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जब मेरी मुलाकात रियल लाइफ ‘पैडमैन’ से हुई

बहुत मुमकिन है आप आज भी अरुणाचलम मुरुगनाथम को नहीं जानते हों, हो सकता है जानते भी हों। दरअसल वही असली पैड-मैन हैं, वही जिन पर पैड-मैन पिक्चर बन रही है, अक्षय कुमार वाली। वे लो-कॉस्ट सेनेटरी नैपकीन के आविष्कारक माने जाते हैं। जिन्होंने गांव की औरतों को सस्ते में सेनेटरी नैपकीन उपलब्ध कराने के लिए खुद अपने ऊपर उस नैपकीन का एक्सपेरिमेंट किया था। साइकिल पर बैठ जाते थे और अपने जांघिये में नैपकीन के नीचे लाल रंग की थैली रखकर साइकिल चलाते थे। उनका प्रयोग सफल रहा और आज वे कोयंबटूर में लो-कॉस्ट सेनेटरी नैपकीन तैयार करने वाली मशीन की कंपनी का संचालन करते हैं। आज जब पैड-मैन फिल्म बन कर तैयार है और रिलीज़ होने वाली है, बासु मित्र याद कर रहे हैं अपनी उस मुलाकात को जब दो साल पहले वे कोयम्बटूर में पैडमैन से मिलने गये थे।

बासु मित्र:

साल 2016 के शुरुआती दिनों की बात है, पिछले 6 महीने से मेनस्ट्रुअल हाईजीन को लेकर कुछ नया करने की तलाश में लगातार इंटरनेट पर लो-कॉस्ट सेनेटरी नैपकिन बनाने की विधि और प्रोजेक्ट की तलाश में था। उसी दौरान मेरी नज़र अचानक एक स्टोरी पर ठिठक सी गई। स्टोरी थी अरुणाचलम मुरुगनाथम की। एक ही सांस में पूरी स्टोरी पढ़ गया। दिन भर दिमाग में सिर्फ यही बात घूम रही थी कि कैसे एक इंसान ने लाखों करोड़ों महिलाओं की ज़िंदगी बचाने के लिए अपने आप को झोंक दिया और एक ऐसी तरकीब और मशीन का ईजाद किया जिस कारण से वह पूरी दुनिया में मशहूर हो गया।

अरुणाचलम मुरुगनाथम, फोटो आभार- फेसबुक पेज

पहले मेल, फिर फोन से बातचीत हुई और एक रोज़ निकल पड़ा उनसे मिलने। पूरे रास्ते बस तरह-तरह के सवाल मन में उठ रहे थे कि क्या पूछना है, किस तरह से उनके इस महान प्रयोग को देखना है। अभी तक यही छवि बन रही थी कि किसी बड़े कॉरपोरेट आफिस के तर्ज पर कोई बिल्डिंग होगी, बड़ा सा चेम्बर होगा। यही सोचते-सोचते पटना से कोयंबटूर का सफर पूरा हो गया। 24 या 25 फरवरी को उनसे मुलाकात होनी थी, कोयंबटूर पहुंचने के बाद समझ नहीं आ रहा था कि कैसे उन तक पहुंचना है। कई लोगों से उनके ऑफिस का पता पूछा पर भाषाई समस्या के कारण से थोड़ी परेशानी हो रही थी।

अंतिम उपाय के रूप में झट से उन्हें फोन लगा दिया, हालांकि इसी दौरान स्टेशन के पास खड़े पुलिस के जवान ने मेरी समस्या को देखते हुए जाने का रास्ता, बस का नंम्बर समझाने के साथ-साथ अपना फोन नंबर दे दिया। इसी बीच अरुणाचलम ने फोन पर बताया कि मैं 11 बजे दिन में ऑफिस पहुंच जाऊंगा। रास्ता समझने के बाद निकल पड़ा केएनजी रोड के पास स्थित जयश्री इंडस्ट्री उनसे मिलने। जैसे-जैसे ऑफिस नज़दीक आ रहा था, वैसे-वैसे दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी। सच कहा जाए तो थोड़ा नर्वस भी था, आखिर हो भी क्यूं ना, दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों में से एक अरुणाचलम मुरुगनाथम से मिलने जा रहा था।

थोड़ी देर भटकने के बाद आखिर ऑफिस मिल गया। ऑफिस पहुंचने के बाद मेरे मन में जितने भी चित्र बने थे, सब मिट गये। वहां कोई 40 बाय 30 का गोदामनुमा कमरा था, जहां चारो तरफ मशीन और कलपुर्जों का ढेर लगा था। उसी गोदामनुमा कमरे के एक कोने में उनकी मेज लगी थी, जिस पर दो-चार फाइलें, दीवार पर कुछ तस्वीरें जिसमें से एक में अरुणाचलम बिल गेट्स के साथ नज़र आ रहे थे, दूसरी उन पर छपी टाइम्स ऑफ इंडिया की एक स्टोरी थी।

उनसे मिलने वालों में मैं अकेला नहीं था। मेरी ही तरह महाराष्ट्र से एक दंपत्ति आए थे, वो  महिलाओं के लिए काम करना चाहते थे। उनके अलावा केरल से आये एक डॉक्टर दंपत्ति भी थे, जिनके एक दूर के रिश्तेदार को राजस्थान के किसी गांव के लिए मशीन लेना था। जब तक हम कुछ समझ पाते मशीनों के बीच से निकलते हुए मुरुगनाथम चेहरे पर मुस्कान लिए हम सब का स्वागत करने आगे बढें। हमारे सवाल से पहले ही मुरुगनाथम ने बताया कि इन मशीनों को किसी गांव में भेजना है, इसलिए इसकी जांच कर रहे थे।

अपनी फैक्ट्री में मुरुगनाथम

कुछ देर औपचारिक बातों के बाद शुरू हुई, मुरुगनाथम से रियल लाइफ पैडमैन बनने की कहानी। बिना किसी लाग लपेट के मुरुगनाथम ने अपनी इस पूरी जर्नी को सुनाते हुए बताया ”शादी के समय मेरी माली हालत उतनी बढ़िया नहीं थी कि मैं अपनी पत्नी को सेनेटरी पैड खरीद के दे सकूं, जब भी मैं उसे गंदे कपड़े, राख या दूसरा उपाय करते देखता था तो बहुत तकलीफ होती थी। उसी दौरान मैंने तय कर लिया था कि मुझे कुछ करना है। शुरुआती दिनों में फुटबॉल के ब्लाडर से मैंने एक्सपेरिमेंट करना शुरू किया।

जब भी मैं गांव की महिलाओं से इस विषय पर बात करना चाहता था, तो मुझे काफी गलत नज़र से देखा जाता था। एक बार तो मुझे लड़कियों का खून पीने वाला समझ कर गांव के लोगों ने ज़ंजीर से बांध दिया था। इस दौरान काफी कुछ देखने को मिला, पारिवारिक परेशानी को झेलना पड़ा। लेकिन मेरे अंदर एक जुनून सा था कि मुझे कुछ करना है, कई बार असफल भी हुआ, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। इस दौरान कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा। सबसे ज़्यादा बड़ी चुनौती थी लोगों की धारणा बदलने की और ये सब हुआ।

पैड तैयार करने के बाद सबसे बड़ी समस्या थी, मशीन का निर्माण। क्योंकि ऐसी कोई मशीन नहीं थी जिससे कम लागत से सेनेटरी पैड बनाया जा सके। 11 साल की मेहतन के बाद यह मशीन बन कर तैयार हुआ। मेरा एक ही मकसद था कि महिलाओं के स्वास्थ्य के साथ-साथ उन्हें कैसे स्वाबलंबी बनाया जा सके। पहले जब मैं संघर्ष कर रहा था, तब लोग मुझसे दूर भागते थे, लेकिन जब सफल हो गया तो लोग मेरे पास आने लगे। लेकिन मेरे अंदर कोई बदलाव नहीं आया।

मैं आज भी अपने दो रूम वाले एक छोटे से मकान में ही रहता हूं। एक घण्टे बाद मुरुगनाथम ने अपना एक सेंटर देखने का आग्रह किया जहां ग्रामीण महिलाएं सेनेटरी पैड बनाती हैं। मुरुगनाथम वहां की एक-एक गतिविधियों के बारे में विस्तार से बताते हुए कहने लगें कि मशीन बनाने के दौरान मेरे मन में था कि इसे इस तरह से डिज़ाइन किया जाए जिसे अनपढ़ औरतें भी छोटी-मोटी ट्रेनिंग के बाद इसे चला सके। अगर कुछ गड़बड़ी हो तो उसे भी आसानी से ठीक किया जा सके।”

फैक्ट्री में काम करती महिलाएं

सेंटर विज़िट के बाद एक बार फिर हमलोग वापस ऑफिस लौटें। मुरुगनाथम ने बताया कि मार्केट में पैड बनाने के लिए मटीरियल आसानी से मिल जाता है, लेकिन मशीन की समस्या सबसे ज़्यादा थी। लोगों की समस्या को देखने के बाद मैंने ऑंटरप्रनौर बनने का फैसला किया। बिना किसी लाभ के महिलाओं के समूह, स्वंयसेवी संस्थाओं और स्कूलों में मशीन का सप्लाय करता हूं। आज देश-विदेश के लोग मशीन देखने और खरीदने आते हैं। मेरा उनसे एक ही सवाल होता है कि आप यह मशीन क्यों खरीदना चाहते हैं। मेरी कोशिश रहती है कि मैं कॉमर्शियल यूज़ करने वाले लोगों को मशीन न बेचूं।

मुरुगनाथम से मिलने के बाद आप विश्वास नहीं कर सकते हैं कि आप एक ऐसे इंसान से मिल रहे हैं, जिसने अपनी एक ज़िद से समाज से सबसे बड़े टैबू को तोड़ने का काम किया है। जब मैं उनसे मिलने जा रहा था तो मन उत्साह से भरा था और जब लौटने लगा तो मन में उम्मीद तारी थी कि दुनिया बदलेगी और यह अरुणाचलम जैसे लोगों की वजह से ही बदलेगी।


पुष्य मित्र बिहार के पत्रकार हैं और बिहार कवरेज नाम से वेबसाइट चलाते हैं। कुछ ऐसी ही बेहद इंट्रेस्टिंग ज़मीनी खबरों के लिए उनके वेबसाइट रुख किया जा सकता है।

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