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सीरिया और मिडिल-ईस्ट में शिया-सुन्नी टकराव का बायप्रोडक्ट है ISIS

आर्थिक, धार्मिक और सामाजिक मुद्दों पर नागरिकों और सरकार के बीच युद्ध ही सीरिया और मध्य पूर्व (मिडिल-ईस्ट) में आईएसआईएस (ISIS) के जन्म का कारण रहा है। सीरिया में असंतोष 1973 से चले आ रहे हैं। शिया तानाशाह अल-असद हाफिज़ और फिर सन 2000 से सत्ता पद पर आसीन उनके बेटे बशर अल-असद के प्रति बढ़ता असंतोष इसका प्रमुख कारण था।

इस असंतोष की अपनी वजह थी लेकिन प्रमुख वजह यह थी कि सीरिया में शिया अल्पसंख्यक (लगभग 12%) थे और सुन्नी बहुसंख्यक (लगभग 70%), इसलिए सुन्नी सत्ता में आना चाहते थे।

अलग-अलग सुन्नी संगठनों जिनको कि देश से बाहर का भी समर्थन हासिल था ने बंदूक से विरोध करना शुरू किया। बशर अल-असद का समर्थन ईरान और रूस ने खुले तौर पर किया जबकि चीन ने सीरिया से राजनयिक संबंध बनाए रखें। असद सरकार का विरोध मुख्यत: फ्री सीरियन आर्मी ने किया। वे शिया सरकार गिरा कर सुन्नी सरकार बनाना चाह रहे थे, जिसे लेकर उनका कहना था कि वह एक सेक्युलर सरकार होगी।

फ्री सीरियन आर्मी का समर्थन और संवर्धन पश्चिमी देशों (अमेरिका और ब्रिटेन) और अरब देशों (सऊदी अरब और कतर आदि) देशों ने किया। फ्री सीरियन आर्मी के अलावा कट्टरपंथी विरोधियों मेंं अलकायदा की एक शाखा जबात-अल-नुसरा थी, जिसका  समर्थन अरब देशों ने गुप्त रूप से किया।

अबु-बकर-अल-बगदादी इराक से सीरिया, सीरिया के राजनीतिक हालत को देखते हुए अपना संगठन खड़ा करने की गरज से आया था, जिसमें वह सफल भी हुआ। सीरिया के राजनीतिक हालात को देखते हुए उसे हथियार, पैसा और लोग आसानी से मिल गए और उसने अपने संगठन इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक की घोषणा की जिसे बाद में ISIS के नाम से भी जाना गया। अपने संगठन की घोषणा करने के बाद दुनिया भर से उसे कट्टरपंथी इस्लामिक समूहों से पैसा मिलने लगा। बगदादी ने जल्द ही सीरिया के रक्का और फिर उसके बाद इराक के मोसुल शहर पर जीत दर्ज की।

जीत दर्ज करने के बाद उसने बर्बरता की सारी हदें पार कर दी। इसी कारण अल नुसरा जो कि अल कायदा की एक शाखा थी, ने 2014 में मीडिया के समक्ष एक बयान जारी किया और कहा, “इस्लामिक स्टेट के साथ हमारा कोई संबंध नहीं है, उसका एक कारण यह है कि उसने बर्बरता की सारी हदें पार कर दी हैं और वह मुसलमानों  को भी मार रहे हैं।” बगदादी की ज़िद थी कि वह सीरिया और इराक में अपना शासन चाहता था।

इराक का मोसुल जैसा शहर जीतने के बाद ISIS का उद्देश्य पूरी दुनिया जीतने का हो चला था। उसने अमेरिका, रूस और ब्रिटेन के नागरिकों को निशाना बनाना शुरू किया। अपहरण करके उनको जान से भी मारा, उसके इन कारनामों कि आंच धीरे-धीरे इन देशों तक पहुंचने लगी। लिहाज़ा अपने-अपने नागरिकों के राजनीतिक हितों की रक्षा के लिए अमेरिका और रूस ने ISIS के ऊपर हवाई हमले शुरू कर दिए।

बगदादी इस बात को भूल गया था कि बंदूक, बलात्कार और बर्बरता से दुनिया नहीं जीती जाती है। जिस दिन से वह मानवता के लिए खतरा बनना शुरू हुआ, उसी दिन से वह खत्म होना भी शुरू हो गया। लेकिन ISIS संगठन को खत्म होने और शक्ति विहीन होने में कितना समय लगेगा, क्यों ना हम इसे समय पर ही छोड़ दें।

हमें गौर इस बात पर करना चाहिए कि इस युद्ध में कितने इंसान मरे और कितनी बार इंसानियत की मृत्यु हुई।

ISIS को शक्ति विहीन करने के लिए अमेरिका और रूस दोनों ने सीरिया और इराक में क्लस्टर बॉम्बिंग (समूह में ही एक परिधि में बमबार) करी। इससे आतंकियों की जगह आम लोग भी मरे।

ऐसी भी खबरें थी कि सीरिया की असद सरकार ने रासायनिक हमला किया जिससे 700 से भी अधिक लोगों की मौत हुई। इस लड़ाई से आम जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ और अस्त-व्यस्त हुआ।

इस युद्ध के कारण सीरिया में लगभग 76 लाख लोगों ने आंतरिक पलायन किया। ज़्यादातर लोगों ने गांव छोड़ दिया और शहरों की ओर पलायन कर गए। तकरीबन 40 लाख लोग सीरिया छोड़कर टर्की, लेबनान और जॉर्डन जैसे पड़ोसी देशों में शरण लेने के लिए चले गए।

इन शरणार्थियों को पश्चिमी देशों में जर्मनी को छोड़कर किसी भी अन्य देश ने ना शरण दी और ना ही समर्थन। शरणार्थियों पर संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त ने आंकड़े जारी करते हुए यह जानकारी दी कि 1945 के बाद की यह सबसे खराब स्थिति है।

इस युद्ध के कारण सीरिया तबाह हो चुका है। एक देश के बचने के लिए मूलभूत आवश्यकताएं होती हैं जैसे- सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा, रोटी, कपड़ा और मकान आदि; और सीरिया में इन सबका नामोनिशान तक मिट चुका है। युद्ध कोई भी जीते पर मानवता और इसे जीतने वाले हमेशा हारे ही रहेंगे और सीरिया की हालत उनको मुंह चिढ़ाती ही रहेगी।

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