कदम था।

मुझे यकीन नहीं हो रहा है लेकिन यह सच है कि गहलोत सरकार ने एमेजॉन प्राइम और नेटफ्लिक्स के दौर में भी शैक्षणिक योग्यता को बाध्यता बताते हुए इसे हटा लिया है। एक तरफ आप गांव-गांव सबको पढ़ाने के लिए वादे कर रहे हैं और दूसरी तरफ गांवों को चलने वाले सरपंच के पद को अनपढ़ ही बने रहने के लिए रास्ता तैयार कर लिया है। कमाल है।

शायद कॉंग्रेस भूल गई है कि यह वो भारत नहीं है जो वो पांच वर्ष पहले छोड़ कर गए थे। आज देश युवा है, युवा के हाथ में 4जी हैंडसेट, जिओ का नेटवर्क है। घर का सामान ऑनलाइन आ रहा है और पैसा भी डिजिटली ट्रांसफर हो रहा है।

लेकिन शिक्षा और टेक्नोलॉजी के इस दौर में भी कोई सरकार 8वीं और 10वीं पास की न्यूनतम शिक्षा-योग्यता को पलट देगी मैं अभी तक नहीं पचा पा रहा।

मेरा बस चलता तो गहलोत सरकार के इस फैसले के बाद ‘राजस्थान अब और कितना पिछड़ेगा?’, इसपर एक अलग से वोटिंग करवा लेता। क्योंकि एक तरफ केंद्र सरकार गांव-गांव हर पंचायत को तकनीकी सक्षम बनाने हेतु काम कर रही है वहीं दूसरी तरफ राजस्थान सरकार चाह रही है कि सरपंच के पद पर और पंचायत समिति में ऐसे लोग आकर बैठे जो अनपढ़ हैं, जिसका तकनीक से कोई लेना देना नहीं है क्योंकि उसकी उतनी समझ ही नहीं।

फोटो सोर्स- Getty

अब किसी गांव में फलाने व्यक्ति का फ्रॉड बैंक ट्रांजेक्शन होता है तो वह इस मसले पर सरपंच के साथ की उम्मीद ना करे क्योंकि सरपंच साहब तो इन सबसे परे होंगे। मदद की बजाय वो कहेंगे, “हमें तो आज भी पुराना तरीका ही पसंद है, बैंक की लाइन में लगो, पैसे निकालो, जहां ज़रूरत हो खर्च करो और शांति से जीवन जीते रहो। ये ऑनलाइन-वॉनलाइन सब फालतू चीज़ें हैं।”

गांव की स्कूल में यदि मास्टर जी नहीं आ रहें या किसी योजना का लाभ विद्यार्थियों को नहीं मिल रहा तो भी आप सरपंच के साथ की उम्मीद मत रखियेगा। क्योंकि उनका डायलॉग अभी से तैयार है, “पढ़ना-लिखना, आगे बढ़ना तो खुद पर है। देखो हम नहीं पढ़े फिर भी पूरी पंचायत संभाल रहे हैं।”

शैक्षणिक योग्यता को बाध्यता बताने वाली इसी तरह की नीतियों की वजह से राजनीति में आपराधिक छवि वाले लोगों की एंट्री आसान बन जाती है और अच्छे पढ़े-लिखे लोग इससे दूर भागते रहते हैं।

फिर इसी तरह के लोग आगे प्रमोट होते हैं और शिक्षित नहीं होने की वजह से नौकरशाहों से उनका ठीक से ताल-मेल नहीं बैठ पाता। नौकरशाह ना उनकी नीतियों को समझ पाते हैं ना ही आम जनता को उसका ठीक से लाभ मिल पाता है। दोनों एक दूसरे को कोसते रहते हैं और दोबारा चुनाव आ जाते हैं।

कुल मिलाकर नींव कमज़ोर करने का एक अच्छा खासा फैसला राजस्थान सरकार ने ले लिया है, आने वाले दिनों में अब कितने मज़बूत मकान की उम्मीद करनी चाहिए यह आपकी शैक्षणिक योग्यता पर भी निर्भर करेगी।

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