स्वतंत्रता के बाद देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होने शुरू हुए थे, यह क्रम 1967 तक निर्बाध रूप से चलता रहा इसके बाद कुछ राज्यों में विधानसभा भंग होने के कारण एक साथ चुनाव होंने का सिलसिला थम गया और अब यह स्थिति है कि देश में हर चार- छह माह के अंतराल में कहीं न कहीं चुनाव होते रहते है कभी विधानसभाओं के और कभी लोकसभा या फिर उपचुनावों के।
पिछले कुछ सालों में विभिन्न स्तरों पर कई बार यह कहा गया कि लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ कराने के बारे में विचार करना चाहिए संप्रग सरकार के समय इस बारे में एक संसदीय समिति इस नतीजे पर पहुंची थी कि ये दोनों चुनाव साथ-साथ कराने जा सुझाव एक अच्छा विचार है लेकिन इस मामले को आगे नही बढ़ाया जा सका।
वर्तमान सरकार ने इस पर जोर दिया है हमारे राष्टपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दोनों लोगों ने खुल कर लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ कराने का आग्रह किया और इस पर चर्चा करने की बात कही है इसके पहले भी कई लोगो ने इस बात की उठाया था पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी इसके बारे में बताते रहते थे
यदि लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ होने लगे तो सरकारी खजाने के धन की बड़ी मात्रा में बचत होगी और राजनीतिक दलों के धन की भी एक लाभ यह भी होगा कि राजनीतिक दलों के रह-रह कर चुनाव की मुंद्रा में आने की जरूरत नहीं रहेगी और वे सारा ध्यान अपने एजंडे पर केंद्रित कर सकेंगे लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ कराने के लिए कुछ विधानसभाओं के कार्यकाल में या तो कटौती करना पड़ेगा या वृद्धि करना पड़ेगा
यदि भारत को तेजी से आगें बढ़ना है और विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा होना है तो उसे बार -बार चुनावों के दौर का सामना करने से बचने के उपाय खोजने ही होंगे अब आगे देखने वाली बात होगी कि सभी राजनीतिक पार्टियों की सहमति होती है कि नही।
गौरव सिंह