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हिटलर और मेडोना के बीच फंसे आडवाणी और लालू

1998 के समय लिखा गया बेहद विवादास्पद और चर्चित नाटक ‘हिटलर इन लव विद मडोना’ को लेखक फ्रैंक हुज़ूर अब पुस्तक के रूप में सामने लेकर आए हैं। नाटक बेशक हिटलर के अभिनेत्री मडोना के प्यार में पड़ने पर केंद्रित है, लेकिन नाटक की एक बड़ी रोचकता इसमें भारतीय राजनीति में भाजपा द्वारा घोले गए सांप्रदायिक रंग और सामाजिक न्याय की ताकतों द्वारा उसके विरोध के रोचक वर्णन की है।

नाटक के छठवें भाग में लेखक फ्रैंक हुज़ूर एक हिंदूवादी नेता लाल हरि को हिटलर के पास ले जाते हैं। वास्तव में लालकृष्ण आडवाणी को ही लेखक ने लाल हरि के पात्र के रूप में पेश किया है और नाटक के विवादास्पद होने का बड़ा कारण यही रहा। इसी कारण तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने इस नाटक के दिल्ली के हिंदू कॉलेज में होने जा रहे मंचन को रुकवा दिया था।

हिटलर द्वारा यहूदियों के नरसंहार से प्रभावित लाल हरि उसके पास जाकर अनुरोध करता है कि वो भारत में भी मुसलमानों के सफाए में मदद करे। इस पर हिटलर लाल हरि को बुरी तरह से लताड़ता है और बताता है कि वास्तव में यहूदी जिस तरह से जर्मनी के लिए नुकसानदायक थे, उस तरह से भारत में ब्राह्मणवादी ताकतें नुकसान पहुंचा रही हैं।

नाटक में हिटलर बोलता है कि जिस तरह से 3% यहूदियों ने पूरे जर्मनी के सारे संसाधनों पर कब्जा किया और उसी तरह से ब्राह्मणवादी ताकतों ने भारत पर कब्जा कर रखा है। हिटलर का संदेश है कि भारत के एससी-एसटी और ओबीसी को मुस्लिमों से नहीं, बल्कि ब्राह्मणवादी ताकतों से खतरा है। लाल हरि बहुत चापलूसी करके हिटलर को मनाने की कोशिश करता है लेकिन उसके शातिर इरादों को समझ हिटलर उसे डांट-फटकार कर भगा देता है।

इसके बाद लाल हरि भारत लौटकर फिर से सांप्रदायिक ज़हर फैलाने में लग जाता है। बाबरी मस्जिद ढहाने की घटना से उत्साहित होकर अपने लोगों के बीच लाल हरि बताता है कि उसकी योजना किस तरह से दलितों और पिछड़ों को गुलाम बनाने की है। नाटक की रोचकता तब और चरम पर पहुंच जाती है, जब नाटक में लाल बिहारी नाम के पात्र के रूप में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की एंट्री होती है।

नाटक में लाल बिहारी को सामाजिक न्याय के प्रतीक और दलितों-पिछड़ों के रखवाले और उनकी आकांक्षाओं की प्रतिमूर्ति के रूप में दिखाया गया है। इसी तरह से बाबरी मस्जिद की रक्षा करने के लिए कड़े कदम उठाने वाले नेता के रूप में मुलायम सिंह यादव का भी नाटक में ज़िक्र आता है।

लालू उस समय रथयात्रा निकालने वाले आडवाणी को गिरफ्तार करके लोकप्रियता के चरम पर थे और इसीलिए आडवाणी, लालू को जनता के बीच देशद्रोही और धर्मद्रोही के रूप में पेश करने की कोशिश करते हैं। लाल बिहारी और मुलायम सिंह यादव अपने विशाल जनसमर्थन की मदद से लाल हरि के मंसूबे नाकाम कर देता है। ये खबर हिटलर तक भी पहुंचती है, तो हिटलर खुद लाल बिहारी से मिलने आता है।

लाल बिहारी हिटलर को भारत की ब्राह्मणवादी ताकतों के षड्यंत्रों और अत्याचारों के बारे में बताने की कोशिश करता है, लेकिन ये जानकर हैरत में भी पड़ जाता है कि हिटलर को पहले से इनके बारे में अच्छी जानकारी है। हिटलर लाल बिहारी को बताता भी है कि लाल हरि ने मुस्लिमों के नरसंहार के लिए उससे मदद मांगी थी।

लाल बिहारी यह जानकर काफी प्रसन्न होता है कि हिटलर, भारत का असली जहर मुस्लिमों को नहीं, बल्कि ब्राह्मणवाद को मानता है। नाटक में यह भी दिखाया गया है कि किस तरह से लाल हरि और उसके लोग दंगों की साजिश करते हैं और मस्जिद में सुअर का मांस फिंकवाकर मुस्लिमों को भड़काने की कोशिश करते हैं और जब एक मौलवी मुस्लिमों को शांत रहने की सलाह दे रहा होता है तब मौलवी पर हमला करावाकर उसकी हत्या भी कर देते हैं।

इसके बाद से देशभर में अमन कायम करने और मुस्लिमों के दिल में फिर से यकीन पैदा करने के लिए लाल बिहारी कई रैलियां करता है और लाल हरि तथा उसकी पार्टी के खतरनाक मंसूबों के प्रति लोगों को आगाह करता है। नाटक के इस छठवें भाग के अंत में लाल बिहारी अपने विश्वस्त सहयोगी हबीब से कहता है कि अब लाल हरि के कमंडल को मंडल, फुले, अंबेडकर, पेरियर, रामस्वरूप वर्मा, जगदेव कुशवाहा, फूलन देवी, कर्पूरी ठाकुर, लोहिया, जेपी, राजनारायण, ललई सिंह और कबीर की शिक्षा क्रांति के ज़रिए पराजित करना है। फ्रैंक हुज़ूर ने अपने छात्र-जीवन में इस नाटक को लिखा था और अब करीब 20 साल बाद एक सिद्धहस्त पत्रकार और अंतरराष्ट्रीय लेखक के रूप में फिर से इसे लेकर आए हैं।

90 के दशक में भारतीय राजनीति में भारतीय जनता पार्टी ने आडवाणी की अगुवाई में किस तरह से ज़हर घोला, ये सब हिटलर और मडोना की प्रेम कहानी के रूप में देखने को मिल सकता है। 1998 में जब इस नाटक पर रोक लगी थी, तब भारतीय मीडिया ने इसकी काफी चर्चा की थी। अखबारों ने इस पर शीर्षक दिए थे- आडवाणी इज़ ए विलेन इन हिटलर-मडोना लव स्टोरी।

फिलहाल ये नाटक अंग्रेज़ी में है, लेकिन इसमें लाल हरि और लाल बिहारी के संवाद हिंदी में दिए हैं जिससे हिंदी पाठकों को भी सुविधा होगी। आगे लेखक की योजना इस नाटक को हिंदी में लाने और साथ ही मंचन करने की भी है।

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