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अभी और महत्वपूर्ण काम बाकी है।

आज आम आदमी पार्टी के तीन साल पूरे होने के दस दिन बाद का यह बारहवां दिन है। और इस बीच उनके कई बड़े-बड़े बदलाव के दावे को लेकर लगे होर्डिंग्स को मैं दिल्ली भर में देखता रहा हूं और लगातार ही मेरे मन मे यह सवाल उभरता रहा है कि महज़ इन बदलाव के बदले आम आदमी पार्टी को एक बेहतर पार्टी कहा जा सकता है क्या?

कल मैं अपने एक जर्मनी के दोस्त के साथ बैठा था। सहज ही बातचीत में उन्होंने भारत की केंद्रीय पार्टियों का ज़िक्र किया। भाजपा, कॉंग्रेस और आप। केंद्रीय पार्टी के रूप में कोई आम आदमी पार्टी का नाम भी ले यह अपने आप में आम आदमी पार्टी की उपलब्धी हो सकती है। पर ऐसा है नहीं, यह हम सब जानते हैं।

तीन साल पहले आम आदमी पार्टी एक क्रांति का संकेत बनकर उभरा था जो धीरे-धीरे धुंधला पड़ता गया। आज जब AAP ने तीन साल पूरे किए हैं तो उनके पास उप्लब्धी के रूप में गिनाने के लिए पानी की समस्या का समाधान, शिक्षा में सुधार, और कुछ अन्य बदलाव ही हैं। पर प्रमुख रूप से पानी और शिक्षा ही है जिसपर उन्होंने काम किया और उनका असर भी दिखता है। पर अन्य प्रमुख मुद्दों का क्या?

तीन साल पूरे होने के उपलक्ष्य में आप ने कई आयोजन किए और लोगों से सवाल पूछने को कहा। मैंने व मेरे कुछ दोस्तों ने भी कुछ सवाल पूछे पर उनका जवाब AAP की ओर से हमें नहीं दिया गया। AAP ने प्रमुखतः उन्हीं सवालों का जवाब दिया जिनपर उन्होंने काम किया है या  काम करने का प्रयास कर रही है।

मसलन हमारा सवाल दिल्ली के पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सुधार को लेकर ही था। जिनपर उन्होंने कोई टिप्पणी नहीं किया। मतलब अब भी ट्रांसपोर्ट में सुधार उनके लिस्ट में नहीं है। और ना ही उन्होंने दिल्ली में लगातार बढ़ रही पॉकेटमारी और स्नैचिंग मामले में कोई टिप्पणी किया।

पहले जब मेट्रो किराया में अकल्पनीय बढ़ोतरी नहीं हुई थी तब भी डीटीसी में ज़बरदस्त भीड़ हुआ करती थी और अब जब मेट्रो फेयर में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हो गयी है तब तो डीटीसी की ओर अधिक लोगों का आना हुआ है। वैसे भी दिल्ली में डीटीसी आवाजाही का एक प्रमुख सस्ता साधन है।भले ही यह सुलभ न हो।पिछले साल से पिछले वर्ष, आप ने “odd-even” का कांसेप्ट शुरू किया था, तब भी मैं यह सोच रहा था कि क्या इस तरह लोगों को पब्लिक ट्रांसपोर्ट यूज़ करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है? शायद नहीं।क्योंकि पब्लिक ट्रांसपोर्ट तो पहले से ही लचर स्थिति में है।इसका मतलब हुआ कि odd-even का बुनियाद ही खोखला था? बिल्कुल। और सही मायनों में प्रदूषण को लेकर जो प्रयास किये जा रहे है वह भी तब तक संभव नहीं जब तक पब्लिक ट्रांसपोर्ट सर्व सुलभ नहीं हो जाते है।

डीटीसी में ज़्यादातर लोवर मिडिल क्लास रोज़ सफर करती है। उनके पास यही एकमात्र विकल्प बचा है। क्योंकि मेट्रो ने भी उन्हें खदेड़ दिया है। तो भले ही उन्हें घंटे भर से ज़्यादा बस का इंतज़ार करना पड़े और बस के गेट पर लटकना पड़े, या बस की भीड़ में उनकी मोबाइल फोन गायब हो जाए, पर वे यूज़ डीटीसी का ही करेंगे। क्योंकि DTC ही उनके आर्थिक हालात के अनुकूल है।

अब “आम आदमी पार्टी” शुरू ही हुई थी आम होने के विश्वास से। और वह आम लोगों के इस महत्वपूर्ण समस्या को आजतक सॉल्व नहीं कर पाई है। और न ही इसपर कुछ जवाब देती है, बल्कि यह कहा जा सकता है कि पिछली सरकार में पब्लिक ट्रांसपोर्ट कमोबेस इतनी लचर स्थिति में नहीं थी। सरकार में आने के बाद आम आदमी पार्टी ने बसों की संख्या बढ़ाने के बजाय ऑरेंज कलर की लो फ्लोर बसें थी उन्हें सड़को से हटा दिया। इससे बसों की संख्या में भारी कमी आयी।दूसरी ओर डीटीसी की हालत इतनी खराब है कि कभी वह बीच रास्ते ही खराब हो जाती है तो कभी ओवर लोड के कारण आगे नहीं बढ़ पाती।

मैं भी डीटीसी में सामान्यतः सफर करता हूँ। और आते जाते लोगों से बातचीत करता रहता हूँ। जिस तरह उनकी बातों से लगता है या खुद मैं अपनी मानसिकता को डीटीसी के उस कोचमकोच भीड़ में ऑब्जर्व करता हूँ तो यही पाता हूँ कि थोड़ी भी अगर समृद्धि हो तो डीटीसी में सफर करना कोई छोड़ देगा।पर क्या यह समाधान है?

लोकतंत्र में एक व्यक्ति रोज अपनी समस्या से लड़ता रहता है।और उन्हीं समस्याओं के समाधान के लिए वह अलग अलग पार्टी पर अपना विश्वास जताती है।क्योंकि वह खुद तो रोटी पानी की लड़ाई लड़ रहा है और इसी में उसके सुबह से शाम बीत जाते है फिर कुछ और वह कब करेगा।तो एक आम मिडिल क्लास से क्रांति की उम्मीद इस समय मे दूर की बात है पर भरोसा कायम रखा जा सकता है।

खैर,  उनके  पास विकल्प का अभाव है इसलिए तमाम तरह की कोचमकोच के बाद भी लोग डीटीसी को झेलेंगे ही।एक बात और गौर करने की है।और वह है डीटीसी के भीड़ में होने वाली पॉकेटमारी। अब यह कहना भी गलत न होगा कि युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराना भी सरकार की जिम्मेदारी है।और यह किसी भी व्यवस्था की सबसे शर्मनाक पल होगा कि युवा ही पॉकेटमारी जैसे धंधे में लग जाये।पिछले चार सालों में डीटीसी सफर के दौरान मैंने अनेकों बार पॉकेटमारी के बाद के समय को देखा है।तो कई बार चोर को पकड़े जाते भी देखा है।बहुत बार चोर पकड़ में नहीं आते क्योंकि अक्सर वे तीन-चार के ग्रुप में इस घटना को अंजाम देते है।और वे सफल भी हो जाते है।फिर लाचार पब्लिक, मुंह ताकती रह जाती है।पुलिस के पास भी जाने का उन्हें कोई फायदा नहीं होगा।मैं कई बार खुद गया हूँ पुलिस के पास वह चोरी का FIR लिखने के बजाय गुम होने का FIR लिखती है।

तो इस मामले में भी आम आदमी पार्टी नाकाम रही है।आगे वह इन मुद्दों पर क्या काम करेगी पता नहीं।हालांकि जिस तरह केंद्र इस पार्टी से उलझी है, आगे कुछ ठोस बदलाव की आशा “आप” से नहीं की जा सकती।कुछेक मामलों में “आप” के प्रयास सराहनीय है।मसलन दिल्ली के अलग अलग जगहों पर कला को पट्रोनॉइज करना और प्रोत्साहन में कार्यक्रम का आयोजन।शिक्षा में बुनियादी सुधार के बजाय इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार के लिए आप चर्चा में है ही।

तो आम आदमी पार्टी के मौजूदा गतिविधि को देखकर कहा जा सकता है कि वह पारंपरिक तरीके से राजनीति करना सीख गई है।मसलन सीलिंग वाले मुद्दे को भुनाने की बात ही क्यों न हो या बात बे बात पे केंद्र सरकार के अलग अलग मुद्दों पर आवाज उठाने की बात हो।तो इस तरह आप पार्टी अलग तो है पर वह अब आम न होकर पारंपरिक राजनीति की राह पे है।और तीन साल की उप्लब्दी उनकी बड़ी उप्लब्दी हो सकती है पर जनता के लिए तो नही ही है।

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