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कहीं पानी के एक-एक बूंद को ना तरस जाए भारत!

जल ही जीवन है, ये सच मनुष्य सदियों से जानते आ रहा है। ये जानते और समझते हुए भी अगर हम जल संकट की कगार पर आकर खड़े हो गए हैं तो इसमें किसकी गलती है? जल संकट किसी एक देश से जुड़ा नहीं है। ये एक वैश्विक समस्या है जिसके लिए पूरे विश्व को मिलकर समाधान निकालने की जरूरत है नहीं तो पानी की बढ़ती किल्लत, पीने के पानी की बढ़ती समस्या समस्त विश्व को वहां लाकर खड़ा कर सकती है जहां से लौटना शायद मुश्किल हो। वैसे भी ये अनुमान लगाया जा चुका है कि अगर तीसरा विश्व युद्ध छिड़ा तो ज़ाहिर है उसकी वजह पानी ही होगा।

कितनी बड़ी विडम्बना है धरती के 71 प्रतिशत हिस्से पर सिर्फ पानी है फिर भी विश्व जल संकट की कगार पर है। समुद्रों में बहने वाला 97 प्रतिशत खारा पानी मानव जीवन के लिए व्यर्थ है और धरती के मात्र 3 प्रतिशत भाग के पानी पर मानव जीवन आश्रित है। प्यास और सूखे की मार झेल रहे पूरे विश्व पर अगर नज़र डालें तो पता चलेगा कि हालात कितने भयावह हो चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के आंकड़ों के अनुसार करीब 10 में से 3 व्यक्ति नियमित सुरक्षित पेयजल आपूर्ति से वंचित हैं।

भारत की स्थिति तो इससे भी ज़्यादा सोचनीय है। भारत में 7.6 करोड़ आबादी पीने के पानी से महरूम है तो 33 करोड़ लोग जल संकट से जूझ रहे हैं। भारत के कई राज्य सूखे की मार तो झेल ही रहे हैं लेकिन जहां पीने योग्य पानी था भी वहां भी रही सही कसर प्रदूषण ने पूरी कर दी है। भारत में अधिकतर बीमारियों की वजह प्रदूषित जल है। भारत में जल संकट की वजह को अगर टटोला जाए तो बात समझ में आ जाएगी कि सिर्फ कम बारिश का होना या मांग का बढ़ना ही इसकी मुख्य वजह नहीं है।

जल संकट की बड़ी वजह जल प्रबंधन को भी माना जाता है। रिसर्च के नतीजे बताते हैं कि भारत में करीब 80 प्रतिशत से भी ज़्यादा जल का इस्तेमाल कृषि में किया जाता है फिर भी भारत में कृषि सूखे की मार झेल रही है।

निश्चित तौर पर यहां खेती के तरीकों में अनिश्चितता है और बड़े पैमाने पर औद्योगिकीकरण हो रहा है जिसकी वजह से पानी का संकट गंभीर होता जा रहा है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट बताती है कि अगर नीति बनाने वालों ने जलसंसाधन की व्यवस्था पर ध्यान नहीं दिया तो 2025 तक भारत के कई बड़े शहर सूख जाएंगे और पानी की वजह से लोग हिंसा पर उतर आएंगे,जरा सोचिए ऐसा हुआ तो?

भारत 2013 को “जल संरक्षण” साल के रूप में मना चुका है लेकिन बीते चार सालों में कितना पानी संरक्षित हुआ है इसकी तस्वीर तो सामने है। अब जल संकट से कैसे निपटा जाए? भारत इज़रायल जैसे देशों से भी कुछ सबक ले सकता है। इज़रायल में वर्षा का औसत 25 सेमी से भी कम है लेकिन इज़रायल ने तकनीकी विकास डिसैलिनेशन (पानी से नमक और अन्य मिनरल अलग करने की प्रक्रिया) के माध्यम से पानी की किल्लत से निपट रहा है। भारत में भी इसका इस्तेमाल कर समुद्र के पानी को पीने योग्य बनाया जा सकता है। हालांकि चेन्नई के पास कट्टुपल्ली गांव में डिसैलिनेशन तकनीक पर एक प्लांट लगाया भी गया। लेकिन ये तकनीक महंगी और जटिल है और इसके कितने सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे कहना मुश्किल है।

जल संकट का निवारण एक ही प्रश्न में निहित है और वो प्रश्न यह है कि भविष्य में होने वाली वर्षा के कितने भाग को हम संरक्षित करते हैं और कितने भाग को बेकार जाने देते हैं।

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