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महिलाओं के लिए कैसा रहा बजट 2018

साल 2018-19 का बजट 1 फरवरी को संसद में पेश कर दिया गया। आइये जानते हैं इस बजट की कुछ खास बातें-

आगामी वित्तीय वर्ष 2018-19 के लिए भारत सरकार द्वारा पेश किया गया बजट 29 लाख 20 हज़ार 484 करोड़ रुपये का है, जो चालू वित्तीय वर्ष (2017-18) की तुलना में करीब 15.4% ज़्यादा है। यानी इस वित्तीय वर्ष में देशभर की विभिन्न योजनाओं पर सरकार पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में 15.4% ज़्यादा खर्च करेगी। चालू वित्तीय वर्ष (2017-18) की बजट राशी 25 लाख 31 हज़ार 762 करोड़ रुपये थी जो साल 2016-17 की तुलना में लगभग 7% अधिक थी।

इन सभी आंकड़ों की तुलना से हम जान पाते हैं कि सरकारों ने तय बजट (Budget Estimate या BE) में से असल में कितना खर्च (Actual Expanse या AE) किया और संशोधित बजट (Revised Budget या RE) जितना कम होगा उसका मतलब कि बजट की प्लानिंग उतनी ही सही थी। नीचे दी गयी टेबल में आप पिछले कुछ सालों के बजट के आंकड़ों की तुलना देख सकते हैं।

आइये देखते हैं कि यह बजट महिलाओं के लिए कैसा रहा-

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ:

सबसे पहले बात करते हैं महिलाओं से जुड़ी भारत सरकार की फ्लैगशिप योजना ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ की। 2011 की जनगणना में 0 से 6 साल के बच्चों में प्रति हज़ार लड़कों पर लड़कियों की संख्या 911 थी। 2001 की जनगणना में यही अनुपात प्रति हज़ार लड़कों पर 933 था। सेक्स रेश्यो में इस गिरावट का प्रमुख कारण अशिक्षा को माना गया, जिसे देखते हुए भारत सरकार ने साल 2015 में ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ योजना की शुरुआत की, जिसके लिए लगभग 100 करोड़ रूपये का बजट तय किया गया। योजना शुरू होने के बाद से ही हर साल इस योजना के लिए बजट तो अच्छा खासा तय किया गया लेकिन इस योजना के लिए तय किए बजट को सरकार इस्तेमाल करने में विफल ही रही है।

साल 2015-16 इस योजना के लिए 97 करोड़ का बजट तय किया गया जिसे संशोधित कर 72.5 करोड़ कर दिया गया और इसमें से भी 59.36 करोड़ ही खर्च हो पाया। साल 2016-17 की बात करें तो ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का बजट एक बार फिर 100 करोड़ था, इसमें 57% की कमी की गई और संशोधित कर इसे 43 करोड़ कर दिया गया, जिसमे से केवल 28.66 करोड़ ही खर्च हो पाए। नीचे दी गई टेबल में 2015-16 से लेकर 2018-19 तक, इस योजना से सम्बंधित बजट के आंकड़ों की तुलना की जा सकती है।

2017-18 में इस योजना का बजट 200 करोड़ था जिसमें कोई संशोधन इस बार नहीं किया गया और इस बजट में भी ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ के बजट में 40 फीसदी की वृद्धि की गई है।

प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना:

भारत में हर तीसरी माँ अल्पपोषित (Undernourished) है और हर दूसरी माँ खून की कमी यानि एनीमिया का शिकार है। महिलाओं खासकर माताओं को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार की तरफ से यह योजना शुरू की गई। 1 जनवरी 2017 के बाद पहली बार गर्भधारण करने वाली हर महिला या पहले बच्चे को जन्म देने वाली महिलाएं इस योजना का लाभ उठा सकती हैं। इस योजना के तहत तीन किश्तों ( 1000-2000-2000 रु.) में महिलाओं को आर्थिक सहायता दी जाती है। अगर महिला 1 जनवरी 2017 से पहले गर्भवती हो तो बच्चे के जन्म के बाद उसे केवल आखिरी किश्त मिलने का ही प्रावधान है।

बेशक जच्चा-बच्चा स्वास्थ्य को लेकर यह सरकार का बहुत अच्छा प्रयास है, अब आइये बजट के आंकड़ों में देखते हैं कि इस योजना के साथ क्या हुआ है-

ऊपर की टेबल से पता चलता है कि साल 2017-18 में इस योजना के लिए तय बजट को 2700 करोड़ से संशोधित करके 2594.55 करोड़ कर दिया गया। वहीं आगामी वित्तीय वर्ष के लिए इसे और घटाकर 2400 करोड़ कर दिया गया। निश्चित ही ICDS (Intigrated Child Development Services) के तहत महिलाओं को इस तरह का लाभ दिया जाना बहुत ज़रूरी है लेकिन एक साल में ही योजना के बजट में 300 करोड़ की कटौती महिलाओं के हक में जाती हुई नहीं दिखती।

राजीव गांधी नेशनल क्रेच स्कीम:

महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने की दिशा में सरकार द्वारा यह योजना शुरू की गई थी। इस योजना में वो कामकाजी महिलाएं जिनकी पारिवारिक आय 12,000 प्रति माह से कम हो उनके 6 माह से 6 साल तक के बच्चों की देखरेख, उनके काम के दौरान उपलब्ध कराई जाती है। इसमें ज़रूरी है कि महिला महीने में कम से कम 15 दिन कार्यरत हो। योजना के अंतर्गत बच्चों के पोषण, वैक्सिनेशन और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी ज़रूरतों का खयाल रखा जाता है। आइये देखते हैं कि बजट का इस योजना पर क्या असर पड़ा-

ऊपर बनी टेबल में आप देख सकते हैं कि साल 2016-17 में 150 करोड़ के आवंटित बजट में से करीब 125 करोड़ ही खर्च किए जा सके। वहीं साल 2017-18 में बजट बढ़ाकर 200 करोड़ तो किया गया लेकिन फिर उसे संशोधित कर 65 करोड़ कर दिया गया जो 65% से भी ज़्यादा की कमी है। 2018-19 में भी इस योजना को लेकर कोई खास उत्साह नज़र नहीं आता क्यूंकि इस वर्ष के लिए बजट को 200 करोड़ से घटाकर 128.39 करोड़ कर दिया गया।

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना:

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार दुनियाभर में भारत में फेफड़ों से सम्बंधित बीमारियों से मरने वाले लोगों की संख्या सबसे अधिक है। गरीब और ग्रामीण इलाकों के परिवारों में लकड़ी या गोबर के उपलों का ही इस्तेमाल खाना बनाने में किया जाता है, जिससे खासकर महिलाओं और बच्चों के सांस सम्बंधित बीमारियों से ग्रसित होने की संभावनाएं काफी बढ़ जाती हैं। भारत में हर साल करीब 5 लाख लोग घर के अन्दर होने वाले वायु प्रदूषण (Indoor Air Pollution) से सम्बंधित बीमारियों के कारण मारे जाते हैं।

इसी को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना शुरू की गई जिसमें साल 2016 में 5 करोड़ गरीबी रेखा से नीचे (BPL) रहने वाले परिवारों को मुफ्त LPG कनेक्शन मुहैय्या कराने का लक्ष्य रखा गया। इस योजना की खास बात यह है कि LPG कनेक्शन परिवार में किसी महिला के नाम पर ही लिया जा सकता है। इसके आलावा योजना के लाभार्थी परिवारों को 1600 रु. की आर्थिक मदद भी दी जाएगी।

बजट की अपनी स्पीच में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ‘प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना’ पर घोषणा करते हुए, 8 करोड़ BPL परिवारों तक योजना का लाभ पहुंचाने की घोषणा की। निश्चित ही बजट में की गई यह घोषणा तो महिलाओं के हक में ही रही।

महिलाओं के लिए एम्प्लॉई प्रोविडेंट फण्ड (EPF) का 12% से 8% किया जाना भी बजट में नौकरीपेशा महिलाओं के लिए एक अच्छी खबर रही। अब पहले तीन सालों के लिए महिलाओं को प्रोविडेंट फण्ड के लिए 8% ही वेतन में से कटवाना होगा जिसका अर्थ है अब उनकी इनहैण्ड सैलरी पहले से ज़्यादा होगी।

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