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“दिल पिघल जाता है जब गैर मुल्क में घर आकर हिंदी सुनने को मिलती है”

मानवीय भावनाएं आंखों के बाद ज़ुबां से सबसे बेहतर इज़हार होती हैं। जब दिल दुखता है, तो उस दर्द को बयान करने में भाषा सबसे बड़ा योगदान देती है। रोज़मर्रा की ज़िंदगी में आप जिस बोली का चयन करते हैं, कई बार उसका महत्व समझ नहीं पाते। ये भाषा ही है जो आपको दूसरों से जोड़ती है, ये भाषा ही है जो आपको आप से जोड़ती है।

मेरी पैदाइश उत्तर प्रदेश की है और ज़ाहिर सी बात है कि हिंदी मेरी मुख्य वाणी रही है। बचपन में हिंदी का मोल नहीं समझा और समझते भी कैसे? बचपन समझने के लिए नहीं, अनुभव बटोरने के लिए होता है।

यही अनुभव आगे जाकर आपको जीवन का सार समझाते हैं। पहले हिंदी प्रबल थी और अंग्रेज़ी आंखों से ओझल। कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ने लगी तो अंग्रेज़ी का बोलबाला रहा, पर हिंदी से दिल का रिश्ता था। उसे कभी भी सीखने की आवश्यकता नहीं पड़ी, वो तो जीवन शैली का एक हिस्सा थी।

कहीं न कहीं उस बचपन में हिंदी और अंग्रेज़ी के तराज़ू में अंग्रेज़ी का पलड़ा भारी था, हिंदी ‘घर की मुर्गी दाल बराबर’ हो गई। विदेशी ने देसी पर धावा बोल दिया था। इसका श्रेय मैं हमारी आधुनिक शिक्षा प्रणाली को दूंगी जो ब्रिटिश प्रतिरूप पर आधारित है। बेशक अंग्रेज़ी भाषा का बहुत महत्व है। उससे अवगत होकर ही हम व्यक्तिगत तौर पर सार्थक हुए, लेकिन क्या हम अपनी खुद की भाषा को पढ़ने और समझने में उतनी शिद्दत दिखाते हैं?

हम मोहब्बत का ज़िक्र आसानी से कर देते हैं, पर अक्सर उस मोहब्बत के असल मायने समझ नहीं पाते। मोहब्बत वो है जो दिल को ऐसे छुए कि उसे पिघला दे और वो किसी भी प्राणी या वस्तु से हो सकती है, मेरे लिए हिंदी मेरी मोहब्बत है। बचपन की यादें बहुत हसीन होती हैं और उसका असर आपके व्यक्तित्व में झलक जाता है। मेरा बचपन साहित्य से घिरा था, मेरे दादा घर के इकलौते ऐसे सदस्य थे जिन्हें उर्दू बोलना या लिखना आता था, वो उनके भाषा चयन का असर था। मेरी दादी हमेशा हिंदी साहित्य के किसी उपन्यास के साथ वक़्त गुज़ारती और मेरे पापा डैन ब्राउन या सुरेंद्र मोहन पाठक में बराबरी से दिलचस्पी लेते। ये इन सब का ही असर था कि मेरा शब्दकोष गहराता गया और हिंदी एवं अंग्रेज़ी साहित्य में रुचि बढ़ गई।

मुझे आज भी याद है चार्ल्स डिकेन्स की ‘ओलिवर ट्विस्ट’ पढ़के मुझे लंदन का पहला ज़ायका लगा। ये उन्हीं की रचना थी जिसके चलते मैं चाह के भी अपने को रोक नहीं पाई और दस बार उस किताब को पढ़ा। उसी तरह ग्यारहवीं कक्षा में मुंशी प्रेम चंद्र की ‘वरदान’ के माध्यम से बनारस के दर्शन हुए। लेखक की ज़ुबानी वो अक्षर मुझपर हमेशा गहरा असर करते, सोचती कि कैसे ये हम पर अपना जादू चलाना नहीं भूलते। माखनलाल चतुर्वेदी की ‘पुष्प की अभिलाषा’ पढ़कर हृदय भावविभोर हो जाता। कैसे चंद पंक्तियों में कवि ने अपनी भावनाओं को निचोड़ कर रख दिया। ये बहुमूल्य विरासत भले उस वक्त मुझे समझ ना आई, लेकिन आज वही संवाद मुझे बुलाते हैं और वही पंक्तिया मुझे उस वक्त में ले जाती हैं।

मैं अपने आप को उन खुशनसीबों में गिनती हूं जिन्हें हिंदी और उर्दू दोनों में गुफ्तगू करने का मौका मिला। मेरी शादी के बाद उर्दू ने मेरे घर में दाखिला लिया। हिंदी में जब उर्दू का तड़का लगता है तो वो और भी लज़ीज़ और ख्वाबीदा हो जाती है। ये इनायत सिर्फ कागज़ पर नहीं बल्कि असल ज़िंदगी में भी कमाल करती है, काश लोग ये बात समझ पाते।

बहरहाल, मेरे जीवन साथी ने बहुत ही खूबसूरती और नज़ाकत से, लिहाज़ और लहज़े को हमारी असल ज़िंदगी का हिस्सा बना दिया। रसा और शोरबे के स्वाद, खीर और शीर की मिठास, रिवाज और रिवायत में अंतर सिर्फ लोगों के मिजाज़ और खयालात में हैं। यकीन मानिये अगर आप बाहें फैलाकर किसी को अपनाते हैं तो उसकी चमक और सकारात्मकता आपके नज़रिये को तब्दील कर सकती है।

कुछ रिश्ते निभाए नहीं जाते, बस उनका एहसास रहता है। हिंदी से भी कुछ ऐसा ही नाता है। बारहवीं के बाद हिंदी में लिखना न हुआ, इसलिए आज जब कुछ हिंदी में लिखने की हसरत पूरी हुई तो बेइन्तहा खुशी हुई। आज भी जब स्कूल की हिंदी की किताबे खोलती हूं, तो वहां लिखे हर अक्षर में सुकून मिलता है। जब दूसरे देश में रहकर पूरे दिन अंग्रेज़ी बोलने के बाद घर में हिंदी के दो वाक्य सुनने को मिलते हैं तो दिल पिघल जाता है। ये भाषा ही तो आपका परिचय है, आप का अपने आप से, अपनों से मरासिम है।

कितना भी लिख लूं पर हिंदी की अहमियत मेरी ज़िंदगी में लफ्ज़ो में बयान नहीं कर पाउंगी, वो मेरा आशना भी है और इख्तियार भी।

जैसा कि मैंने पहले कहा, किसी भी भाषा की पैदाइश घर से होती है। मुझे नाज़ है कि मेरी तीन साल की बेटी नानी-नाना से ‘आप कैसे हैं’, दादा-दादी से ‘खैरियत है?’ और स्कूल में ‘हाउ आर यू?’ एक ही अंदाज़ और अपनेपन में बोलती है। अंग्रेज़ी तो वो स्कूल में सीख ही जाएगी और हम मां-बाप पूरी कोशिश करेंगे कि वो हिंदी और उर्दू से अपना रिश्ता कायम रखे। आज वो उसकी अहमियत भले ही न समझे, लेकिन ये कल उसके लिए उसके जज़्बात होंगे, एक बा-दस्तूर एहसास।

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