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चिंताजनक है BPSC का रवैया, साढ़े तीन साल बाद निकाला मेन्स परीक्षा का रिज़ल्ट

बिहार की शिक्षा व्यवस्था जो भी हो, जितनी भी लचर हो किन्तु यहां के बच्चो में नौकरशाह बनने की जो ललक है वो शायद भारत के किसी अन्य प्रान्त में नहीं। यही कारण है कि यूपीएससी जैसे प्रतिष्ठित परीक्षा में ज्यादा उम्मीदवार बिहार और उत्तर प्रदेश से होते हैं। छोटे से कमरे में रह कर, कई बार भूखे रह कर थक कर हार कर फिर भी लगे रहते हैं, क्योंकि उनकी आंखों में एक सपना है, सपना देश सेवा का, सपना अपने समाज को बदलने का, सपना अपने मज़दूरी और किसानी करने वाले पिता को फर्श से अर्श तक उठाने का। वो यूपीएससी की बदौलत अपने सपनों को पूरा करते हैं, किन्तु इनके अपने ही राज्य की सर्विस कमिशन बोर्ड  BPSC ही इनके भविष्य के साथ खिलवाड़ करती है।

2014 के नवम्बर में आयोग नोटिफिकेशन जारी करता है 716 पदों के लिए, 56-59वीं चार वर्षों की वेकैंसी एक साथ। मार्च 2015 में प्रारंभिक परीक्षा का आयोजन होता है और उसके बाद रिज़ल्ट आने का इंतज़ार। करीबन 6 माह उपरांत प्रारंभिक परीक्षा का रिज़ल्ट आता है और सफल प्रतिभागियों के लिए असली परीक्षा का इंतज़ार पुनः प्रारंभ हो जाता है।

ये इंतेजार इस बार 10 माह का होता है और जुलाई 2016 को मेन परीक्षा का आयोजन कराया जाता है। कई दिनों तक चलने वाली परीक्षा के संपन्न होने के उपरांत पुनः एक बार चलता है इंतज़ार का दौर। जो कल 22 फरवरी 2018 को खत्म हुआ,  19 माह के बाद, ठहरिए अभी खत्म नहीं हुआ अब पुनः एक इंतज़ार का दौर प्रारंभ होने वाला है सफल उम्मीदवारों का जिन्होंने मेन परीक्षा में सफलता प्राप्त की और अब साक्षात्कार देंगे।

3 वर्ष 4 माह के इंतज़ार का ये दौर न जाने कब समाप्त होगा, आज न कल तो होगा ही, लेकिन कई असफल उम्मीदवारों को आयोग ने तोड़ कर रख दिया। 3 वर्ष और 4 माह के इंतज़ार के बाद जब परिणाम आया तो कई सफल और कई असफल हुए। सफल उम्मीदवारों को आंशिक खुशी है किन्तु डर भी क्योंकि वो आयोग के रवैये से वाकिफ हैं और असफल प्रतिभागियों के ऊपर तो मानिए पहाड़ सा टूट गया है।  UPSC अपनी परीक्षा 1 वर्ष में संपर्ण करा देती है और पुनः मौका प्रदान करती है पर BPSC की लचर व्यवस्था बस प्रतिभागियों के भविष्य को अंधेरे में रखने का कार्य करती है।

प्रतिभागी कई आंखों में कई सपने लिए, हर कुछ सहन करते हुए सिविल सेवा की तैयारी में लगे रहते हैं, त्यौहारों से लेकर घर के उत्सवों का बलिदान देकर, अपने माता-पिता का जीवन स्तर सुधारने के लिए, अपने छोटे भाई के बेहतर भविष्य के लिए, बहन की शादी, बीमार माँ के बेहतर इलाज और ना जाने कई उम्मीदों और सपनों को संजोए इसकी तैयारी में अपने आँखे सुजाते हैं और आयोग इसे अपने लापरवाही का भेट चढ़ा जाती है।

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