पहली नज़र में ऐसा लग रहा है कि खेती के लिए यह बजट काफी अच्छा है। यह ज़रूरी भी था, क्योंकि पिछले दिनों एक एक्सपर्ट कमिटी ने सरकार को चेताया था कि 2014 के बाद से देश की कृषि व्यवस्था में लगातार गिरावट आ रही है और किसानों की आय भी घट रही है। यह एक्सपर्ट कमिटी किसानों की आय दोगुनी करने के लिए गठित कमिटी थी। उस कमिटी के सुझावों को मानते हुए इस बजट में कई ऐसे प्रावधान किये गये हैं, जो अगर ठीक से लागू हुए तो देश की कृषि व्यवस्था को फायदा होगा।
इसमें सबसे बड़ी घोषणा है मिनिमम सपोर्ट प्राइस को फसल उत्पादन की लागत का डेढ़ गुना करना।
हालांकि यह विषय हमेशा विवाद में रहेगा कि आप किसी उत्पाद की लागत कैसे तय करते हैं। फिर भी ऐसा लग रहा है कि इस नीति के तहत मिनिमम सपोर्ट प्राइस बढ़ेगी। दरअसल यह आज के किसान की सबसे बड़ी ज़रूरत है, वे जी-जान एक करके पैदावार तो बढ़ा लेते हैं, मगर पैदावार बढ़ती है तो दाम ज़मीन पर पहुंच जाता है। पिछले दिनों किसानों ने आलू की फसल मिट्टी के भाव में बेची है, टमाटर के पच्चीस पैसे किलो बिकने की खबर अक्सर आती है। अब यह देखना है कि क्या सरकार आलू-प्याज़ टमाटर भी खरीदेगी, जो उसके ऑपरेशन ग्रीन का हिस्सा हैं।
इसके साथ-साथ सरकारी खरीद की व्यवस्था को भी दुरुस्त बनाने की ज़रूरत है, क्योंकि बिहार जैसे राज्य में किसानों के लिए अपनी उपज को बेचना ही सबसे बड़ा काम है। सरकार सिर्फ धान खरीदती है, उस खरीद व्यवस्था पर भी दलालों और गल्ला व्यापारियों का कब्ज़ा है।
दूसरी बड़ी घोषणा है ग्रामीण कृषि मंडियों का विकास। देश में जगह-जगह पर ऐसी मंडियां हैं जो किसानों ने अपने तरीके से खड़ी की हैं। वहां संसाधनों का अभाव है, व्यापारियों को उस मंडी के बारे में जानकारी नहीं है। अगर ऐसी मंडियां विकसित होंगी तो जगह-जगह से व्यापारी पहुंचेंगे और किसानों को उनकी उपज की सही कीमत मिल पायेगी।
इसके अलावा आलू, प्याज और टमाटर की खेती को बढ़ावा देने के लिए आपरेशन ग्रीन की घोषणा की गयी है। ये तीन सब्ज़ियां ऐसी हैं, जिनकी कीमतें कभी आसमान पर होती हैं तो कभी ज़मीन पर। ऐसा इसलिए होता है कि देश भर में इन सब्ज़ियों की खेती का रकबा तय करने की कोई व्यवस्था नहीं है। अगर ऑपरेशन ग्रीन ठीक से काम करे तो इन सब्जियों के साथ यह गड़बड़ी खत्म हो जायेगी।
कृषि ऋण को बढ़ाकर 11 लाख करोड़ करने की बात कही जा रही है। मगर जब तक बैंक किसानों को खुलकर लोन नहीं देंगे कागज़ी कार्रवाइयों में उलझायेंगे तो यह व्यवस्था कागज़ी ही रह जायेगी। देखना है कि यह घोषणा घोषणा ही रहती है या ज़मीन पर लागू होती है।
इसके अलावा दो विशिष्ट योजनाएं हैं, एक मछली पालन और पशुपालन को बढ़ावा देने की और दूसरी बांस मिशन स्थापित करने की। ज़ाहिर सी बात है कि इन योजनाओं से खेती की विविधता बढ़ेगी और किसानों को लाभ होगा।
फोटो आभार- फेसबुक पेज वित्त मंत्रालय
पुष्य मित्र बिहार के पत्रकार हैं और बिहार कवरेज नाम से वेबसाइट चलाते हैं। कुछ ऐसी ही बेहद इंट्रेस्टिंग ज़मीनी खबरों के लिए उनके वेबसाइट रुख किया जा सकता है।