Site icon Youth Ki Awaaz

अझोला को पेट में नहीं,कानून के दरवाजे पर लिख कर मार दिया गया

 

माँ तुम मुझे कब तक मारोगी ? जब मै गर्भ में आती हु तब मार देती हो, किसी तरह गर्भ से जन्म लेती हु तब मार देती हो, जब मै कुछ बड़ी होती हु तब मेरे अधिकार तुम्हारे आँख के सामने छीन लिए जाते है तब मार देती हो.. जब कोई हमें घूरता है तब चुप करा के मार देती हो, जब कोई छेड़ता है तब समाज और इज्जत के नाम पर चुप करा देती हो! आखिर कब तक..? तुम इन मर्दों के गुलाम बनी रहोगी… आखिर कब..? हमें आजादी मिलेगी और मै खुली हवा में सास ले सकुंगी! कुछ तो जबाब दो…

यह सवाल अझोला और उनकी सहेलियों के थे जिन्होंने विद्यालय के शिक्षक पर यौन उत्पीडन के आरोप खुले महफ़िल में लगाये जहा पर सेंकडो नहीं हजारो की संख्या में गाँव के मर्द और विद्यालय के बच्चे मौजूद थे! जो अपनी मुछो पर ताव दे कर समाज के बुराई को मिटने वाला पहरेदार कहे जाते थे और वह भी मौजूद थे जो आधुनिक युग में समाज सुधारने के लिए बड़े बड़े प्रतिष्ठान खोल रखे है उनके भी ठीकेदार मौजूद थे और उस भरी सभा में अझोला और उसकी सहेलियों ने कहा की ये शिक्षक हमारे कमर पर हाथ रखते है और कंधे पर गंदे गंदे हरकत करते है! और कोने में खड़ा कर के पप्पी देने की बात कहते है! यह बात मानो आग की तरह फ़ैल गई और कई सवालों को जन्म दिया था ! सवाल आरोप का नहीं था! सवाल तो मानवीय गरिमा का था की पुरे विद्यालय के बच्चों, राज, समाज और राज्य की मंत्री के सामने अझोला और उसकी सहेलियों ने बड़े हिम्मत से अपने समस्या को रखा था! और कहा था की हमारे साथ ऐसा हुआ है! क्या यह कहने से पहले अझोला ने यह नहीं सोचा था की पुरुष प्रधान समाज में हम अपने मान सम्मान और गरिमा को दाव पर लगा रहे है! इस घटना के बाद इस समाज के लोग उन्हें किस नजर से देखेंगे? या क्या कहेंगे? और उन महाशय का क्या होगा जो उनके गुरु है जिन्होंने पढाया है जिनका अपना प्रतिष्ठा है! पर ये सवाल अपने जगह थे अभी तो बस वही कहना था जो वर्षो से दिल में जख्म किये था! बिल्कुल यह सब ख्याल आया होगा.. पर जब आरोप लगे तो वह तुरन्त का आवाज नहीं था वह पिछले चार साल से उनके दिलो में कोढ़ जैसा घर किये जा रहा था!

अझोला को याद था जब उसके शिक्षक एक बार दिल्ली ले कर गए थे तो वहा भी उसके साथ गलत करने की कोशिश की गई थी तब उसने घर आ कर माँ को सारी बात बताई थी और अपने पापा से बोली थी की हम उस स्कुल में नहीं पढ़ेंगे.? पर बाप ने गरीबी कह कर वही पढने को मनाया था और माँ ने घर के इज्जत की बात कह कर समझा दिया था! अब क्या करती गरीबी और घर की इज्जत दोनों का सवाल था! जो वर्षो से पीब की तरह नासूर हो रहा था

 

 

तभी तो आज एक भड़ास के रूप में बाहर आ गया! जो किसी के सामने नहीं डिगा, हजारो की भीड में भी अपने आप को कायम रखा.. बिल्कुल वह वो आवाज था जो कैद था और आज उसे आजादी मिल गया था! और अझोला और उनके सहेलियों के दिल के जख्म हलके हो गए थे मानो सदियों से जमा मवाद बाहर आ गया! उस दिन बहुत रोई रात भर रोई और माँ पापा और न जाने समाज के कितने लोग यह कहने आ रहे थे की पगली तूने यह क्या कर दिया एक गुरु तुल्य शिक्षक पर आरोप लगा दी ऐसा नहीं करना था!

पर उसके दिल में जो आराम और सुकून महसूस हो रहा था वह वही जान रही थी जख्म हलके हो चले थे मन यही कह रहा था की हमने तो कह दिया उसकी इज्जत उतार दी हमें बहुत परेशान करता था! अब वह दस के बिच में अपने न्याय की गुहार मानो लगा दी थी!

अब अझोला के न्याय की तैयारी हो रही थी! यह सब राज्य की मंत्री ने अपने कान से सुने थे!  और एक बार नहीं दो से चार बार अझोला से पूछा गया था की किसी के बहकावे में आ कर तो ऐसा नहीं बोल रही थी! अझोला ने बड़े हिम्मत से कहा था नहीं! उसके तुरंत बाद कार्यवाही के आदेश दिए और कुछ ही पलों में वह शिक्षक सलाखों के अन्दर था! सब को यकी हो गया कार्यवाही हो गया! आखिर शिक्षक तो जेल चला गया! कई लोगो ने अपनी मुछ पर ताव देते हुए पान गुमटी और मयखानों में अपने बहादुरी के वीर गाथा सुना चुके थे!

पुलिस ने भी शिक्षा विभाग से आवेदन पा कर तत्काल कार्यवाही की थी वो सभी धारा लगा दिए गए थे जो लगाने थे! गाँव में चर्चा गर्म हो गया था! किसी ने नहीं कहा था की उसे छोड़ना है!  उन सभी लडकियों ने अझोला को मन ही मन बधाई दी थी की अच्छा काम की, आज नहीं तो कल होना था! हमलोग नहीं बोला पाए पर किसी ने तो बोला! आखिर उस शिक्षक रूपी मानव के अन्दर शैतान रूपी दानव जो आज बेनकाब हो गया था! कई लोगो ने जो उसी चोले को पहन रखा था उनका कहना था की वो निर्दोष है!

कुछ ही दिन बीते थे की उसी विद्यालय के बच्चे विद्यालय से निकल कर जिला प्रशासन और मंत्री के घर पर मुर्दाबाद के नारों के साथ उस शिक्षक को न्याय दिलाने पहुचे जिस पर अझोला ने अपने लाज शर्म और अपनी वह सभी एक लड़की की मर्यादा को तोड़ कर आरोप लगाये थे!

अब यह खेल उन बुधिजीवियो के समझ से परे था की एक बार विद्यालय में सभी बच्चो के बिच आरोप लगाया जाता है, और दूसरी बार उसी विद्यालय के बच्चे शिक्षक के लिए न्याय मांगने थाना आते है! अगर न्याय ही मांगना था तो उस समय न्याय क्यों नहीं माँगा गया था जब अझोला ने यह आरोप लगाई थी! उस समय राज्य के मंत्री को यह सभी बच्चे एक स्वर में क्यों नहीं बोल सके की अझोला का आरोप निराधार है! दोनों चीजे बच जाती शिक्षक का इज्जत और अझोला का सामाजिक मर्यादा, तब तो अझोला समाज के बुरे नजर और सवाल नहीं झेलने पड़ते!

पर कानून और सामंती समाज अपने तरीके से काम करता गया! जिसमे उन्होंने भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसने समाज और बच्चो के अधिकार के लिए काम कर रहे थे! उनके भी स्वर बड़े उचे थे की शिक्षक को फसाया गया है!

आरोप के बाद अझोला घर पर रही उसे नहीं पता था की वह जिस समाज से सामने अपने इंसाफ की भीख मांगी है वह गर्भ से ही उसका हत्यारा रहा है! आखिर अब क़ानूनी प्रकृया में यह सिद्ध करने के लिए जो अझोला के बयान कानून के दरवाजे पर होना था वह सब कुछ नहीं हुआ!

और जिस लकीर को अझोला ने हजारो के बीच खीचा था उन्ही लोगो ने उसे छोटा कर दिया और इतना छोटा कर दिया की अंततः अझोला और उसके सहेलियों के माँ बाप ने यह कह दिया की हम समाज से बाहर नहीं है

अझोला के आवाज की कीमत लगाई गई और कानून के दरवाजे पर अझोला के परिवार ने यह लिखा कर दे दिया की हमारी बेटी बहकावे में यह आरोप लगाई है और वो शिक्षक गुरु तुल्य है और बड़े अनुशाशनप्रिय है! भला वो कैसे मेरी बेटी के साथ ऐसा कर सकते है! चंद क़ानूनी प्रकृया से शिक्षक बाइज्जत बरी हो गए और यह बात अखबारों ने भी बड़े अक्षरों में लिखा गया और उनकी इज्जत वापस आ गई!

पर इस बार अझोला को पेट में नहीं कानून के दरवाजे पर यह लिख कर मार दिया गया था की उसकी बेटी के साथ कोई छेड़ छाड़ नहीं हुआ है!

(यह कहानी पूरी तरह काल्पनिक है! जिसका समाज राज्य या किसी व्यक्ति विशेष से इसका सम्बन्ध नहीं है! अगर हुआ तो बस संयोग मात्र समझा जायेगा)

 

 

Exit mobile version