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नागरिक के सर्वशक्तिमान होने की प्रक्रिया है रिपब्लिक

गणराज्य वास्तव में एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें गण अर्थात जनता ही मायने रखती है और वही अंतिम और निर्णायक ताकत भी होती है। असल में गणराज्य सत्ता में जनता की भागीदारी से उसके सर्वशक्तिमान बनने की एक प्रक्रिया भर ही है। इस शासन प्रणाली में जनता शासन की किसी प्रणाली पर सहमत होती है और उसके संचालन के लिए चुनाव द्वारा प्रतिनिधि चुनती है। दुनिया के 206 देशों में 159 अभी गणराज्य होने का दावा करते हैं।

वास्तव में आधुनिक गणराज्य अर्थात रिपब्लिक, यूरोप के पुनर्जागरण काल की देन है और यूरोप का पुनर्जागरण काल मध्यकाल और आधुनिक युग को जोड़ने वाला एक पुल है।

असल में 14वीं से 17वीं सदी का यूरोपीय पुनर्जागरण काल यूरोप में हुई औद्योगिक क्रान्ति और औद्योगिकरण की राजनीतिक-सांस्कृतिक अभिव्यक्ति है। पुनर्जागरण काल में पुरानी सांमती व्यवस्था के खिलाफ एक उग्र उभार और असंतोष था और औद्योगिकरण से पैदा हुए नये तबके जैसे नये पूंजीपति और शहरों में कारखानों के मज़दूरों के रूप में नये नागरिक और नया पैदा हुआ मध्यवर्ग पुरानी शासन प्रणाली को हटाकर नई शासन प्रणाली चाह रहा था।

नये तबकों की इसी राजनीतिक ज़रूरत ने नये गणराज्यों और लोकतंत्र की नींव रखी। वैसे रिपब्लिक ग्रीक भाषा के ‘पोलिटिया’ शब्द का लेटिन अनुवाद है। पुनर्जागरण काल के सिसरो जैसे विद्वानों ने पोलिटिया को रिपब्लिक के रूप में अनुवादित किया। यही राजनीतिक व्यवस्था आगे चलकर रिपब्लिक या कहें हिंदी का गणराज्य बनी।

हालांकि ऐसा नही है कि रिपब्लिक अथवा गणराज्यों का वजूद पहले नही था। प्राचीनकाल में भी रिपब्लिक होने के सबूत मिलते हैं। यूरोप में 400 से 27 ईसा पूर्व तक रोम में इन गणराज्यों का ज़िक्र इतिहास में मिलता है। एथेंस, स्पार्टा और रोमन गणराज्यों का सबूत ईसा पूर्व के यूरोप में दिखाई देता है। हालांकि यह रिपब्लिक आधुनिक गणराज्यों से एकदम अलग थे। इसके अलावा एशिया में भारत में भी महाजनपदों का ज़िक्र इतिहास में दिखाई देता है जिसे गणराज्यों के एक समूह के रूप में विभिन्न इतिहासकारों ने वर्णित किया है।

इसके अलावा यदि हम वैशाली और अजातशत्रु के बीच हुए युद्ध को देखें तो ऐसा माना जाता है कि यह युद्ध प्राचीन गणराज्यों के खिलाफ उभरती हुई नई केन्द्रीय रातसत्ता और कहें तो सामंतशाही की शुरूआत का प्रतीक था। वैशाली की हार में अंतिम गणराज्य की समाप्ति और नए सामंती युग की शुरूआत को देखा जा सकता है। वैसे भारतीय पौराणिक कथाओं में भी सभा, गण और संघ जैसे शब्द भारत में गणराज्यों की मौजूदगी की तरफ ही इशारा करते हैं। इसके अलावा मध्यसागर के पूर्वी इलाके और अफ्रीका के अलग भागों में भी रिपब्लिकों के वजूद दिखाई देते हैं।

बहरहाल कह सकते हैं कि रिपब्लिक का इतिहास पुराना भी है और यह मौजूदा दौर की ज़रूरत भी है। आधुनिक गणराज्यों का वजूद और उसकी मज़बूती उसमें नागरिकों की भागेदारी से तय होती है।

नागरिकों के अधिकारों का बढ़ना और नीति तय करने में उनकी भागीदारी ही रिपब्लिक के मौजूद होने और असली रिपब्लिक होने की पहचान होती है। जितना नागरिक अधिकारों का विस्तार होगा उतना ही केन्द्रीय सत्ता कमज़ोर होगी और उतना ही रिपब्लिक मज़बूत होगा।

भारतीय गणराज्य की नींव उसका संविधान है जो घोषणा करता है कि भारत एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और जनवादी गणराज्य है, जो नागरिकों को न्याय, समानता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है और उन्हें आपसी भाईचारे को बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है। भारत का संविधान ही उसका सर्वोच्च कानून है जिसका निर्माण आज़ादी के बाद चुनी हुई संविधान सभा की संविधान ड्राफ्ट कमेटी द्वारा तैयार ड्राफ्ट के आधार पर किया गया।

ड्राफ्ट कमेटी का गठन 29 अगस्त 1947 को किया गया। तैयार ड्राफ्ट को 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा लंबी बहस के बाद स्वीकार किया गया और 26 जनवरी 1950 को यह संविधान लागू हुआ और इस प्रकार भारत एक संप्रभु जनवादी गणराज्य बन सका। असल में 26 जनवरी 1930 को कांग्रेस के अधिवेशन में भारत के लिए पूर्ण स्वराज्य की घोषणा की गई थी, इसीलिए 26 जनवरी को ही भारत में अपना संविधान लागू करते हुए भारत को गणराज्य घोषित करने के लिए चुना।

मौजूदा दौर में रिपब्लिक के उत्सव का आयोजन देश के प्रत्येक नागरिक के लिए रिपब्लिक को जीवंत और मज़बूत बनाने के शपथ उत्सव की तरह है। आधुनिक रिपब्लिक के विस्तार और मज़बूती में ही वर्तमान दौर के नागरिक अधिकारों के फैलाव और व्यक्तिगत आज़ादी का रहस्य समाहित है और यही रिपब्लिक की मज़बूती किसी भी समाज के समावेशी होने का आईना भी होती है।

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