सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के छात्रों के उत्थान के लिए भारतीय संविधान में विशेष प्रावधान किए गए हैं, जैसे सामाजिक प्रतिनिधित्व के लिए आरक्षण और आर्थिक मदद के लिए स्कॉलरशिप का प्रावधान है।
केंद्रीय सरकार के सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय द्वारा 1944 में लाई गई पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप योजना, लंबे समय से अनुसूचित जाति/जनजाति (एससी/एसटी) तबके के छात्रों की आर्थिक रीढ़ रही है।
इससे हाई स्कूल से आगे की पढ़ाई करने में दलित और आदिवासी स्टूडेंट्स को आर्थिक मदद मिलती है। इन प्रावधानों को स्टूडेंट्स के हित में लागू करने की ज़िम्मेदारी राज्य की है। जबकि 2014-15 में 25 प्रतिशत शिक्षा बजट की कटौती विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के द्वारा की गई और 2017-18 के बजट की तुलना में 2018-19 के बजट में फिर से 4 प्रतिशत की कटौती की गई।
शिक्षा बजट में लगातार कटौती से अनुसूचित जाति और एससी/एसटी स्टूडेंट्स सबसे ज़्यादा प्रभावित हो रहे हैं। टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान (TISS) के छात्रसंघ ने स्कॉलरशिप बंद होने के बाद प्रबंधन से कई बैठकों में स्कॉलरशिप को चालू रखने की मांग की, जिसे TISS प्रबंधन ने स्वीकार नहीं किया।
प्रबंधन के इस छात्र विरोधी रवैये ने TISS के छात्रों के आन्दोलन को जन्म दिया। (TISS) छात्रसंघ ने मुंबई, हैदराबाद, गुवाहाटी और तुलजापुर (महाराष्ट्र) कैंपस के सभी छात्रों के साथ मिलकर, 21 फरवरी से सांस्थानिक बंद का ऐलान किया। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) के स्टूडेंट्स को संस्थान से मिलने वाली आर्थिक मदद रोके जाने के बाद से ही छात्रों में रोष है, जिसके चलते उन्होंने अनिश्चितकाल के लिए बंद की घोषणा की।
लगातार पांच दिन से आन्दोलनरत स्टूडेंट्स को प्रबंधन से किसी भी तरह का सकारात्मक आश्वासन नहीं मिला जिसके चलते 26 फरवरी को TISS हैदराबाद के 6 स्टूडेंट्स ने अनिश्चितकाल के लिए भूख हड़ताल की भी घोषणा कर दी। स्टूडेंट्स का यह आन्दोलन हर दिन एक नया मोड़ ले रहा है। तमाम विश्वविद्यालय के स्टूडेंट्स, सामाजिक और राजनीतिक संगठनों ने इस आन्दोलन का समर्थन किया और स्टूडेंट्स की मांग पूरी हो इसके लिए सरकार पर दबाव भी बनाया। स्टूडेंट्स का एक समूह मानव संसाधन मंत्रालय, दिल्ली भी जा पहुंचा और वहां भी स्कॉलरशिप के मुद्दे पर आन्दोलन शुरू कर दिया, जिसका समर्थन जेएनयू के स्टूडेंट्स ने किया।
स्टूडेंट्स ने इस आन्दोलन को टिस_बंद_है का नाम दिया है। स्टूडेंट्स का कहना है कि जब तक हमारी मांगे नहीं स्वीकार कर ली जाएंगी तब तक ये आन्दोलन चलता रहेगा क्यूंकि जब सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े स्टूडेंट्स को पैसे न होने के वजह से पढ़ने नहीं दिया जाएगा तो TISS जैसे संस्थानों के खुले रहने का क्या मतलब?
2015 में ओबीसी वर्ग के स्टूडेंट्स की स्कॉलरशिप बंद कर दी गई थी, जिसका प्रभाव इस वर्ग के स्टूडेंट्स पर साफ नज़र आता है। 2014-15 में 22 प्रतिशत ओबीसी स्टूडेंट्स ने TISS में प्रवेश लिया था और स्कॉलरशिप बंद होने के बाद 2015-16 और 2016-17 में इनकी संख्या घटकर 18 प्रतिशत हो गई थी। जिस तरह से एससी/एसटी स्टूडेंट्स की स्कॉलरशिप बंद की जा रही है, उससे इस समाज पर बुरा असर पड़ेगा, जबकि संविधान समाज को सशक्त करने की बात करता है और स्कॉलरशिप बंद करने का यह फैसला निश्चय ही संविधान विरोधी, है जिसे वापस लिया जाना चाहिए।
[लेखक TISS (मुंबई कैंपस) के पूर्व छात्र हैं।]