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बचपन की उन अंधेरी गलियों में यौन शोषण का कीचड़ पड़ा है

बचपन की कुछ ऐसी बातें हमेशा के लिये ज़हन में रह जाती हैं। ये बातें जो शायद ही वह बच्चें कभी भूल पाएं, उम्र भर चाहे वो 22 का हो चाहे 44 का या फिर कुछ 70 के आस पास का, वो बातें उनका पीछा नहीं छोड़ती। शायद ही कभी खुल कर उस पर वो कुछ बोल पाते हैं  या किसी को बता पाते हैं कि उस शाम क्या हुआ था जब माँ थोड़े समय के लिए बाहर गईं थी, कि उस दोपहर जब स्कूल से लौटते वक्त माँ नीचे नहीं आई थी और वो संडे की सुबह जब पापा ने पार्क मे जाने से मना कर दिया था क्योंकि वो घर के पास था जिसमें खुद जाया जा सकता था,  उन तमाम जगहों पर जहाँ उन्हें होना चाहिए था और वो नहीं थे तब क्या हुआ था ?

उस दिन जो हुआ था वो अच्छा नहीं था, उस दिन जो हुआ था वो बुरा था, ये बात वो बच्चे उस दिन भी जानते थें और आज भी जान रहे हैं। जिस दर्द को उन्होंने उस दिन देखा था, आज भी वह चीख उनके कानों मे गूंजती है और दुख ये कि उसके बारे मे वो चाह कर भी नहीं बता पाते।

हमेशा लगता है कि वो सभी बातें, वो समय और वो इंसान आपका पीछा कर रहा है जिसे कहीं पीछे ही समय के साथ छूट जाना चाहिए था, जैसे अच्छा समय छूट जाता है पर ऐसा होना मुमकिन नहीं हो पाता और वो आपका पीछा करना कभी छोड़ता ही नहीं। वो दिन और उस जैसे हज़ार दिन जीवन में आए और तब तक आते रहते हैं। ऐसा नहीं था कि ये मालूम नहीं था कि ये गलत है, इतना गलत कि माँ और पापा को भी नहीं बताया जा सकता और जब बताने कि कोशिशें हुई तो उन्होंने इस बात पर गौर ना करते हुए हज़ारों बार चुप करवाया। जैसे हमेशा से चुप करवाया जा रहा है इन सवालों को।

आज सवाल मेरी माँ से है जो इस बार समाज की उन तमाम माँओ की भूमिका निभा रही हैं, इस बार सवाल था मेरे पिता से जो समाज के बाकी सभी पिताओं की भूमिका निभा रहे हैं। सवाल सीधा और बेहद सरल है। सवाल समाज में रहने वाले उन सभी से जिन्होंने शोषण सहा है- जिसे बाल यौन शोषण कहा जाता है, उस शोषण को होते देख चुप्पी बांधी है और जिसने ये सब किया है। सवाल अभी भी है कि माता पिता या परिवार के किसी बड़े को बच्चों पर सबसे ज़्यादा कब ध्यान रखना चाहिए जब वो बड़े हो जाते हैं तब या जब वो छोटे होते हैं?

इसका बहुत आसानी से जवाब देते हुए दोनों ने कहा बचपन पर,  इसी आसानी के साथ उन्होंने इसकी वजह बताते हुए कहा कि तब उन्हें सब सिखाने का काम किया जाता है अच्छा क्या है, बुरा क्या है। बड़े होने पर वो समझदार हो जाते है तब अगर ना भी ध्यान दिया जाऐगा तो भी चलता है ।

इस पूरे सिखाने के दौर में ये क्यों नही सिखाया जाता कि अगर कोई गलत जगह छू रहा है तो घर में बताया जाए, क्यों नहीं सिखाया जाता कि आपके माता पिता के अलावा आपको कोई गलत जगह छूए तो आप उसे मना करो, क्यों ऐसी प्रारंभिक शिक्षा से दूर किया जाता है बच्चों को जिसके अभाव के कारण अगले कई साल उन्हें सब झेलते रहना पड़ता है। 

आंकड़ों के अनुसार प्रत्येक साल 66 लाख बच्चों को यौन हिंसा का शिकार होना पड़ता है। 70 ज़िलों में हुए एक अध्ययन में यह बात सामने आयी कि 50 प्रतिशत बच्चे यौन हिंसा के शिकार हैं। आकड़ें यह भी कहते हैं कि 5 में से 1 लड़की को यौन हिंसा का शिकार होना पड़ता है, वहीं 20 लड़कों में 1 लड़के को यौन हिंसा झेलना पड़ता है। 90 प्रतिशत मामलों में यौन हिंसा करने वाला घर का सदस्य होता है या फिर आसपास के जान-पहचान वाले लोग होते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार देश में हर 155 मिनट में एक बच्चे का रेप किया जाता है, देश में हर दस में एक बच्चे के साथ यौन हिंसा की जाती है। यूनिसेफ द्वारा भारत में 2005 से 2013 तक के स्टडी में यह सामने आया है कि 42 प्रतिशत भारतीय लड़कियों को यौन हिंसा की घटना से गुज़रना होता है। इन आकड़ों की भयावहता इस तथ्य के बाद और बढ़ जाती है कि बाल यौन हिंसा के अधिकतर मामले दर्ज ही नहीं किये जाते हैं।

ये किसी भी बच्चे के लिऐ कितना डरावना सच है कि ये सब वो झेलते हुए बड़ा हुआ। मैं बात यहां किसी लड़के या लड़की की नहीं कर रही।  मैं बात कर रही हूं  सिर्फ एक बच्चे की जो कुछ 4 साल का है जिसने शब्दों को पकड़ना सीखा है मैं बात कर ही हूं उस बच्चे की जो अभी पेन्सिल छोड़ इंक पेन से लिखना शुरू कर रहा है। मैं बात कर रही हूं उन तमाम बच्चों कि जो एकदम से खामोशी की तरफ बढ़ रहे हैं। मैं बात कर रही हूं तुम्हारे बचपन की, मैं बात कर रही हूं अपने बचपन की उन सभी घटनाओं की जिसे रोका जा सकता था, जिसे रोका जा सकता है।

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