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इतिहास के राजाओं तुम संघर्ष करो फेसबुकिया तुम्हारे साथ हैं

इस सेल्फी काल में यदि मुझे विश्व के मेहनती लोगों की सूची बनाने का काम सौंपा जाए तो मैं राष्ट्रीय भावना में गोते खाकर अपने देश के नागरिकों को इस सूची में प्रथम स्थान में रखूंगा। कितने मेहनती हैं हम, अतीत से गौरवान्वित कहानी लेकर उसको धर्म के रस में डुबोकर भारत को मध्यकाल की ओर गर्व से खीच रहे हैं।

अगर लोगों का बस चले तो चन्द्रगुप्त मौर्य के काल से भी ले जाएं और नंदवंश के कुख्यात राजाओं को तलवार, तीर के बजाय उल्टा तानों, गालियों धर्म की रणभेरी बजाकर ही मार डालें। इतिहास में जिस-जिस राजा ने गलती की उनको पूरी शिद्दत से हड़काएं और कोई हमलावर हिन्दुकुश पर्वतमाला लांघने का साहस करे भगवा झंडे से उसकी कुटाई करें।

इससे हो सकता है कि आचार्य चाणक्य भी चन्द्रगुप्त को तक्षशिला की बजाय फेसबुक से ही राजनीति और धर्म का कोर्स करने भेज दें। यूरोप, अमेरिका के वैज्ञानिक हमारे चरण रज ले, विमान बनाने की कला से लेकर मिसाइल बनाना, एम्स से ज़्यादा दवाई के नुस्खे और चिकित्सा के सुझाव बिना फीस और बिना लाइन में लगे मिल सकती है। गौमूत्र से कैंसर का इलाज, गोबर से कौन सी बीमारी दूर भागती है, एक टोकरा गोबर में टिहरी डैम से ज़्यादा विद्युत उत्पादन सब कुछ फेसबुक पर लॉगइन होते ही मिल जाता है। भले इन पोस्ट को चेपने वाले सिरदर्द में क्रोसिन की गोली लेते रहे हो!

इतिहास की रक्षा, धर्म के आदर्शों से ओतप्रोत लोग अपने महान लक्ष्य की ओर पूरी मेहनत से बढ़ रहे हैं। जातीय हिंसा, अनाप-सनाप बयानों पर चुपचाप शाबाशियों के बाद इन्हें विश्वास हो गया है कि वे सही राह पर हैं। भारतीय सेना और अर्ध सैनिक बलों के अलावा देश में इतनी सेनाएं बन रही है, क्या मजाल कोई सिकंदर या गजनवी, गौरी पुन: आने का साहस कर सकें। हो सकता हैं करणी सेना के भय से तो खिलजी अपनी पत्नी को ही माते कहकर पुकारे?

चीनी यात्री ह्वेनसांग और फाहयान को कितनी जली कटी सुनानी हैं, वास्कोडिगामा को कौन से लित्तर मारकर भागना है, उस काल में कैसे शासन और व्यवस्था चलनी चाहिए मेरे देश के प्यारे फेसबुकियों से बेहतर भला कौन बता सकता है?

इतिहास की पद्मावत के किरदार गोरा-बादल, राणा रतन सिंह, और राजपूती सेना भी आज स्वर्ग में बैठे वाह-वाह कर रहे होंगे कि जो काम इतिहास में हम न कर सकें वो आज 700 वर्ष बाद करणी सेना वाहनों में आग लगाने, मल्टीप्लेक्स के बाहर हिंसा करके कर रही है। वो आत्माएं ज़रुर लोकतान्त्रिक भारत के राजा से गुहार लगा रही होगी कि देश में आग लगाने पर 26 जनवरी पर वीरता का सम्मान इन जातीय सेनाओं को ज़रुर मिलना चाहिए।

जो इन हिंसाओं पर चिंता करे उनका देश और इतिहास को देखने का नज़रिया गलत है, उन्हें शर्म आनी चाहिए क्योंकि वह धर्म-विरोधी, राष्ट्रविरोधी, सेकुलर, वामपंथी, अवार्ड वापिसी गैंग, बुद्धिजीवी, पाकिस्तान-समर्थक, और देशद्रोही आदि एक ही कैटेगरी के तो है?

गर्व इस बात में नहीं है कि इसरो अन्तरिक्ष में कामयाबी हासिल कर रहा हैं, डीआरडीओ देश की रक्षा के लिए उन्नत हथियारों को बनाने की श्रेणी में आगे बढ़ रहा है, हम दुनिया से कदमताल करने में आगे बढ़ रहे हैं इसके उलट गर्व इस बात पर है कि हमने दीवारे भगवा रंग में रंग दी या हरा झंडा ऊंचा लहरा दिया।

उम्मीद में जी रहा हूं कब देश के विभिन्न राजनितिक मंचो से भावी नेताओं के मुख से यह सुनने को मिले कि आप तोड़-फोड़ करो, हिंसा करो, आगजनी करो बस वोट हमें ही देना देखो हमने तुम्हारा इतिहास बचाया है, भविष्य को भले ही तुम फूंक दो वर्तमान सत्ता का आनन्द तो आ ही रहा हैं। भला वर्तमान फूंककर किसका भविष्य बनता है?

एक छोटे से राज्य में आठ दिन में दस मासूम रेप और हत्या की शिकार हो जाती है उसपर कोई बात नहीं करता उल्टा इस बात पर गर्व किया जाता है कि पद्मावत की रिलीज़ का विरोध कर फिल्म प्रतिबंधित कर दी। यदि मुझे इस पर गर्व नहीं तो मेरा गर्व का पैमाना फूट चुका है? कोई ज़िंदा पद्मिनी की गर्दन की बोली लगाकर, कोई नवनियुक्त जातीय सेनाओं को समर्थन देकर आत्मविश्वास के साथ ऐसा कर रहा है क्योंकि उन्हें अंदाज़ा है कि फेसबुक का जातीय और धर्मपरायण तबका अगर उसकी इन गतिविधियों से खुश रहेगा तो चुनाव जीतने की गारंटी है।

आप खामोश होकर इनकी बातें सुनिए, ये समझते हैं कि वे एक महान कार्य कर रहे हैं, अब तक बेकार घूम रहे लोगों को जीवन का जैसे उच्चतम लक्ष्य मिल गया है, जब इनकी तुलना देश के पूर्व क्रन्तिकारियों से होने लगे तो वे अपने जीवन को भला धन्य क्यों न मानें? लोगों को गर्व है कि हमारे धर्म ग्रन्थ पढ़कर ही पश्चिम की दुनिया ने विज्ञान बनाया लेकिन कभी इस पर शर्म शायद ही किसी को आई हो कि हमने उन महान धर्म ग्रंथो को पढने के बावजूद जाति, पाखंड, अंधविश्वास, बनाया? यदि किसी को इस बात पर शर्म आती है तो उस महान आत्मा को मेरा चरण स्पर्श..

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