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आशिक़ों के प्रकार(व्यंग्य लेख)

आशिक़ों के प्रकार
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नवरात्र के समय 9 पवित्र दिन ओर रमज़ान मे पवित्र माह उसी की तर्ज पर चल रहा है ये मुहब्बत का सप्ताह।
ये प्रेमिकाओं के लिए भगोरिया के हॉट से कम नही है।
ये कोई वेलेंटाइन महाराज की याद में लोग-बाग हर्षोउल्लास से मनाते है।
ये सप्ताह प्रेमी-प्रेमिका के लिए सर से पर्स तक जाते हुए रोने गाने तक लगा रहता है।
हमे इस सप्ताह कई नव प्रेमियों के दर्शन भी हो जाते है।एक से बढ़कर एक अद्भुत शक्ल वाले।आइए कुछ विश्लेषण करते है हमारे भारतीय आशिक़ों पर…..
प्रथम दृष्टया नज़र उस प्रकार के आशिक़ नव-युवक दिखाई देते है जो एक तरफा मुहब्बत की गिरफ्त में होते है और वो अपनी ख्वाबों की परी को गैर की मोटरसायकल पर उड़ते हुए देखते रहते है।एक तरफा मुहब्बत वाले चाय की दुकानों पर सुट्टा मारते हुए आते-जाते जोड़ो को देख देख कर अपनी आंखें सेक लेते है और तेनालीराम के सपनो में खो जाते है।

एक ओर प्रकार है जो अथाह मुहब्बत के सागर में गोते लगाते रहते है।इस सप्ताह वो अपनी हूरो की मल्लिका की सारी मनोकामना पूर्ण करते है।चाहे जेब मे खोटा सिक्का ना हो लेकिन बीमारी का लोन लेकर प्रेमिका को अनुदान देते है और लोन देने वाले रहते है नोकरी करने वाले दोस्त।ये आशिक़ सप्ताह-ए-इश्क़ प्रारम्भ होने से पूर्व ही जुगाड़ मे लग जाते है।इन्हें पढ़ाई,नोकरी, घर से कोई लेना-देना नही रखते है।ये रोते ही रहते है ओर मिलता भी कुछ नही वो भी खर्चा करने के बाद भी।ये कलाकार भी होते है ये कभी-कभी अपने लहू से प्रमिका को खत भी लिखते है और हाथों पर ब्लेड से नाम लिखने की कला भी इन्ही के पास होती है।इन आशिको के लिए दिल से मेरी सांत्वना।

एक ओर प्रकार आता है जिन्हें खुद से ही कभी उम्मीद नही होती कि कभी लड़की पटेगी लेकिन ये युवक एक छोटी सी उम्मीद की किरण ले के चलते है।ये युवक एक कन्या पर लक्ष्य निर्धारित कर लेते है फिर पूरी मेहनत के बाद भी असफ़ल रहते है क्योंकि ये खुद से ही परिभाषित रहते है कि मुझसे नही पटेगी।
एक प्रकार ओर होता है ताड़ने वाले ।ये सिर्फ और सिर्फ जोड़ो को या सिंगल लड़की,ग्रुप में जा रही लड़की को ताड़ते है और कुछ नही होता और ये मज़ाक भी बहुत उड़ाते है ये देख देख कर को वो लड़की कैसी है और असका बकरा कितना भोंडी शक्ल का है।ये छोरे हर जोड़े मे कमी पेशी निकालते रहते है और यही भविष्य में जीजा-फूफा वाली हरकतें करते है।ये भी प्यार की खोज में रहते है।

एक और याद आ रहा है बिना खर्च किये प्यार की खोज करने वाले आशिक़।ये बहुत ही कंजूस होते है।ये रहते है सच्चे प्यार की तलाश में लेकिन निःशुल्क।ये खुद के 5रु से चाय नही पीते लेकिन उम्मीद अप्सरा की करते है और चाहते है मेरा खर्चा यही करे इसीलिए ये पैदल चलने वाली कन्याओं पर ध्यान नही देते है । ये सिर्फ स्कूटी सवार ओर कार वालीयों पर ध्यान लगाते है ओर ह
हां इन आशिको के पास सायकिल तक नही होती है।

एक ओर प्रकार बताता हूं और इन आशिको का में ह्र्दय से पंखा(फैन)हूँ। ये आशिक़ बेवड़े, झामरु,10 दिन तक ना नहाने वाले,कचरे में पड़े रहने वाले,भोंडी शक्ल वाले,गन्दे कपड़ो मे जीवन निर्वहन करने वाले होते है लेकिन इन्हें जो प्रेमिका मिलती है वो प्रेमिका के साथ उनका बैंक,एटीएम, क्रेडिट कार्ड,ड्राइवर,रिचार्ज करने वाली,खाना बनाने वाली बाई सब होती है।उन छोरो के कच्छे से लेकर उनके तेल तक का खर्चा माँ रूपी प्रेमिका करती है।धन्य है ऐसे आशिक़।

और कुछ प्रकार के आशिक़ बच गए हो तो आप बता दिजीये….।

लेखक-राहुल सोलंकी

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