“मेरी पगार, मैं पैसों को नहीं मानता, मेरी पगार मेरे ग्राहकों की संतुष्टि है।” यह कहना है सन 2000 में डब्बावाला का हिस्सा बने विलास शिंदे का। विलास आज खुद को बहुत किस्मत वाला मानते हैं कि वे एक ऐसी जगह काम कर रहे हैं जहां काम को और ग्राहकों को अधिक महत्व दिया जाता है। डब्बावाला में सभी कर्मचारियों का यही उसूल है कि उनके ग्राहकों को बड़ा दर्जा दिया जाए और उन तक डब्बा समय पर पहुंचाया जाए। इन्हीं उसूलों के साथ काम करते हुए आज विलास अपने जीवन में संतुष्ट हैं।
मुंबई डब्बावाला की सफलता का रहस्य और विलास का सफर जानने के लिए देखें यह वीडियो।
विलास सन 1997 में मुंबई काम करने आए और कुछ समय उन्होंने ऐसे ही इधर-उधर काम किया। एक दिन उन्हें एक जगह जहां पर भजन चल रहे थे वहां उन्हें कुछ डब्बावाले मिले और उन्होंने विलास को डब्बावाला में आकर काम करने की सलाह दी और साल 2000 में वे डब्बावाला का हिस्सा बन गए।
काम के प्रति लगन, समय की पाबन्दी और सच्ची निष्ठा इन सब को वो एक सफल व्यक्ति या किसी भी कॉर्पोरेट कंपनी की सफलता की चाबी बताते हैं। अपने ग्राहकों की संतुष्टि के लिए कुछ भी कर जाना ही इनकी पहचान है। साधारण तौर पर काम करते हुए, बिना कोई प्रदुषण करे आज डब्बावाला अपने बिज़नेस के माध्यम से बहुत से अवार्ड पा चुका है।
“डब्बावाला, अपना काम करके सिखाता है, बात करके नहीं सिखाता है”– विलास शिंदे