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निजी अनुभवों से एक मज़बूत आर्टिकल लिखने के 9 टिप्स

Youth Ki Awaaz में पिछले तीन सालों से काम के दौरान मैंने हज़ारों पर्सनल स्टोरीज़ को पढ़ा, एडिट किया और पब्लिश किया। हमारे यूज़र्स ने ऐसे कई निजी अनुभव YKA पर शेयर किए जिन्हें लाखो लोगों ने पढ़ा और पसंद किया। इनमें से बहुत सी कहानियां ऐसी भी रही जिनका असर हमने समाज पर होते हुए भी देखा। यकीन मानिये एक असरदार निजी अनुभव लिखना इतना भी कठिन नहीं है।

ये कुछ सुझाव हैं जो आपको एक असरदार निजी अनुभव लिखने में सहायता करेंगे:

1. आपकी कहानी किसी सामाजिक मुद्दे से जुड़ी हो

Youth Ki Awaaz सामाजिक न्याय की बात करने वाला एक प्लैटफॉर्म है, जहां हर कोई सामाजिक मुद्दों पर अपने विचार रख सकता है। ऐसे में जो निजी कहानियां किसी ज़रूरी मुद्दे पर बात करती हों वो ज़्यादा लोगों तक पहुंचती हैं।

उदाहरण के लिए पिछले साल 2 दिसंबर को ऋतुराज हेला ने छुआछूत और जाति आधारित भेदभाव पर अपने निजी अनुभवों को एक लेख के रूप में लिखा। इस लेख में ऋतुराज, पढ़ने वालों को अपने बचपन से वयस्क होने तक के सफर पर ले जाते हैं और बेहद ही आसान शब्दों में यह समझा देते हैं कि कैसे एक दालित बच्चे को बचपन से ही छुआछूत और भेदभाव का सामना करना पड़ता है। अपनी खुद की कहानी को वो एक ज्वलंत सामाजिक मुद्दे से जोड़ देते हैं।

मेरी जाति जानने के बाद मेरी दोस्ती लोगों के लिए गाली हो जाती थी

वो चप्पल मार के ट्यूब-वेल से बाहर निकाल देते, शौच करते समय ढेला मार के डिब्बे का पानी गिरा देते और ‘कैप्टेन व्योम’ देखते समय बिजली काट देते थे।

2 महीने से भी कम समय में ऋतुराज की यह स्टोरी 25000 से भी ज़्यादा लोग पढ़ चुके हैं और 7000 से ज़्यादा लोग इस आर्टिकल को फेसबुक पर शेयर कर चुके हैं।

जून 2017 में अदिति शर्मा ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने की कोशिश में, ब्राहमणवाद और जातिवाद जो रूप देखा उसे अपने इस लेख के ज़रिये Youth Ki Awaaz पर साझा किया। यूनिवर्सिटी में ऊंचे पदों पर बैठे लोगों की असंवेदनशीलता को जब अदिति अपने अनुभवों के माध्यम से सामने रखती हैं तो आप उनके गुस्से, हैरानी और नर्वसनेस को सहजता से महसूस करते हैं। उनके अनुभव की इस यात्रा में शुरू से लेकर अंत तक पढ़ने वाले उनसे जुड़े रहते हैं। एक लेख के ज़रिये पढ़ने वालों से संवाद करने का यह एक बहुत अच्छा उदहारण है।

रोल नंबर भेज देना DU में एडमिशन हो जाएगा, आखिर तुम ब्राह्मण हो

तब मेरी मुलाक़ात एक ऐसे सज्जन से हुई जिन्हें मुझसे पूरी सहानुभूति थी। ‘अरे रे! तुम तो ब्राह्मण हो फिर भी नहीं लिया? अगली बार इंटरव्यू से पहले मुझे सूचित करना’

अदिति की यह कहानी 7000 से भी ज्यादा लोगों ने पढ़ी और करीब 9000 लोगों ने इसे फेसबुक पर शेयर किया।

इसी कड़ी में एक और उदाहरण शालू अवस्थी के इस लेख का है, जो उन्होंने सोशल मीडिया ट्रोलिंग के अपने अनुभव पर लिखा था। रवीश कुमार पर किए गए एक आपत्तिजनक ट्वीट पर अपनी राय रखने पर उनके साथ सोशल मीडिया पर बड़े पैमाने पर हुई अभद्रता के बारे में बेबाकी के साथ शालू ने लिखा।

ट्विटर पर रवीश का पक्ष लिया तो मुझे लोगों से मिलें रेप थ्रेट्स

“मेरी गर्मी शांत करने के लिए भी कुछ भक्तों ने मर्दानगी दिखानी शुरू कर दी। किसी ने तो ये तक पूछ लिया, ‘तू लड़की ही है न।’ अब अपनी बात रखने के लिए क्या मुझे लड़का होना पड़ेगा?

शालू का यह लेख करीब 15000 लोगों ने पढ़ा और तकरीबन 9000 लोगों ने इसे फेसबुक पर शेयर किया।

2. आपकी कहानी को सबसे बेहतर आप ही कह सकते हैं:

आपके बारे में आपसे बेहतर कोई नहीं जानता, इसलिए ज़ाहिर सी बात है कि आपकी कहानी भी आप ही सबसे बेहतर तरीके से सुना सकते हैं। जब भी अपने अनुभवों पर लिख रहे हैं तो हमेशा कर्ता के रूप में (फर्स्ट पर्सन में) लिखें यानि आपके लेख में ‘मैं’ या ‘मेरा’ जैसे सर्वनाम का प्रयोग करें।

3. अपने लेख की समयसीमा और एक साफ खाका तय करें:

शुरुआत से ही पढ़ने वालों पर पकड़ बनाए रखना बेहद ज़रूरी है, तभी वो आपका पूरा लेख पढ़ेंगे। लेख के मुख्य मुद्दे पर आने में ज़्यादा शब्द ना लें, कहीं ऐसा ना हो कि समा बांधने में ही 2-3 पैराग्राफ लग जाएं। पाठक को लेख की शुरुआत में ही पता लग जाना चाहिए कि विषय क्या है।

इसके बाद लेख में टाइमलाइन का खयाल रखना भी बहुत ज़रूरी है। हो सकता है कि आप अपने जीवन के अलग-अलग समयों का ज़िक्र लेख में कर रहे हों, लेकिन पढ़ने वालों को भी वह समझ में आना चाहिए। इसके लिए आप तारिख और उम्र का ज़िक्र कर सकते हैं या अलग-अलग समय के बारे में साफ-साफ बता सकते हैं।

उदाहरण के लिए अगर आप अपने बचपन के किसी अनुभव को वर्तमान के किसी अनुभव के साथ जोड़कर लिख रहे हैं तो केवल ‘था’ और ‘है’ से भी यह बात स्पष्ट हो सकती है।

4. विस्तार से लिखें लेकिन ईमानदारी के साथ लिखें:

आपके लेख में किसी घटना के बारे में लिखते समय उसे अच्छे से समझाएं, अगर पढ़ने वाले उस घटना की कल्पना करने में कामयाब होते हैं तो यह आपकी सबसे बड़ी सफलता है। इसके लिए आप उस वक्त जो महसूस कर रहे थे और आप के आस-पास मौजूद लोगों के हाव-भाव के बारे में बताया जा सकता है। कभी-कभी घटनास्थल का ज़िक्र करना भी इसे प्रभावी बना देता है।

लेकिन कभी-कभी इस प्रयास में हम घटनाओं को बढ़ा-चढ़ा कर भी बताने लगते हैं। उदहारण के लिए- चार-पांच लोगों के समूह को भीड़ बता दिया जाए या संभव है कि सोशल मीडिया पर ट्रोल करने वाले असल में 4 लोग हों लेकिन उनकी संख्या 50 बता दी जाए।

ऐसा कभी ना करें, जो है उसे वैसे ही लिखें। अतिशियोक्ति से बचें और ईमानदारी और सच्चाई के साथ लिखें, यकीन मानिये आपके अनुभवों को समझने वाले कई रीडर्स आपको मिलेंगे।

 5. भावनाओं, संवादों और उदाहरणों से पढ़ने वालों को बांधें:

किसी भी निजी कहानी का आधार एक कभी ना भुलाया जा सकने वाला मज़बूत एहसास होता है। यह डर, प्रेम, गुस्सा, रोमांच या पीड़ा या फिर कुछ भी हो सकता है। ज़ाहिर सी बात है की इसका लिखने वाले पर गहरा असर हुआ है और यही उसके लिखने की वजह भी बनता है। यही भाव आपके लेख में भी दिखना चाहिए। आप जिस भी घटना को लेकर अपनी कहानी कह रहे हैं, यह ज़रूर लिखें कि उस समय आपको कैसा लग रहा था।

उस घटना में शामिल अन्य लोगों की कही बातों को हूबहू लिख देना भी इसका एक तरीका हो सकता है, लेकिन उन्हें हाईलाइट ज़रूर करें और इसके लिए डबल कोट या संवाद सूचक चिन्ह (“…”) का इस्तेमाल करें।

6. घटना से जो सीखा उसका भी ज़िक्र करें:

आर्टिकल खत्म करते हुए यह ज़रूर लिखें कि उन अनुभवों से आपने क्या सीखा और वह आपके लिए क्यूं खास हैं, इनके कारण आपने खुद में क्या बदलाव महसूस किए। अगर आप अपने अनुभवों को किसी बड़ी सामाजिक समस्या से जोड़कर देखते हैं तो उस समस्या को लेकर अपने विचार ज़रूर लिखें। उस मुद्दे पर से जुड़ी अन्य जानकारियों और आंकड़ों का भी ज़िक्र किया जा सकता है। वर्तमान में आपके लिए उन अनुभवों के क्या मायने हैं उसे लिखकर आप अपने लेख को समाप्त कर सकते हैं।

7. ज़रूरी नहीं कि आपके पास सभी सवालों के जवाब हों: 

आपकी कहानी का मकसद अपना निजी अनुभव और उससे मिली सीख लोगों तक पहुंचाने का होना चाहिए, दुनिया बचने का नहीं। यह अच्छी बात है कि आप अपने अनुभवों को उन्हें किसी बड़ी सामाजिक समस्या से जोड़कर देख पा रहे हैं, लेकिन सभी जवाब आपके पास मौजूद हों यह ज़रूरी नहीं है। वह लिखे जो आप महसूस करते हैं, ज़बरदस्ती का ज्ञान आपके लेख को हल्का ही बनाएगा।

8. कहानी को भटकने ना दें

जब आप अपने कुछ खास अनुभवों के आधार पर निजी कहानी लिखते हैं तो संभव है कि आप उन घटनाओं का भी ज़िक्र कर बैठें जो कहानी के मूल विषय से ज़्यादा या बिल्कुल भी ताल्लुक न रखती हों। लेख पूरा करने के बाद इसे एडिट करें, इस तरह से जो कुछ भी आपको गैरज़रूरी नज़र आए उसे लेख से हटा लें। केवल भावनाओं के आधार पर ना तय करें कि लेख में क्या होना चाहिए। अगर फिर भी कोई शंका रह जाती है तो अपने किसी दोस्त या करीबी से जो उन अनुभवों के दौरान आपके साथ रहा हो, से बात करें, उनकी राय लें।

9. पहचान उजागर करना नहीं है ज़रूरी:

अगर आप कुछ ऐसा लिख रहे हैं जिससे आपको खतरा हो सकता है तो यह आप अपना नाम उजागर किए बिना भी लिख सकते हैं। मानसिक, शारीरिक और यौन शोषण के अनुभव या किसी अपराध से जुड़े अनुभव पर लिखते समय नाम उजागर ना करना समझ में आता है। लेकिन अगर आप कोई पॉजिटिव स्टोरी लिख रहे हैं या फिर अपनी उपलब्धियों की बात कर रहे हैं तो नाम छुपाना, लेख की विश्वसनीयता को घटा देता है। इसलिए ऐसा ना करें।

किसी ऐसी घटना का ज़िक्र करते वक्त जिसमें पुलिस को रिपोर्ट किया जाना ज़रूरी हो या जिसकी पुलिस तहकीकात चल रही हो, बिना ठोस सुबूत के आरोपी की पहचान ज़ाहिर ना करें। ऐसा करने पर आप पर मानहानि का केस हो सकता है।

ऐसा कभी ना सोचे कि आपकी कहानी मामूली है या गैरज़रूरी है। अगर पहले भी कई लोग ऐसे अनुभव साझा कर चुके हैं तो इससे आपके अनुभवों का महत्व कम नहीं हो जाता। अगर लम्बे समय से आपके मन में कोई बात हो जो आप शेयर करना चाहें तो और इंतज़ार न करें, लिखें और Youth Ki Awaaz उसे खुद से पब्लिश करें।

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