Site icon Youth Ki Awaaz

प्रेम करना किसी भी प्रकार से ‘हीनता’ नहीं है

ऑनर या ‘इज्ज़त’ के नाम पर की जाने वाली हत्याएं अधिकांशतः लड़की के परिजनों द्वारा की जाती हैं या उसमें उनकी संलिप्तता होती है, चाहे  वो लड़की किसी भी धर्म या जाति से हो। इसके पीछे कारण यह पंक्ति है, “परिवार की मर्यादा बेटी के हाथों में होती है।” यह बहुत ही सामान्य और प्रचलित पंक्ति है जिसे मां-बाप बेटी को बारंबार याद दिलाते रहते हैं। अगर उसके आचरण में ‘हीनता या कमी’ आ गई तो परिवार की मर्यादा धूल-धूसरित हो जाएगी।

आचरण में इस कथित ‘हीनता’ को तय करने का पहला पैमाना अपनी पसंद से जीवनसाथी चुनना है। अपने बच्चों के लिए जीवनसाथी चुनना मां-बाप अपना अधिकार समझते हैं।

यह बेटी ही नहीं बेटों के लिए भी है, लेकिन बेटी के सिर पर बेटों से भारी ‘इज्ज़त’ रूपी एक टोकरा होती है जिसे सींचने का काम भाई भी करते हैं। कई मां- बाप अपने बच्चों को अपनी पसंद से ब्याह करने की आज़ादी तो देते हैं लेकिन इसके साथ उनकी कुछ शर्तें होती हैं, जैसे कि समान धर्म हो, समान जाति हो, गोत्र- मूल आदि का खयाल रहे। यह सब मिल जाए तब दोनों परिवार का आमना- सामना हो, बात-चीत सही लगी तो ब्याह हो जाएगा! चंद मां-बाप ही ऐसे होते हैं जिन्हें धर्म या जाति से फर्क नहीं पड़ता।

‘इज्ज़त’ के नाम पर ही स्त्री की यौनिकता को नियंत्रित किया गया है। स्त्री की यौनिकता विवाह से पहले उसके पिता और भाई के और विवाह के बाद पति, बेटे और ससुराल पक्ष के मर्दों के अधीन हो जाती है। दिल्ली के अंकित सक्सेना की हत्या में उसकी प्रेयसी का नाबालिग भाई भी शामिल था।

लेकिन ‘इज्ज़त’ का यह स्वरूप भी बदलता रहता है। मैथिली में एक कहावत है, “गरीबहा बेटी सबहक भौजी” मतलब गरीब की बेटी सबकी मज़ाकिया! सामाजिक- आर्थिक हैसियत के हिसाब से ‘इज्ज़त’ का स्वरूप बदलता रहा है। एक लंबे समय तक पिछड़ी जाति की स्त्री की ‘इज्ज़त’ अगड़ी जाति के पुरुषों के समक्ष तुच्छ समझी जाती रही है। फूलन देवी ने इसी को चुनौती दी थी। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि इन महिलाओं के सिर पर यह ‘इज्ज़त’ का टोकरा नहीं होता। संबंधित धर्म और जाति द्वारा तय की गई ‘इज्ज़त’ के मानकों का अनुसरण इन्हें भी करना ही होता है। कुल मिलाकर इन पर यह दोहरी मार की तरह होता है।

अब सवाल है कि इस ‘इज्ज़त’ का सामना कैसे करें?

दरअसल, धर्म और जाति से जन्मी ‘इज्ज़त’ को सबसे ज़्यादा खतरा प्रेम विवाह से है। अगर प्रेम विवाह होने लगे तो ‘इज्ज़त’ को आधार बनाकर अपनी श्रेष्ठता तय करने वालों का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। अगर आप प्रेम विवाह पर यकीन नहीं करते तो ठीक है, ना करें! लेकिन जो करना चाहते हैं उनकी शादी में शामिल होकर रसगुल्ला तो खा ही सकते हैं।

“प्रेम पंथ में पग धरै, देत ना शीश डराय; सपने मोह ब्यापे नहीं, ताको जनम नसाय।” (कबीर)

कबीर की इन प्रसिद्ध पंक्तियों का अर्थ है कि, प्रेम की राह में पैर रखने वाले को अपने सिर कट जाने का डर नहीं होता। उसे स्वप्न में भी भ्रम नहीं होता और उसके पुनर्जन्म का अंत हो जाता है।

फोटो आभार: flickr

Exit mobile version