सिर्फ नेता ही नहीं, हमारे देश की जनता भी जुमलेबाज़ है, हमें कोई हक नहीं किसी नेता को जुमलेबाज़ कहकर कोसने का। “हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई, आपस में हैं भाई-भाई”, यह जुमला सालों से बोलकर हम सभी धर्मनिरपेक्षता का ढोंग करते आए हैं। लगातार धर्म और जाति के नाम पर हो रही हत्याएं हमारे झूठे सेकुलरिज्म पर ज़ोरदार तमाचा जड़ती हैं।
दिल्ली में अंकित नाम के युवक की सिर्फ इस कारण हत्या हो जाना कि उसने एक दूसरे मज़हब की लड़की से प्यार किया था, एक बहुत ही डरावनी घटना है।
यह घटना हमें एक ऐसे समाज को बनने से रोकने के लिए आगाह कर रही है, जहां एक हिन्दू एक मुसलमान के मोहल्ले में रहने से पहले डरेगा। ऐसा समाज जहां एक मुसलमान, किसी हिन्दू लड़की से बात करने से पहले सोचेगा कि कहीं ऐसा न हो कि उस लड़की के मज़हब वाले उसे देख लें और उसकी हत्या हो जाए।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि हमारे समाज में कई लोग हैं, जो ऐसे समाज को बनाने की कोशिश कर रहे हैं। अगर यही स्थिति रही तो वो दिन भी दूर नहीं जब नेता इस बात पर वोट मांगेगा कि हम हिंदुओं को मुसलमानों के हाथों मरने से बचाएंगे और अगला नेता कहेगा कि हमें वोट दीजिये हम तो सारी मुस्लिम कौम को ही खत्म कर देंगे।
अब आप यही सोच रहे होंगे कि ऐसे नेता को कभी कोई वोट नही देगा, आपके इसी वहम को धीरे धीरे खत्म किया जा रहा है। भूलिए मत कि मस्जिद तोड़ने का समर्थन करने वालों की पार्टी को भी हम सब ने ही मिलकर सत्ता में बिठाया है। मैं उस पार्टी को सांप्रदायिक कतई नहीं मानता, साम्प्रदायिक तो हम सब हैं जो धर्म के नाम पर गुंडागर्दी करने वाले नेताओं के भड़काऊ भाषणों को सुनकर तालियां पीटते हैं।
अगर आप यह सोच रहे हैं कि सांप्रदायिक मुद्दों का समर्थन या धर्म के नाम पर हत्याएं सिर्फ रूढ़ीवादी लोग ही कर रहे हैं तब भी आप गलत हैं।एक बार अपने आप से सवाल कीजिये कि क्या हमारे साथ रहने वाला कोई साथी हमारे कान में दूसरे धर्म के विरोध में कुछ नहीं फुसफुसाता? क्या हमारे घरों में कभी न कभी दूसरे धर्म के विरोध में चर्चाएं नहीं होती? क्या हमारे फ्रेंड सर्किल में कोई न कोई ऐसा दोस्त नहीं होता जो किसी दूसरे धर्म से नफरत करता है या हमेशा दूसरे धर्म के खिलाफ बातें करता है? पर हम उसे दोस्ती के खातिर बर्दाश्त करते जाते हैं।
याद रखिये आप उसे बर्दाश्त नहीं करते आप उस सोच को मौन समर्थन देते हैं, आपका समर्थन ही धर्म के नाम पर हो रही हत्याओं का कारण है। बात रही दूसरे धर्म में शादी करने की तो इसके लिए हम युवाओं को एक लंबी लड़ाई लड़नी है, हमारी अपनी आज़ादी की लड़ाई।
अगर आप दूसरे धर्म में शादी करने के लिए खुद को अपने परिवार के आगे असहाय मानते हैं और आप यह मान चुके हैं कि आपका दूसरे धर्म में शादी करना असंभव है, तो फिर शिक्षा में अपना पैसा और समय बर्बाद मत कीजिये। क्योंकि जो व्यक्ति शिक्षा ग्रहण करके भी समाज में फैली असमानताओं को खत्म न कर पाए उसका पढ़ना व्यर्थ है।