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“सिकुड़ते वेटलैंड्स को लेकर मैं चिंतित हूं और आपको भी होना चाहिए”

चलिए 2 फरवरी को एक बार फिर विश्व आद्रभूमि दिवस (World Wetland Day) मना लें। खुद को सरकारी खानापूर्ति का साधन मात्र समझकर कुछ अच्छी बातें करें, कुछ फोटो खींचें और फिर उसे सोशल मीडिया पर प्रसारित कर दें। सरकारी ज़िम्मेदारी भी खत्म और हमारी भी।

क्या हम और आप भी आद्रभूमि (Wetland) के पारितंत्र को सरकारी तंत्र की तरह बहिष्कृत पारिस्थितिकी (Ecology) का हिस्सा भर समझते हैं?

अगर हां तो शायद हम लोग मानव पारस्थिकी (Hyuman Ecology) के सबसे महत्वपूर्ण पारितंत्र (Ecosystem) के अदृश्य अर्थतंत्र को आंकने में असफल रहे हैं।

अब जब संयुक्त राष्ट्रसंघ के विश्व जल आंकलन कार्यक्रम (UNWWAP, 2003) ने पहली बार एक आंकड़ा दिया कि 50% आद्रभूमि (Wetland), असमान और अंधी विकास की होड़ में नष्ट हो चुकी हैं, तब से अमेरिका और यूरोप में आद्रभूमि के संरक्षण और सम्वर्धन को लेकर नीतिगत परिवर्तन हुए हैं। इस वजह से आद्रभूमि क्षेत्रों के ह्रास में कमी भी देखी गई। यूरोपियन पर्यावरण एजेंसी की 2010 की रिपोर्ट के अनुसार अन्तः वनस्पतिये आद्रभूमि (Inner Vegetation Wetland) में 2.7% का ह्रास 1990-2006 के बीच दर्ज हुआ है, जबकि खुले जल की आद्रभूमि में 4.4% की वृद्धि हुई है और तटीय आद्रभूमि (Coastal Wetland) स्थिर रही है।

राष्ट्रीय आद्रभूमि एटलस 2011 की ताजा इन्वेंटरी के अनुसार भारत में 201,503 आद्रभूमि की संख्या चिन्हित की गयी है। इसके साथ 2.25 हेक्टेयेर से कम क्षेत्रफल वाली छोटी आद्रभूमि 555,557 की संख्या में चिन्हित की गयी है। भारत में 15.3 मिलियन हेक्टेयेर क्षेत्र में आद्रभूमि विस्तार है और ये विश्व के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 4.7% है। इनमें अन्तः आद्रभूमि (Intra-Wetland) 69%, तटीय आद्रभूमि 27% और 2.25 हेक्टेयेर्स क्षेत्रफल से कम भूभाग वाली आद्रभूमि लगभग 4% है।

अब बताता हूं कि आद्रभूमि या वेटलैंड पारितंत्र को लेकर मैं चिंतित क्यों हूं। आद्रभूमि पारितंत्र (Wetland Ecosystem) दलदली/आद्र (नम)/घास या पत्तों से आंशिक या पूरी तरह से ढकी गीली मिटटी के वो भूभाग हैं जो आंशिक या पूर्ण, प्राकृतिक या कृत्रिम, स्थायी या अस्थायी, स्थिर या बहाव, ताजा या नमकीन जल क्षेत्रों से ढके हुए होते हैं। तटीय निम्न ज्वार वाले भूभाग (Low Tidal Coastal Areas) जो 6 मीटर से भी कम गहराई वाले हैं, उन्हें भी आद्रभूमि की श्रेणी में रखा गया है।

ईरान के रमसार शहर में हुए आद्रभूमि सम्मलेन के आद्रभूमि वर्गीकरण के अनुसार कुल 42 प्रकार के आद्रभूमि पारितंत्र होते हैं, जिन्हे अन्तः आद्रभूमि (Inner-Wetland), तटीय आद्रभूमि (Coastal Wetland) और कृत्रिम आद्रभूमि (Constructed Wetland) की श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है।

लोकटक झील, मणिपुर; फोटो आभार: डिंपल दीपक

रमसार की स्थायी समिति ने इस वर्ष के विश्व आद्रदिवस का विषय रखा है ‘एक समतुल्य शहरी भविष्य के लिए आद्रभूमि’। पिछले वर्ष में जब रमसार की स्थायी समिति ने विषय रखा था ‘आपदा जोखिम ह्रास के लिए आद्रभूमि’ तो लोगों को आपदा समन और जोखिम ह्रास के क्षेत्र में आद्रभूमि की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में जानकारी मिली। सामान्य लोगों के साथ-साथ पर्यावरण और आपदा प्रबंधन में लगे लोगों के बीच भी आद्रभूमि की व्यापक उपयोगिता और वृहद पारिस्थितिकी सेवा की जानकारी का अभाव रहा है। यही कारण है कि आद्रभूमि को सरकारी कागजों और नीतियों में एक बहिष्कृत पारिस्थितिकी का दर्जा दे दिया गया है।

पिछले दशक में जिस तरह से महानगरों और नगरों में अधिकाधिक और सामान्य वर्षा होने से ही बाढ़ जैसी विभीषिका देखने को मिली है, उससे आद्रभूमि की उपयोगिता का पता चलता है। लेकिन बढ़ते शहरीकरण और अनियोजित बस्तियों ने शहरों की तीन-चौथाई आद्रभूमि को मार दिया है। अनुमान है कि साल 2050 तक विश्व की 66% जनसंख्या शहरों में निवास करेगी। शहरों पर संरचनात्मक और मानविकी दबाव बढ़ रहा है। शहरों के जलीय और वायु के चक्र में अप्रत्याशित असुंतलन पैदा हुआ है। आद्रभूमि प्रबंधन निष्प्रभावी हैं और लगातार आद्रभूमि पारितंत्र सिकुड़ता जा रहा है।

आद्रभूमि, जल जनित आपदा जोखिम से निपटने का प्राकृतिक प्रतिरोधक है जो शहरों को प्रभावी और प्राकृतिक तरीके से बाढ़ जैसी विभीषिका से बचाता है। ये पारितंत्र शहरों के गंदे पानी को छानने का काम करते हैं और साफ पेय जल का महत्वपूर्ण श्रोत हैं। यह शहरी लोगों की विविध आजीविका के महत्वपूर्ण श्रोत भी हैं। शहरों के अंदर ये आद्रभूमि पारितंत्र एक वृहद ‘कार्बन सिंक प्रणाली’ का निर्माण करते हैं जो हवा को साफ रखते हैं और जलवायु परिवर्तन (Climate Change) से शहरी आबादी को एक मजबूत प्रतिरोधक पर्यावरण बनाने में सहयोग करते हैं।

आज से 2 दशक पहले तक हमारे शहरी और ग्रामीण इलाकों में दलदली भूभाग बहुतायात में दिखते थे। पिछले 2 दशकों में खासकर बड़े शहरों के आद्रक्षेत्रों का ह्रास बहुत तेज़ गति से हुआ है। कारण अप्राकृतिक मानवीय विस्तार है, यह शहरीकरण के नाम पर असतत एवं असमतुल्य विकास की एक अंधी दौड़ का ही हिस्सा भर है जो समझता है कि शहरों के सौन्दर्यीकरण हेतु आद्रक्षेत्र एक अवरोध हैं।

यह सरकारी अकर्मण्यता और नीतिगत निर्वात का एक ऐसा दौर है जहां एक ओर पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन से निपटने और अनुकूलन को लेकर अपनी चिंताएं ज़ाहिर कर रही है, वही वेटलैंड जैसे महत्वपूर्ण पारितंत्र को हाशिये पर धकेल कर नष्ट कर दिया जा रहा है। ये बहुमूल्य पारितंत्रों कौड़ी के भाव बड़े-बड़े रियल एस्टेट उद्योगपतियों के बेच दिए जाते हैं, जहां पर ऊंची-ऊंची इमारतें, मॉल्स आदि खड़े कर दिये जाते हैं। पढ़ा-लिखा और ऊंची तनख्वाह पाने वाला वर्ग, सफल व्यवसायी और ऊंचे रसूखदार लोग यहां आकर बसते हैं। बहुत से शहरों में इन वेटलैंड क्षेत्रों के कुछ भूभाग को विश्वविधालय या होटल निर्माण के लिए भी आवंटित कर दिया जाता है।

सोन बील, असम; फोटो आभार: मोहराना चौधरी

आद्रभूमि  पारस्थितकी दुनिया की सबसे उत्पादक पारितंत्रों में से है। हम लोग वेटलैंड पारितंत्र की सेवाओं (इकोसिस्टम सर्विसेज़) के बारे नहीं जानते हैं। आद्रभूमि पारितंत्र के अदृश्य अर्थतंत्र (Invisible Economy) का आंकलन करने वाली संस्था “द इकोनॉमिक्स ऑफ इकोसिस्टम एंड इट्स बायोडायवर्सिटी सर्विसेज़ (TBS)” के अनुसार समाज के हाशिये पर रहने वाले लोगों के लिए आद्रभूमि एक जीवन रेखा का कार्य करती है। आद्रभूमि, आस-पास रहने के शहरी और ग्रामीण इलाकों के लिए एक ‘वाटरलॉग्ड एसेट’ का काम करती है। वेटलैंड्स की सेवाओं को चार महत्वपूर्ण भागों में उनके प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष मूल्यों के आकलन और प्रभाव के अनुसार वर्गीकृत किया गया है:

(A). जीवन-यापन के श्रोतों को उपलब्ध कराना ताकि इन क्षेत्रों में निवास करने वाले गरीब लोगों को कमाई का अवसर मिल सके। आद्रभूमि से शुद्ध पेयजल, भोजन, फाइबर, फ्यूल, जेनेटिक श्रोतों, जैवरसायन, प्राकृतिक दवाइयां और फार्मास्युटिकल्स आदि प्राप्त होते हैं।

(B). स्थानीय जलवायु विनियमन (Climate Regulation), ग्रीन हाउस गैसों के नियंत्रण हेतु एक वृहद कार्बन सिंक, जलीय चक्र को रेगुलेट करना और भूमिगत जल के स्तर को नियंत्रित करना। जल के रीचार्ज और डिस्चार्ज दोनों को संचालित करना, पारितंत्र आधारित आपदा जोखिम को कम करना, खासकर कि बाढ़ और आंधी से बचाव। मृदा सृजन (Soil Creation) और मृदा अपरदन (Soil Erosion) का नियंत्रण करना, सतही और भूमिगत जल में उपस्थित जैव रसायन और भारी धातु तत्व (Heavy Metal Elements) जैसे आर्सेनिक, लेड, लोहा, फ्लोरीन आदि का पूर्ण उपचार करना। वेटलैंड्स एक बड़े स्तर पर जल का शुद्धिकरण, प्राकृतिक तरीके से करती हैं।

(C). आद्रभूमि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक आस्था का केंद्र मानी जाती रही हैं। ग्रामीण अंचल में लोग इनकी पूजा करते हैं और इसे सृजन का एक स्थान माना जाता है। आजकल वेटलैंड्स को पारिस्थितिकी पर्यटन (Eco-Tourism) के विशेष केंद्र के तौर पर देखा जा रहा है। इन्हें पारिस्थितिकी पर्यटन के साथ-साथ शिक्षा और वैज्ञानक शोध के केंद्र के तौर पर विकसित किया जा रहा है।

(D). आद्रभूमि पारितंत्र, महत्वपूर्ण कार्यों में सहयोग भी करते हैं जैसे की पोषक चक्र, प्राथमिक उत्पादन और जलीय चक्र आदि।

ईरान के रमसार शहर में हुए आद्रभूमि सम्मलेन में शामिल 163 सदस्य देशों ने रमसार कन्वेंशन, 1971 को पारित किया। रमसार कन्वेंशन के तीन महत्वपूर्ण स्तम्भ हैं:

आद्रभूमि क्षेत्रों के अदृश्य अर्थतंत्र को एक छोटे से उदाहरण से समझाता हूं। एक रमसार चिन्हित आद्रक्षेत्र डीपोर बील (गुवाहाटी) असम में है।डीपोर बील एक राष्ट्रीय पक्षी विहार भी है जहां प्रवासी पक्षिओं का आवास है। बील के आस-पास 16 गांव हैं। अगर ये आद्रभूमि ना होती तो सरकार को इन गांवों में फ्लोरीन रिमूवल यूनिट लगानी पड़ती। अमूमन अगर आप एक गांव के ऊपर अगर एक यूनिट लगाने का खर्च का हिसाब करेंगे तो ये 15-20 लाख रु. आता। इस हिसाब से कुल 16 गांव के ऊपर 2.4-3.2 करोड़ का खर्च आता, जबकि आद्रभूमि पारितंत्र के रहने से गांव के लोग बिना भुगतान के ही प्राकृतिक तरीके से शुद्ध पेय जल का उपयोग कर रहे हैं।

अगर आप आद्रभूमि से मिलने वाली अन्य सेवाओं के मौद्रिक मूल्य का आंकलन करेंगे जैसे मछली पकड़ना, धान की पैदावार, जलीय वनस्पति आदि, तो आपको खुद पता चल जाएगा कि वेटलैंड किस तरह से एक गरीब और ग्रामीण परिवेश में रहने वाले लोगों को मदद पहुंचाते हैं।

चांदडुबी बील, असम; फोटो आभार: डिंपल दीपक

शहरी क्षेत्रों में आद्रभूमि पारितंत्र भारी बारिश के दिनों में अचानक शहरी बाढ़ की स्थिति से बाहर निकालता है और शहर में संभावित जल जमाव को कम कर देता है। ये पारितंत्र शहरी कार्बन सिंक तंत्र का कार्य करते हैं जो हवा में उपस्थित ग्रीन हाउस गैस को नियंत्रित करती हैं।ऐसा रिसर्च भी जारी है जिनमें इस बात का पता लगाया जा रहा है कि क्या आद्रभूमि या मैन्ग्रोव पारितंत्र भूकम्प की तरंगों को अवशोषित कर इसके प्रभाव को कम करती हैं?  भारत सरकार ने आद्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम 2016 बनाकर इस तरह के जलीय पारितंत्र को बचाने की कोशिश की है। इसके अनुसार आद्रक्षेत्रों में-

अगर किसी को लगता है कि किसी भी तरह का क्रियाकलाप वेटलैंड पारितंत्र को नुकसान पहुंचा रहा है तो वह कानून के तहत केंद्रीय  आद्रभूमि नियामक प्राधिकरण के पास शिकायत कर सकता है।

आद्रभूमि  (संरक्षण और प्रबंधन) नियम 2016 के अंदर केंद्रीय आद्रभूमि नियामक प्राधिकरण बनाया गया है। राज्यों को भी एक वेटलैंड गवर्नेंस का अधिकार दिया गया है। राज्य सरकार ये निर्णय लेंगी कि वेटलैंड के कैचमेंट क्षेत्र से जल का उपयोग या परिवर्तन या बाड़े में बंद करना या किसी प्रकार की रुकावट जैसे काम कौन कर सकता है। ये राज्य सरकार तय करेंगी कि कौन वेटलैंड के अंदर के सजीव या निर्जीव श्रोतों का उपयोग करेगा। किसी भी तरह की चराई तब तक परमिट है जब तक कि वेटलैंड पारितंत्र के जैविक घटकों का नुकसान न हो।

उपचारित अवशिष्ट चाहे वो उद्योग, शहर या कृषि सम्बंधित हो, केंद्रीय पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड या राज्य पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तय सीमा के अंदर होना चाहिए। वेटलैंड पारितंत्र के अंदर मोटोराइज्ड बोट तभी चलेंगी जब तक कि वह जैविक समुदाय के स्वाभाव और चरित्र का क्षय ना करे। निकर्षण तभी परमिट की जाएंगी जब वेटलैंड पारितंत्र में बालू या गाद का जमाव ज़्यादा हो। अस्थायी तौर पर पोंटून ब्रिज जो वेटलैंड की परिस्थितकी स्वभाव को नुकसान ना पहुंचाए, एक्वाकल्चर/एग्रीकल्चर/हॉर्टिकल्चर का परमिट देना, वेटलैंड पारितंत्र के अंदर किसी भी भवन की मरम्मत या पुनर्निर्माण आदि का निर्णय राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में ही आता है।

कोई भी व्यक्ति जो प्राधिकरण के निर्णय से सहमत न हो वो राष्ट्रीय हरित अधिकरण एक्ट 2010, सेक्शन 19 के तहत अपील करने के लिए स्वतंत्र है। पेरिस समझौते के बाद से ही दुनिया के देशों को 2 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान बनाए रखने की चुनौती है तो दूसरी ओर इन आद्रभूमि पारितंत्र के ह्रास को रोकना उससे भी बड़ी चुनौती है। ये आद्रभूमि, समुद्री पारितंत्र के बाद सबसे ज़्यादा कार्बन का अवशोषण करती हैं।

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