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मेरे बच्चों को पीटने वाले गुंडे नागपुर पुलिस के साथ खड़े थे, और मैं इंसाफ मांगता रहा

फडणवीस जी आपकी पुलिस डराती है, गुंडो के सामने झुक जाती है

हमको नागपुर आए हुए 1 साल और कुछ महीने हुए हैं। शहर अच्छा है और मेट्रो कंस्ट्रक्शन हो रहा है तो और भी अच्छा लगता है। मुझे इस शहर की कानून व्यवस्था भी ठीक-ठाक लगती थी जबतक मुझे खुद इसका सामना नहीं करना पड़ा था।

अभी लगभग 10 दिन पहले ही मेरा 18 साल का बेटा और 16 साल का भतीजा शाम को रोज़ की तरह हमारे फ्लैट के सामने खड़े होकर बातें कर रहे थे और उनके नज़दीक ही कुछ लोग ज़ोर-ज़ोर से एक दूसरे को गाली गलौच कर रहे थे। मेरे बेटे ने सिर्फ यह कहा कि भैया गाली मत दो घर है आस-पास। इतना कहने की देर थी कि उनलोगों ने बात बात में अपने बुलेट से चेन निकाल लिया और मेरे बेटे को पीटने लगे। अपने भाई को पिटता हुआ देखकर मेरा भतीजा उसे बचाने के लिए वहां पहुंचा। उन दोनों ने मेरे भतीजे को भी इतना मारा कि उसका सर फट गया और नाक की हड्डी टेढ़ी हो गई।

मेरे दोनों बच्चे उनसे पूछते रहे कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि वो इतनी बेरहमी से उन दोनों को पीट रहे हैं। किसी तरह दोनों भाई अपनी जान बचा कर खून से लतपत तीसरी मंज़िल पर हमारे फ्लैट में पहुंचे। लेकिन असल कहानी तो इसके बाद शुरू होती है। हमारी FIR कराने और सिस्टम से जूझने की कहानी।

मैं और मेरे फ्लैट के कुछ लोग उनको ज़ख्मी हालत में उठाकर पंचपावली पुलिस स्टेशन पहुंचे। लेकिन हम जैसे ही अंदर गए कुछ पुलिस वालों ने डांटकर कहा कि चलो बाहर निकलो सब, बस एक आदमी अंदर रह सकता है इनके साथ। मैंने अपने सभी फ्लैटमेट्स को कहा कि आप बाहर वाली कुर्सियों पर बैठ जाइये, इतने में एक सिपाही जी बोले बाउंड्री के बाहर जाइये। मैं हैरान था, यही पुलिस है जिसकी मैं सोशल प्लैटफॉर्म पर तारीफ किया करता था? मैं वहां FIR लिखने वाले भाई साहब को कह रहा था सर बच्चे का खून बह रहा है प्लीज़ जल्दी करें, लेकिन पूरे डेढ़ घंटे के बाद उन्होंने एक सूमो पर बैठाकर उनको हॉस्पीटल भेजा। मुझे उस सूमो में नहीं बैठने दिया गया। लेकिन जो गुंडे इनको मार कर गये थे वो थाने के बाहर पुलिस वालों से बात कर रहे थे। 

खैर जब मैं उनके पीछे वहां हॉस्पीटल पहुंचा तो हमें 1 घंटे तक बैठा कर रखा गया। जब मैंने कहा सर जल्दी करें मेरे बच्चे को कुछ हो जाएगा, तो मुझे जवाब मिला “हमारा रोज़ का काम है सब अपने टाइम पर होगा“। हम जब टांके लगवाकर और फर्स्ट एड टाइप का इलाज करवाकर थाने पहुंचे तो एक ऑफिसर उन गुंडों  से बात कर रहा था उनके कंधे पर हाथ रखकर।

फिर हम अंदर गए तो हमारी FIR ना लिखने की हर कोशिश हुई लेकिन मैं अड़ा रहा तो एक साहब एक पेपर पर हमसे पूछकर नाम लिखने लगे और इंटेरोगेशन के अंदाज़ में ज़ख्मी बच्चों से सवाल करने लगे कि तुम उनके नाम कैसे जानते हो, तुमलोग आपस में मारामारी करते हो? इसपर मेरे बेटे ने कहा सर उन लोगों का नाम सारे एरिया को पता है। कुछ दिन पहले उन्होंने एक होटल वाले 80 साल के बुज़ुर्ग को थप्पड़ मारा था। लेकिन पुलिस वाले पर कोई फर्क नहीं पड़ा और मैं दूसरे पुलिस वालों की फुसफुसाहट सुन रहा था कि भाटिया जी के लड़कों ने मारा है।

मैंने कहा सर रात के 11 बज गए हैं मुझे FIR का कॉपी दे दो मैं अपने घर जाउं तो उन्होंने कहा कि FIR की कॉपी कल सुबह ले जाना। इसके बाद मुझे इशारा किया गया जहां एक बंदा मुझे बाहर बुला रहा था और मुस्कुरा रहा था। मैं उनके पास गया तो उन्होंने हंसते हुए हाथ मिलाया और कहा

वीरे अप्पा दोनों पंजाबी या, बच्चेया कोलो गलती हो गई, मैं उन्ना नू बहुत मारेया वा, मुझे तो इन्होंने बहुत तंग किया है, कल परसो कार में बंदूक लेकर किसी को मारने जा रहे ते… क्या रखा है लड़ाई में, केस कचहरी में? मेरे ऊपर भी बहुत से केस हैं।

मैं ये सुनता रहा लेकिन जवाब कुछ नहीं दिया और बच्चों को दवा देकर घर भेजा और खुद थाने में 2 बजे तक बैठा  रहा, तब जाकर FIR की कॉपी मिली एक महिला पुलिस की मदद से। अगली सुबह मैं फिर थाने गया तो पता चला कि केस सिसोदे साहब के पास है और वो नहीं आए हैं अभी। दो घंटे बाद वो आए और कहने लगे कि अरे यार वो पांच में 4 नाबालिग हैं और पांचवा कह रहा था कि वो बस समझा रहा था। मैं यह सब सुन कर सन्न रह गया। कैसे 22/24 साल के लड़कों को नाबालिग बना दिया गया।

दर्ज की गई FIR और बाईं ओर आरोपियों के नाम

मुझे फिर भी थोड़ा बहुत भरोसा था मैंने कहा कि सर एक लड़का नाबालिग है बाकी सब बड़े हैं आपको अरेस्ट करके पूछना तो चाहिए कि बाकी लड़के कहां हैं। बच्चों को पीटने वाले 8-9 लड़के थे और पुलिस वालों की ड्यूटी है इनक्वाइरी करने की, कम से कम ये तो बताएं कि इतनी सी बात पर क्या किसी को जान से मारने की कोशिश करनी चाहिए? तो IO साहब बोले कि रात में करेंगे अरेस्ट।

हम घर आ गए तो वो गुंडे हमारे घर के सामने ही खड़े थे। हम लोग घर के अंदर ऐसे दुबके हुए थे जैसे किसी जंगल में हों और उनके बुलेट मोटरसाइकल की आवाज़ रात भर आती रही, हमारे घर में अजीब सी डरावनी शांती थी। हमने किसी तरह रात काटी और सुबह ग्यारह बजे फिर पुलिस स्टेशन गएं तो IO साहब ने कहा वो नहीं मिल रहे हैं। तब मैंने कहा कि सर 48 घंटे हो गये आप कुछ नहीं कर रहे हैं और वो लोग किसी ना किसी से धमकी भेजवा रहे हैं कि कॉम्प्रोमाइज़ कर लो। इस बात पर IO साहब उखड़ गएं और मुझे धमकाने लगें कि अपना नाम बताओ और मेरे भाई का भी नाम लिख लिया। तब मेरे भाई ने कहा कि सर गुस्सा ना करें आरोपियों को पकड़ें। तब सिसोदे जी ने कहा कि हम कोशिश कर रहे हैं अगर आपको दिखें तो मुझे बताना।

हम घर आ गएं, मुझे लगा कि शायद मैंने गलत किया FIR करा कर, शायद मैं अपने बच्चों का भी कसूरवार हूं जिनको मैंने यह सिखाया कि यह डेमोक्रेसी है यहां सब एक समान है किसी से लड़ना कानून तोड़ना गलत है। शायद इसी वजह से उन्होंने उन गुंडों को नहीं मारा कानून पर भरोसा किया। और 3 दिन बाद जब मैं घर से निकला तो देखा वो लड़के सामने ग्राउंड में खड़े थे, मैं थाने की ओर दौड़कर गया सिसोदे साहब को बताने। वो वहां नहीं मिलें एक और बड़े साहब थे मैंने उनसे पूछा सर सिसोदे साहब कहां हैं? भाटिया साहब के लड़के ग्राउंड में खड़े हैं। तो वो भी मुझे धमकाने लगे कि तुम पुलिस को डिक्टेट करोगे? तुम बताओगे किसको पकड़े या किसको छोड़ें?

मैं समझ गया कि महाराष्ट्र कि पुलिस भी अन्य राज्यों की तरह ही है शायद लोग अलग हैं जो चुप हो जाते हैं झुक जाते हैं सिस्टम के आगे जैसे शायद मैं झुक जाउं कल या परसो या FIR वापस ले लूं।

(फोटो प्रतीकात्मक है)


एडिटर्स नोट- हमने मामले में पुलिस का पक्ष जानने के लिए पंचपावली थाना के इंस्पेक्टर नरेंद्र हिवाड़े को फोन किया तो तो उन्होंने हमारी ऑथेन्टिसिटी पर सवाल उठाते  हुए हमसे बात करने से इनकार कर दिया।

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