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ओम पुरी को कभी उचित सम्मान ना देने वाला बॉलीवुड हमेशा उनका ऋणी रहेगा

आज से ठीक एक साल पहले, 6 जनवरी 2017 की सुबह लोगों को यह दुखद खबर मिली थी कि ओम पुरी नहीं रहे। यह खबर बेहद अप्रत्याशित थी, क्योंकि ओम पुरी अभिनय के क्षेत्र में लगातार सक्रिय थे और अपने कुछ बयानों के कारण उन दिनों वे मीडिया की ख़बरों में भी बने हुए थे। ओम पुरी और सिनेमा के चाहने वालों के लिए यह एक बड़ा धक्का था। ओम पुरी हिंदी सिनेमा के उन कलाकारों में गिने जा सकते हैं, जिनके बिना समृद्ध हिंदी सिनेमा की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

पंजाब के एक छोटे से कस्बे में पले-बढ़े ओम पुरी का बचपन बहुत अभावों में बीता। बाद के दिनों में ओम पुरी को यह स्वीकारने में कभी हिचक नहीं हुई कि उनका बचपन बहुत ही घुटा हुआ था, जिसकी छाप उनपर लम्बे समय तक रही। वे फौज में भरती होना चाहते थे, संयोगों ने उन्हें थियेटर की तरफ मोड़ा और फिर वहां जगी अभिरुचि और जुनून ने उन्हें ‘नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा’ तक पहुंचाया। यहां पहुंचने से पहले तक ओम पुरी ने पढ़ाई जारी रखते हुए अपनी आजीविका के लिए भी बहुत संघर्ष किया।

उन्होंने कभी किसी वकील के यहां मुंशी का काम किया, तो कभी कॉलेज में लैब असिस्टेंट की नौकरी की। एनएसडी पहुंच कर भी उनके लिए चुनौतियां खत्म नहीं हुई थीं। उनकी पढ़ाई-लिखाई पंजाबी माध्यम से हुई थी और वे अंग्रेज़ी में बहुत असहज थे, जबकि एनएसडी का माहौल पूरी तरह अंग्रेज़ीदां हुआ करता था। बहुत मेहनत से उन्होंने इस चुनौती को पार किया। वे फक्र से बताया करते थे, कि बाद के दिनों में उन्होंने लगभग दो दर्जन अंतर्राष्ट्रीय अंग्रेज़ी फिल्मों में भी काम किया।

ओम पुरी और नसीरुद्दीन शाह

ओम पुरी का ज़िक्र एनएसडी से उनके साथी रहे नसीरुद्दीन शाह के ज़िक्र के बिना अधूरा होगा। ओम पुरी यह बताया करते थे कि अल्काजी, गोविन्द निहलानी, श्याम बेनेगल सहित भले ही उनके कई मेंटर रहे हों, लेकिन उन्हें धक्का देकर आगे बढ़ाने का काम नसीर साहब ने ही किया। ओम पुरी यह भी बताते थे कि एनएसडी के बाद जब वे आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहे थे, तब उन्हें आर्थिक चिंता से मुक्त करते हुए ज़बरदस्ती पुणे फिल्म इंस्टिट्यूट लाने का काम भी नसीरुद्दीन ने ही किया था।

एनएसडी में अभिनय की बारीकियां सीखने के बाद सिनेमा की बारीकियों को समझने के लिए ‘एफटीआईआई’ एक महत्वपूर्ण पड़ाव था और ओम पुरी इन दोनों ही संस्थानों को अपने निर्माण का श्रेय देते थे।

यह इन दोनो संस्थानों के प्रशिक्षण का ही कमाल था कि जब स्क्रीन पर ओम और नसीर जैसे कलाकारों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई तो सिनेमा के दर्शकों को एक अनूठा अनुभव मिला। उस दौर तक कुछ अपवादों को छोड़कर चेहरे-मोहरे और डील-डौल ही हिंदी सिनेमा के नायकों की पहचान हुआ करता था।

नसीरुद्दीन और ओम पुरी जैसे कलाकारों ने उस मिथक को तोड़ने में बहुत बड़ा योगदान दिया। नसीरुद्दीन ने एक टीवी इंटरव्यू में बताया कि एनएसडी के दिनों की ओम पुरी और उनकी एक तस्वीर देखकर शबाना आज़मी ने कहा था कि ‘दो ऐसे बदशक्ल इंसान ज़ुर्रत कैसे कर सकते हैं एक्टर बनने की!’ बेशक शबाना ने यह बात मज़ाक में कही होगी, लेकिन दरअसल इसमें हिंदी सिनेमा उद्योग और उसके दर्शकों की मानसिकता की अच्छी अभिव्यक्ति हुई है।

हिंदी सिनेमा की क्लासिक कही जा सकने वाली कई फिल्मों में ओम पुरी ने अभिनय किया और उनका यह अभिनय इतना प्रभावशाली है कि दर्शकों के मन पर अपनी गहरी छाप छोड़ जाता है। हिंदी सिनेमा का सबसे ज़मीनी और सबसे उम्दा दौर माने जाने वाले सामानांतर सिनेमा को जिन कुछ अभिनेताओं ने सबसे महत्वपूर्ण योगदान दिया, ओम पुरी उनमें से एक हैं। उस दौर की फिल्मों में ओम पुरी, नसीरुद्दीन, शबाना और स्मिता पाटिल जैसे कलाकारों की इतनी प्रभावी, सफल और विविधता से भरी पुनरावृत्ति हुई है कि कई बार ऐसा लगता है, कि ये लोग न होते तो शायद समानांतर सिनेमा न होता!

‘आक्रोश’, ‘अर्धसत्य’, ‘तमस’ और ‘धारावी’ जैसी फिल्मों में केन्द्रीय भूमिका निभाते हुए ओम पुरी ने जो यादगार अभिनय किया है, उसकी मिसालें दी जाती हैं। ओम पुरी ने कई महत्वपूर्ण फिल्मों में अपनी सहायक व छोटी-छोटी भूमिकाओं से भी दर्शकों को बहुत प्रभावित किया। अर्थपूर्ण सिनेमा के प्रति निष्ठा रखने के बावजूद ओम पुरी ने अपनी आजीविका के लिए उन व्यावसायिक फिल्मों में भी काम करने से परहेज़ नहीं किया जिन्हें चलताऊ किस्म की फिल्में कहा जा सकता है। ऐसी फिल्मों में भी अपनी भूमिकाओं का निर्वाह उन्होंने बहुत शिद्दत से किया है और इस बात के लिए उनकी तारीफ भी की जाती है। इन फिल्मों में काम करने के कारण ही वे हिंदी सिनेमा के दर्शकों से लगातार रूबरू होते रहे और कोई ऐसा दौर नहीं रहा, जब उनके पास काम नहीं रहा हो।

ओम पुरी को इस बात का हमेशा मलाल रहा कि वे जितनी अच्छी भूमिकाएं करने की क्षमता रखते थे, वैसी भूमिकाएं उन्हें बहुत कम मिलीं।

नसीरुद्दीन शाह को संबोधित एक वीडियो सन्देश में उन्होंने कहा था कि ‘उन लोगों के काम की तारीफ विदेशों में भी होती है, लेकिन अपने ही देश के फिल्मकार अच्छी-अच्छी भूमिकाएं अपने निकटतम लोगों को बांट देते हैं और बची-खुची भूमिकाएं उन लोगों के हिस्से आती हैं।’ ओम पुरी यह भी कहा करते थे कि उम्दा विदेशी फिल्मों को देखकर उनके मन में यह कसक उठती है कि अगर उन्हें ऐसी फिल्मों में काम करने का अवसर मिले तो वे साबित कर सकते हैं कि वे किसी उम्दा विदेशी अभिनेता से कमतर नहीं हैं। उन्हें जब कभी उम्दा अंतर्राष्ट्रीय फिल्मों में काम करने का मौका मिला तो उन्होंने अपने इस दावे को साबित भी किया।

ओम पुरी के बेहद आत्मीय मित्र होने के बावजूद उनके देहांत पर नसीरुद्दीन शाह ने कहा कि ‘ओम को उनके दर्द से मुक्ति मिली है’ तो इस बात को समझने में कोई मुश्किल नहीं रह जाती कि वे अपने निजी जीवन में बहुत अधिक समस्याओं का सामना कर रहे थे। उनकी दूसरी पत्नी नंदिता पुरी, इकलौते बेटे के साथ उनसे अलग रहा करती थी। ओम पुरी का अपने बेटे से बहुत अधिक लगाव था और यह दूरी उन्हें भावनात्मक रूप से बहुत व्यथित रखती थी। पहली पत्नी सीमा कपूर से अलग होने का गहरा अपराधबोध भी उन्हें घेरे रहता था। निजी जीवन में आत्मीयता का जो अभाव था, उसका असर उनकी जीवनशैली और उनके स्वास्थ्य पर भी गंभीर रूप से पड़ा था। एक तरफ वे फिल्मों में व्यस्त रहते थे, वहीं दूसरी तरफ वे भारी अकेलेपन और रिक्तता के शिकार थे। वे चाहते थे कि कोई न कोई बातचीत करने वाला अक्सर उनके साथ बना रहे। कथित रूप से अपनी आखिरी शाम को वे अपने बेटे से मिलने गये थे, लेकिन उनकी मुलाकात नहीं हो पायी थी।

सच यही है कि एक बेहद प्रतिभाशाली अभिनेता को हमने असमय ही खो दिया। अपने आखिरी दिनों तक उनमें बेहतर काम करने की ललक थी। निश्चित रूप से यदि वे जीवित होते तो हिंदी सिनेमा के दर्शकों को उनकी और भी कई बेहतरीन भूमिकाएं देखने को मिलतीं। ओम पुरी ने हिंदी सिनेमा को जो योगदान दिया है, उसके लिए हिंदी सिनेमा हमेशा उनका ऋणी रहेगा।

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