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ज़रूरी है कि होली के नाम पर होने वाली बुरी हरकतों का बुरा माना जाए!

दिल्ली विश्वविद्यालय की एक छात्रा ने होली की आड़ में अपने ऊपर वीर्य से भरा हुआ गुब्बारा फेंके जाने की जिस घटना को सोशल मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक किया था, वह बेहद भयावह है। इसकी जांच की जानी चाहिए और इसके ज़िम्मेदारों को आईडेंटिफाई करके उन पर ऐसी कार्रवाई की जानी चाहिए कि उसकी नज़ीर बन सके! यह भी किसी अन्य यौन हमले से अलग नहीं है।

होली के नाम पर इस तरह की घिनौनी हरकत ही नहीं, अपरिचितों के ऊपर आपको पानी के गुब्बारे, पानी की बौछार, रंग-गुलाल कुछ भी फेंकने का हक नहीं है।

इस तरह होली की आड़ लेकर आपको अपने परिचितों की (या किसी की भी) अनिच्छा या विरोध के बावजूद उनके शरीर टटोलने और अन्य शारीरिक दुर्व्यवहार करने का लाइसेंस नहीं मिल जाता!

इस तरह की सारी घटनाओं पर रोक लगाने के लिए अलग से कड़े गाइडलाइंस जारी किए जाने की ज़रूरत है और इसके साथ ही कड़ी निगरानी और‌ त्वरित न्याय उपलब्ध कराने की भी ज़रूरत है। होली के नाम पर जिन बातों का ज़िक्र यहां हुआ है, वह सब यौन उत्पीड़न के दायरे में आता है और यह बात सबको अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए।

कुछ वर्ष पहले जब मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ती थी, तब कथित तौर पर विश्वविद्यालय की एक शिक्षिका के ऊपर आर्ट्स फैकल्टी में कुछ लड़कों ने पानी से भरे गुब्बारे फेंके थे और शिक्षिका द्वारा विरोध किए जाने पर उनके साथ बदतमीज़ी की गई थी।

इसके बाद शिक्षिका ने एक एफआईआर दर्ज करवाई थी। इस मामले में अब तक न्याय सुनिश्चित हो सका है या नहीं यह मुझे नहीं पता, लेकिन इतना ज़रूर पता चला कि जब उन लड़कों को कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने पड़े तो वे यह दलील देते हुए पाए गए कि उनका गुब्बारा फेंकना होली की सद्भावना से प्रेरित था!

यदि होली की सद्भावना ऐसी होती है, तो इस सद्भावना को अपने पृष्ठ स्थान में डालिए और दफा हो जाइए। होली को सद्भावना का पर्व बनाए रखने के लिए यह बेहद ज़रूरी है कि जिन बातों का बुरा मानना चाहिए, उनका पर्याप्त कड़ाई से बुरा माना जाए।

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