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केरल के अगस्थायरकूडम पहाड़ पर महिलाओं को क्यों नहीं है ट्रेकिंग की इजाज़त?

केरल में महिलाएं राज्य की लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) सरकार से पर्वतारोहण का अधिकार मांग रही हैं। मतलब कि पहाड़ के शिखर पर पुरुषों की तरह चढ़ने, घूमने और देखने का अधिकार!

पश्चिमी घाट पर स्थित अगस्थ्यारकूडम (Agasthyarkoodam) 1868 मीटर ऊंचा पर्वत है जो नेय्यार अभयारण्य के अंदर आता है। मलयालम में इसे अगस्थ्यामाला कहते हैं। यह तमिलनाडु और केरल के बॉर्डर को छूता हुआ है। तमिल में इस पर्वत को पोथागई मल्लई (pothagayi Mallayi) कहते हैं। मुख्य रूप से यह पर्वत अशंबू (Ashmbu) पर्वतमाला से संबंद्ध है। अशंबू हिल्स में करीब 25 चोटियां है जिनमें सबसे ऊंची अगस्थ्यारकूडम की चोटी है। इस चोटी पर बहुमूल्य रोगनाशक जड़ी-बूटियां और पौधे पाए जाते हैं, यह एक जैव विविधता से समृद्ध चोटी है।

लेकिन महिलाओं का इस चोटी पर पहुंचना अभी भी स्वीकार्य नहीं है, जिसके लिए अब केरल की महिलाओं द्वारा कानूनी और सामाजिक, सभी तरीकों से लड़ाई लड़ी जा रही है। हाईकोर्ट में आगामी बुधवार को इस मामले पर सुनवाई  होनी है। हर साल 14 जनवरी से 13 फरवरी के बीच इस पर्वत पर ट्रेकिंग होती है। इस साल भी 5 जनवरी से इस ट्रेकिंग के लिए ऑनलाइन बुकिंग शुरू होनी है, लेकिन यहां 14 साल से कम उम्र के बच्चों और ‘महिलाओं’ को जाने की इजाज़त नहीं है। इसके पीछे भी सेफ्टी, सिक्योरिटी और रिस्क वगैरह जैसे थोथे तर्क दिए जाते हैं। यहां के वाइल्ड लाइफ वॉर्डन का कहना है, “हमारा सरोकार बस महिलाओं की सेफ्टी से है।”

केरल की महिला कार्यकर्ताओं का कहना है कि पिछले साल फॉरेस्ट मिनिस्टर के. राजू के साथ एक बैठक हुई थी जिसमें उन्होंने आश्वस्त किया था कि,  महिलाएं भी ट्रेक कर सकेंगी। लेकिन इस बार ट्रेक से ठीक पहले वन विभाग का नोटीफिकेशन आया है जिसमें महिलाओं के प्रवेश को प्रतिबंधित ही रखा गया है।

दरअसल इज्ज़त, सेफ्टी और रिस्क जैसे तर्कों से ‘कन्सर्न’ दिखाकर, लैंगिक समानता पर फूलमाला चढ़ा दी जाती है और इसकी आड़ में मूल कारण हमेशा छिपा रह जाता है। केरल में महिला अधिकारों के लिए कार्यरत के. सुल्फथ (K.Sulfath) के अनुसार-

“यहां के आदिवासी समुदाय की मान्यता है कि अगस्थ्य एक ब्रह्मचारी थे। अगर पहाड़ के शिखर पर महिलाएं होंगी तो ये ऐसा होगा जैसे वे अगस्थ्य के सिर पर हैं। उनका मानना है कि अगर यहां महिलाओं का प्रवेश होगा तो प्राकृतिक आपदा आ जाएगी।”

ये सब वही ‘कथा’ है जो हम सबरीमाला या शनि शिगणापुर मंदिर या अन्य जगहों के बारे में सुनते आ रहे हैं। सबरीमाला में प्रवेश के मसले पर सुप्रीम कोर्ट में केरल सरकार ने ही परंपरा का तर्क दिया था! सीधी सी बात है कि यह ट्रेक वन विभाग आयोजित करता है, अगर वहां जाना इतना ही खतरनाक है तो इसे सबके लिए एकसाथ बंद करो।

कुल मिलाकर इस तरह की घटनाओं से यही साबित होता है कि सरकार LDF की हो या BJP की, धर्म हिन्दू हो या इस्लाम या ईसाई, भारत का दक्षिणी इलाका हो या उत्तरी, जगह केरल हो या राजस्थान, जब बात लैंगिक समानता की होती है तो सब सिकुड़ जाते हैं।

फोटो आभार: फेसबुक पेज Aagasthyarkoodam

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