Site icon Youth Ki Awaaz

सोशल मीडिया ट्रोल्स हमारे समाज से ही आते हैं किसी दूसरे ग्रह से नहीं

रात के ग्यारह बजे थे, मेरी दोस्त जो केरल से है, उन्होंने मुझे फ़ोन किया और पूछा कि मैं कसाबा कंट्रोवर्सी को लेकर क्या सोचती हूं। हालांकि उस वक्त तक मैंने उस खबर को इतना फॉलो नहीं किया था तो मेरी दोस्त ने ही उस घटना के बारे में विस्तार से सारी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि किस प्रकार पार्वती जो एक जानी-मानी फिल्म एक्ट्रेस है, ने बिना किसी का नाम लिए केरल इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में सिनेमा में चल रहे स्त्री-द्वेष पर बात रखी, और पूछने पर ही ‘कसाबा’ फिल्म का उदाहरण दिया।

ममूटी जो कि इस फिल्म के हीरो थे, उनके फैंस को यह बर्दाश्त न हुआ और वह खुलेआम पार्वती को रेप थ्रेट्स भेजने लगे।

मेरी दोस्त ने बताया कि इस फिल्म में एक बेहद ही कंट्रोवर्शियल डायलॉग है, जिसमे ममूटी अपनी सहकर्मी पुलिस ऑफिसर को बलत्कार के लिए धमका रहे हैं। जो भाषा इस डायलॉग में इस्तेमाल की गई है वो भी बेहद आपत्तिजनक है। पार्वती ने इसी सीन पर चिंता जताई थी, लेकिन वो इस फिल्म को निशाना न बनाकर सिनेमा जगत में सेक्सिज़म पर प्रहार कर रही थी, जो स्वयं एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।

मेरी दोस्त का कहना था कि ममूटी एक सिनियर और जाने-माने एक्टर है, यहां तक कि उन्हें सिनेमा जगत के भगवान का दर्जा दिया जाता है। फिर क्यों नहीं उन्होंने अपने स्टारडम का उपयोग कर इस सीन में अल्टरेशन करवाया। एक नए एक्टर से इंटरवेंशन की उम्मीद करना कठिन है, पर ममूटी जैसे स्टार से यह उम्मीद की जा सकती है कि वे आपात्तिजनक सीन्स पर आवाज़ उठाएं। अगर सिनियर एक्टर इसके लिए आगे नहीं आएंगे तो नए कलाकारों से क्या उम्मीद की जा सकती है?

लेकिन आवाज़ उठाना तो दूर उन्होंने खुद ऐसे डायलॉग बोले है जिसे सुन के मैं सन्न रह गई! “मैं तुम्हारा ऐसा बलात्कार करूंगा कि तुम्हारे पीरियड्स तक रूक जाए” क्या यह लाइन किसी फिल्म में इतनी आवश्यक है कि उन्हें सीन से काटा न जा सके? या फिर ये लाइन उन लाखों लोगों की फंतासी को पूरा करने के लिए बोला गया है जो सड़क पर चलती, तेज़ आवाज़ में बात करती, अपने अधिकारों और आज़ादी के लिए लड़ती लड़कियों से बोलना चाहते है? या फ़िर ये लाइन्स सिर्फ इसलिए बोली गई क्यूंकि हमारे समाज में रेप कल्चर इतना प्रेवेलेंट है कि हमें समझ में ही नहीं आ रहा कि यह डायलॉग हमारी मानसिकता पर कितना असर छोड़ सकता है।

पार्वती इसी मानसिकता पर प्रहार कर रही थी, पर बदले में जो भी हुआ उसने यह साबित कर दिया कि रेप कल्चर की इस मानसिकता ने हमारे दिमाग को तो पहले ही सड़ा दिया है। अब हम इस सड़ी हुई मानसिकता के साथ इतने कम्फर्टेबल हैं कि उसकी गंध भी हमें विचलित नहीं करती है। पार्वती के इस स्टेटमेंट के बाद ममूटी के फैंस खुलेआम पार्वती को रेप थ्रेट भेजने लगे। प्रिंटो नामक एक 24 वर्षीय युवक जिसे पार्वती और उसके परिवार को ऑनलाइन धमकाने के चार्ज में गिरफ्तार किया गया था, को प्रोड्यूसर जोबी जॉर्ज ने जॉब तक ऑफर की।

इसके अलावा बहुतों ने मेम्स बनाए, पार्वती को इन्सल्ट किया, रेप की धमकियां दी। यहां तक कि जिसने भी पार्वती को सपोर्ट करने की कोशिश की वो भी इन फैन्स की चपेट में आ गए। जब पार्वती ने ममूटी से इसके सन्दर्भ में बात करनी चाहा तो उन्होंने यह कहकर टाल दिया कि उन्हें इन सब की आदत है। उन्हें लगा ये उनके बारे में है, पर ये उस महिला के बारे में था जिसने खुलेआम किसी बात पर अपना मत व्यक्त किया था जो शायद एक औरत के लिए बेहद संगीन गुनाह है और ऑनलाइन ट्रोलिंग के ज़माने में तो यह बेहद खतरनाक गलती है।

मैं स्वयं सोशल मीडिया पर पर कुछ चार-पांच साल से ही एक्टिव हूं। बहुत ज़्यादा अनुभव नहीं है, पर खासतौर पर एक महिला यूज़र होने के नाते जितना कुछ देखा है उससे मैं यह कह सकती हूं कि भले ही सोशल मीडिया विचारों के आदान-प्रदान का एक आसान ज़रिया है, पर यह एक्सचेंज इतना भी आसान नहीं। मैंने देखी है उन लोगों की नफरत, जिनकी सोच एक दूसरे से मेल नहीं खाती। इतना फ्रस्ट्रेशन, इतना गुस्सा, इतना इनटॉलेरेंस जो यहां देखने को मिलता है, उससे आपका मन भीतर तक तार-तार हो जाता है।

पार्वती के केस में भी यही सब हुआ, यह मुद्दा दो कारणों से बहुत ही महत्वपूर्ण है। एक है- यह हाईलाइट करता है सिनेमा जगत में सेक्सिज़म के प्रचलन को, जो बेहद आम है और दूसरा कारण है एक महिला कलाकार के मत रखने से होने वाली खलबली। यह दोनों कारण कोई नए नहीं है, चाहे बॉलीवुड हो या टोलीवुड, मोलीवुड या भोजीवुड, महिला किरदार को पुरुषवादी सोच के सांचे में ढालना कोई नई बात नहीं है। ना ही यह नहीं बात है जब महिला कलाकारों को यह बताया गया हो कि वो केवल अंग-प्रदर्शन और नाच-गाने से सबका मनोरंजन करें और अपने ओपिनियन रखने जैसी “फालतू” बातों पर ध्यान ना दें। चाहे वो सोनाक्षी सिन्हा हों या सोनम कपूर या फिर पार्वती, अपने मत रखने की सज़ा सबको मिली है, जिसमें ट्रोल्स का बड़ा “योगदान” है।

आखिर कौन हैं ये ट्रोल, जिनसे डर से अक्सर हम अपनी सोच को खुलकर रखने में डरते हैं? कौन हैं ये लोग जो बिना सोचे समझे बरस पड़ते हैं, जिन्हें बिल्कुल भी गंवारा नहीं कि कोई उनकी सोच के खिलाफ कुछ कहे? कौन हैं ये लोग जो किसी फेक आईडी के पीछे अपना चेहरा छुपा के कड़वी बातों और गालियों से वार करने से नहीं झिझकते?

ये ट्रोल आप और हम ही हैं। जहां सोशल मीडिया हमें अपनी बात रखने का प्लेटफार्म देता है, वही ट्रोल्स का डर उस आज़ादी को सिकोड़ देता है। किसे चाहिए बेकार की टेंशन और ये लोग तो कुछ सीखने से रहे जैसे रवैये से इस ट्रोल्स को बेहिसाब कॉन्फिडेंस मिलता है। महिला यूज़र को ट्रोल करना तो और भी आम है। 1.औरत हो कर ऐसी सोच! 2. औरत हो, अपनी सीमा में रहो। 3. औरत है, क्या बिगाड़ लेगी? 4. अब हमारी तरह गंदी ज़बान का इस्तेमाल तो करेगी नहीं और किया तो मतलब यह खुद गन्दी (केरेक्टरलेस) लड़की है। इस तरह के नाना कारणों से बाल की खाल निकालने ये लोग बड़ी ही बेशर्मी के साथ पहुंच जाते हैं। एक बात और, यह केवल महिला बनाम पुरुष नहीं है। कई बार महिलाएं भी खुद दूसरी महिलाओं पर धावा बोल देती हैं। सारा खेल हमारी सोच का ही तो है!

सोच प्रकट करना गलत नहीं है, पर किसी की बात को पूर्णत: खारिज कर देने का व्यवहार सोचनीय है। आप भले ही किसी बात पर सहमत ना हों, लेकिन उसे गलत ठहराना आपका हक नहीं है और सामने वाले को आपसे अलग सोच रखने के कारण उसे सज़ा का पात्र समझना कहां की इंसाफी है? भले ही ट्रोलिंग का स्रोत इंडिविजुअल फ्रस्ट्रेशन हो पर इसे यूं ही खारिज़ कर देना उपाय नहीं है। देखा जाए तो ट्रोल एक सामाजिक मनोदशा को दर्शाता है।

ट्रोल की मानसिकता भी इसी समाज में पनपती है, तो किसी भी विषय पर होने वाली ट्रोलिंग सामाजिक रिएक्शन से अलग नहीं है।

जैसा मैंने पहले भी कहा, ये ट्रोल आप और हम ही हैं। समाज, ट्रोल और जिसे ट्रोल किया गया है, में एक अंदरूनी सम्बन्ध है। पार्वती ने सेक्सिज़म के मुद्दे पर आवाज़ उठाई उस समाज की बेहतरी के लिए जिसमें वो रहती है, और वही समाज उसे धमकी देकर इस बात की पुष्टि भी कर रहा है कि वाकई यह बेहद संगीन मुद्दा है। हमारा समाज हमारी सोच को रूप देता है और हमारी सोच समाज को। आगे आपकी मर्ज़ी कि इस समाज को आप क्या रूप देना चाहते हैं?

Exit mobile version