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मेरे सैनेटरी पैड की दास्तान

सुबह-सुबह दिमाग में आया कि पीरियड्स को लेकर थोड़ी बात की जाए जिसे लेकर मैंने कोशिश भी की और जैसा कि आपने सोशल मीडिया पर देखा ही होगा, पैड के साथ मैंने अपनी एक फोटो भी डाली। उस वक्त मैं सोच रही थी कि एक पैड अगर अपनी बात रख पाता तो क्या कहता? फिर मेरे दिमाग मे आया कि पैड भी तो खून रोकने के काम आता है और पट्टियां भी, तो हम इन दोनों में भेदभाव क्यों कर रहे हैं?

एक लड़का हाथ में चोट लगने की वजह से रुई की पट्टी लगाए घूम रहा था, उस पर खून के कुछ धब्बे भी दिखाई दे रहे थे। उसके ही साथ चल रही एक लड़की काले-नीले कपड़े पहने बार-बार पीछे मुड़कर देख रही थी कि कहीं खून का कोई धब्बा न नज़र आ जाए। पट्टी गर्व से इतरा रही था और पैड घुटन से, शर्म से छुपा जा रहा था।

सामने मंदिर आया तो पैड रुक गया। पट्टी ने पूछा, “क्या हुआ?” पैड ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “सिर्फ कुछ ही खून अंदर जा सकते हैं!”

जहां पट्टी सबके सामने इतरा कर अपने घाव दिखा रही थी, वहीं पैड चुप था। खून से लथपथ और दर्द से लैस पैड, समाज में स्वीकार्य न होने के कारण मूक रहा। पैड को बुरा लगता था कि एक लड़की दुकान पर उसे खरीदने आती और उसे काली कोठरी जैसे प्लास्टिक में भर के भेजा जाता और वहीं पट्टी मुस्कुराती हुई स्वतंत्र झूमती निकल जाती।

पट्टी जब घर जाती तो लोग उसकी सेवा में लग जाते, उस दिन किसी और रोज़ से ज़्यादा खयाल रखा जाता, पर जाने क्यों पैड को ये आज़ादी नहीं थी। घर में पैड न किचन में जाता, ना ही पिताजी के बिस्तर पर बैठता। पट्टी को भरपूर खाने को मिलता और पैड को अचार और नमक छूने की आज़ादी न होती।

गांव में तो ये पैड रुई का भी नहीं होता है। पुराने फटे कपड़ों को तह करके पीरियड्स में काम में लाया जाता है। सबके पास व्हिस्पर अल्ट्रा खरीदने को पैसे थोडें न हैं। पट्टी 10 रु. की मिल जाती है और पैड 80 रु. का। पट्टी बड़ी ही फेमस है, उसे सब जानते हैं, उसे सबने देखा है। लेकिन पैड किसी खूफिया एजेंट की तरह है जिसे न किसी ने आते देखा और न जाते। 5 दिन उस लड़की ने खून बहाया और पैड ने उसे रोका, लेकिन उसके साथ चलते दोस्तों को कोई खबर नहीं, घर में भाई को पता नहीं।

पट्टी तो कभी-कभी ही काम आती है लेकिन पैड हर महीने 12 बार। आश्चर्यचकित होती हूं कि फिर भी पैड का ज़िक्र नहीं, किसी को उसकी फिक्र नहीं।

सरकार ने पैड को लक्ज़री आइटम में डाल दिया, पैड हंसा था खुद को देखकर। वो ज़रूरत है हर 11 से 45 साल की उम्र वाली महिला की। हंसता है पैड कि कैसा समाज है जिसको लड़की के स्कर्ट पर खून का धब्बा भी नहीं देखना है और उसको रोकने के लिए पैड की व्यवस्था भी नहीं करनी है। पैड खुद को महंगा और शर्मसार महसूस करता है लेकिन पट्टी को मतलब नहीं कि पैड क्या झेल रहा है। आधी पट्टियों ने तो पैड देखा भी नहीं है।

फोटो आभार: flickr

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