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शोषण की जागरूकता ही रोकथाम की सर्वोत्तम उपाय

बाल यौन शोषण एक घोर अपराध है। जैसाकि शुरुआत के तीन शब्दों से बखुबी समझ में आ रहा है कि यह कितना घृणित शर्मनाक करतूत है। जिसके पहला शब्द “बाल”, भारतीय समाज में छोटे बच्चे को भगवान स्वरूप माना गया है। दूसरा शब्द “यौन”, अमूमन यौन शब्द मनुष्य के प्रजनन अंगों की और इंगित करता है। वैसे अगर बात सिर्फ यौन की करे तो इसकी कोई समूल्य परिभाषा अब तक नहीं आ पाई है। तीसरा अंतिम और सबसे अहम शब्द “शोषण” इसलिए इस शब्द की व्याख्या भी अतिआवश्यक हो जाता है। जैसाकि अमूमन इस शब्द के नाममात्र से ही मन व्याकुल हो जाता है।
सामान्य शब्दों में शोषण को परिभाषित करू तो कोई भी ऐसा कार्य जिससे कष्ट या दुःख उत्पन्न हो अथवा हानिकारक हो वह शोषण कहलाता है। शोषण पीड़ादायक, अव्यवहारिक, सामाजिक कुकृत्य एवं अनुचित कार्य है इसलिए यह अपराध की श्रेणी में आता है। शोषण अपराध की ईकाई है क्योंकि शोषण करने की प्रवृति ही इन्सान की मानसिकता में अपराध को बढ़ावा देती है। शोषण अपराध की श्रेणी में होने के पश्चात भी सबसे अधिक किया जाने वाला कुकृत्य है। वैसे शोषण को चार भागों में बांटा गया है। शारीरिक शोषण, मानसिक शोषण, आर्थिक शोषण एवं सामाजिक शोषण लेकिन यहाँ हम शारीरिक शोषण को परिभाषित करेंगे। किसी के साथ किसी भी प्रकार का हिंसात्मक कार्य अथवा उसकी इच्छा के विरुद्ध उसे किसी प्रकार का शारीरिक कष्ट प्रदान करना शारीरिक शोषण की श्रेणी में आता है। लेकिन बाल यौन शोषण के संदर्भ में इसके आयामों की व्याख्या करे तो इसकी शुरुआत सर्वप्रथम घरों एवं पश्चात स्कूलों से ही आरम्भ हो जाता है जिसमें शारीरिक आघात तथा बलात्कार जैसे जघन्य कृत्य शामिल होते हैं । परिवार एवं स्कूल में खुद को महत्वपूर्ण समझने एवं दिखाने के लिए या अपना वर्चस्व कायम करने के लिए तथा अपने नकारात्मक मानसिकता एवं मनोविकृति को पूर्ण करने के लिए। परिवार या स्कूले में किसी सदस्य द्वारा दूसरे सदस्यों का शोषण करना साधारण कार्य है।।

मासूम के मासुमियत से खेल रही है दुनिया।                                                जंगली जानवर की तरह झंझोड़ रही है दुनिया                            एक समझदार अभिभावक होने के नाते हम सबका कर्तव्य है कि इस सामाजिक बुराई को मिटायें और अपने आस-पास के लोगों को भी इसके बारे में जागरूक करें, ताकि हमारे बच्चों को स्वस्थ माहौल मिल सके और उनमें स्वस्थ मानसिकता का विकास हो सके, तथा अपने बच्चों को अपना पूरा विश्वास, प्यार, समय और भावनात्मक सुरक्षा देनी चाहिए। आज अगर हम उनकी सुरक्षा के लिए उचित कदम नहीं उठाएंगे उनके प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारी पूरी निष्ठा से नहीं निभाएंगे तो कल वो हमारी जिम्मेदारी उठाने के लिए जिम्मेदार नागरिक नहीं बन सकेंगे।।                                                       जब अपना ही लगा गया दाग, मासूम के दामन में।
              कोई किसी का नही रह गया इस सांसारिक सावन में।
क्योंकि बालावस्था में शोषण के शिकार हुए बच्चे आक्रांतित मानसिकता में जीवन व्यतीत करते है यही बच्चे एक निश्चित समय बाद कभी-कभी विक्षिप्त मानसिकता के कारण चिडचिडा या हिंसात्मक हो जाता है। जो परिवार, समाज एव राष्ट्र के उत्थान में एक बाधा के रूप में तैयार हो जाता है अतः वह समय आ गया है जब हम अपने बच्चे को आस-पड़ोस के लोगों को इस बारे में जागरूक करें, की यौन शोषण क्या है। वहसी, दरिंदे कैसे राष्ट्र के कर्णधार को अपने काले करतूतों के जरिए उन्हें अंधरे जीवन के दलदल में ले जा रहा है।
इसी कारण केंद्र सरकार ने वर्ष 2012 में संसद में बिल लाकर यौन (लैंगिक) अपराधों से बच्चों की सुरक्षा अधिनियम, 2012 लाया। जो इस सामाजिक बुराई से दोनों लिंगों के बच्चों की रक्षा करने और अपराधियों को दंडित करने के लिए एक विशेष प्रावधान बनाया। वैसे इस अधिनियम के अमल में आने के पहले गोवा बाल अधिनियम, 2003 के अन्तर्गत निर्धारित विधियों को व्यवहारिकता में लाया जाता था। इस नए अधिनियम में बच्चों के खिलाफ बेशर्मी या छेड़छाड़ के कृत्यों का अपराधीकरण किया गया है एवं इस कुकृत्य के लिए इसमें कठोर दंड का प्रावधान रखा गया है।

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