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सोशल मीडिया की कड़वी हकीकत से रूबरू करवाती है शॉर्ट फिल्म ‘नेकेड’

पिछले कुछ महीनों से (जब से जियो टेलिकॉम की सेवा लॉन्च हुई है) मुझे यूट्यूब पर मूवीज़ देखने का शौक चढ़ा हुआ है। इसी क्रम में कल एक शॉर्ट फिल्म ‘नेकेड’ (Naked) देखी। जियो फिल्म फेयर अवॉर्ड 2018 के लिए नॉमिनेट होने वाली इस शॉर्ट फिल्म को अभिनेत्री कल्कि कोचलिन और रिताभरी ने अपनी लाजबाव अदाकारी से संवारा है।

आज करोड़ों लोग फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल मीडिया साइट्स के ज़रिए एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। आज हमारी बातें केवल हम तक या हमारे आस-पास के लोगों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि एक क्लिक से वह दुनिया के करोड़ों लोगों तक पहुंच सकती है। ऐसे में मीलों दूर बैठे जिस इंसान को हम जानते नहीं, जिससे हमारा कोई लेना-देना नहीं, अगर वह आपको कभी परेशान करने लगे या किसी तरह से बदनाम करने की कोशिश करे, तो आपको किस तरह से उसका सामना करना चाहिए? उसके प्रति आपका नज़रिया कैसा होना चाहिए? इन्हीं सवालों पर बात करती है फिल्म नेकेड।

इस फिल्म में कई ऐसे सवाल उठाए गए हैं, जिन्हें शायद हर लड़की इस समाज में रहने वाले हर उस शख्स से पूछना चाहती है जो उसे नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं। एक तरह से कहें तो ‘आज़ाद’ देश की नागरिक होने के बावजूद एक लड़की के मन में अपनी आज़ादी को ‘फुल ऑन एंजॉय’ न कर पाने की जो घुटन है, यह फिल्म उसकी वजहों को तलाशने की कोशिश करती है।

यह फिल्म हमें बताती है कि हममें से हर किसी को अपनी ज़िंदगी के बारे में फैसले लेने का पूरा हक है। हम क्या पहनें, क्या करें, कहां जाएं,  इन सबके बारे में कोई और कैसे डिसाइड कर सकता है? यह हमारी ज़िंदगी है तो इन सबके बारे में निर्णय भी हम ही लेंगे, न कि कोई और!

यह फिल्म कल्कि के किरदार के बहाने समाज के उस नज़रिये पर भी सवाल उठाती है, जिसके अनुसार लड़कियों के रेप होने की वजह उनके छोटे कपड़े हैं, क्योंकि अगर ऐसा होता तो एक सिर से पांव तक बुर्के में ढंकी महिला का रेप तो नहीं होना चाहिए था, लेकिन होता है। फिर उसके लिए कौन ज़िम्मेदार है? आखिर क्यों हम लड़कियां अपनी मर्ज़ी से अपनी ज़िंदगी नहीं जी पा रही हैं?

क्यों हमें अपनी छोटी-छोटी खुशियों और ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए दूसरों से परमिशन लेने की ज़रूरत पड़ती है? इन सभी सवालों के जबाव तलाशती है यह फिल्म।

यह फिल्म इस लिहाज़ से भी महत्वपूर्ण है कि यह हमें व्यक्ति की निजता का सम्मान करना सिखाती है। यह बताती है कि हर इंसान का अपना एक निजी स्पेस होता है, जिसमें दखलअंदाज़ी का हक किसी को नहीं है।

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