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दिल्ली के बसों में स्पेशल वशीकरण का पर्चा बांटने वाले लोग आपको भी मिलते हैं?

दिल्ली का ट्रैफिक में बुरा हाल है इससे तो हम सब वाकिफ हैं। जाम में गाड़ियों की आवाज़ें जो आपके सर को दर्द से भर देती है। डीटीसी बस का इंतज़ार और फिर उस इंतज़ार में भीड़ से भरी बस और इन सब से आपको थोड़ी राहत मिलती ही है कि तभी आपको कुछ लोग एक विशेष प्रकार का कार्ड बांटते हुए मिलते हैं। और पोस्टर चिपकाते हुए और पोस्टर में आपको खास तरह की सांत्वना दी जाती है।

“फोन करते ही ज़िंदगी समाधान
7 इल्मो के माहिर आपको विश्वास
गुरुओं के गुरु
मियाँ सुबहान जी बंगाली (स्पेशल वशीकरण)
9971****90
जटिल से जटिल समस्याओं का समाधान, 3 घंटो में घर बैठे तूफानी समाधान।
*3 घंटो में सौतन व दुश्मन को तड़पता देखें *
Its my challenge
*स्पेशल वशीकरण, मुठकरनी, प्रेम विवाह, मियां बीबी में अनबन, गृह कलेश, काम कारोबार में, बच्चों का न होना या होकर मर जाना।
बीमारी में दवा का न लगना आदि।*
मेरी माँ बहन बेटी परेशान है एक बार आवश्यक फोन करें।
काम की गैरंटी  स्टैम्प पेपर पर लिख कर ले।”

आप और मैं हर रोज़ सफर करते हुए दीवारों पर बस में चिपके पोस्टरों पर या पर्चियां बंटते हुए देखते हैं। बस में भीड़ और बाहर से गाड़ियो की आवाज़ें आपको परेशान करती हैं और फिर आप ये पढ़ते हैं। आप किस मूड में हैं किस मूड में नहीं, आपके सर में दर्द हो रहा है तो यह पढ़ के आप अपना सर का दर्द बढ़ता हुआ महसूस करतें  हैं। मैं पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करती हूं और अक्सर सफ़र के दौरान मेरे सर में दर्द रहता है और जब इन्ही दर्द में मैं ये पोस्टर देखती हूँ तो मन करता है सबको फाड़ दूं। एक-एक कर इन पर्चियों को उठा कर फेंक दूं पर मैं ऐसा कर नहीं पाती एक तो भीड़ इतनी और किसी से इस बाबत बात करो तो लोग बात करने को राज़ी नहीं।

पर ये आखिरकार  हैं कौन लोग जो इतने विश्वास के साथ इतनी सारी समस्यायों का समाधान करते हैं और इतनी सारी समस्या को सुलझाने कौन लोग इनके पास जाते हैं। ज़ाहिर सी बात है हम ये मेट्रो में नहीं देखते पर्सनल ट्रांसपोर्ट में नहीं देखते तो फिर बसों में क्यों?

क्योंकि बस में एक मिडिल क्लास सफर कर रहा होता है जो सुबह इतनी सारी परेशानियों को सर पर उठाये, बिना इच्छा के काम पर जाता है और क्या ये वही परेशानियां हैं जिनका समाधान हमें ये लोग देते हैं? तो क्या यह एक तरह से मज़बूरी का फायदा उठाना नहीं हुआ की हम भोले-भाले लोगों की भावनाओं के साथ खेल रहे हैं।

अब पति पत्नी की अनबन भी यही सुलझाएंगे तो क्या उनके बीच प्यार के कोई मायने नहीं हैं? अगर ये दुश्मन से छुटकारा दिलाते हैं तो जो हमारे सैनिक देश की सुरक्षा के लिए बॉर्डर पर दुश्मनो से लड़ते हैं और शहीद हो जाते हैं उसकी क्या ज़रूरत? ये उन दुश्मनों से भी छुटकारा दिला देंगे क्या। एक आम इंसान की ज़िंदगी में दिक्कते उतनी ही स्वाभाविक हैं जितनी की हमारा सांस लेना और इन्हीं परेशानियो में हम जीना सीखते हैं हंसना सीखते हैं तो फिर इन परेशानियों को ये कौन लोग अपना धंधा बना चुके हैं?

ये हमारे देश की राजधानी दिल्ली है तो अन्य जगहों का क्या हाल होगा इसका हम अनुमान लगा सकते हैं। यह इक्कसवीं  सदीं का माहोल है जहां दुनिया आगे निकल गयी और हम अन्धविश्वासों में जी रहे हैं। इंसान की खोज विश्वास और उसकी उपलब्धि अन्धविश्वास।

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