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“पीएम मोदी को रेणुका चौधरी से नहीं एक स्त्री के ठहाके से दिक्कत हुई”

UFA, RUSSIA - JULY 9: In this handout image supplied by Host Photo Agency / RIA Novosti, Prime Minister of the Republic of India Narendra Modi during a meeting with President of the Islamic Republic of Iran Hassan Rouhani during BRICS/SCO Summits - Russia 2015 on July 09, 2015 in Ufa, Russia. (Photo by Sergey Guneev/Host Photo Agency/Ria Novosti via Getty Images)

कल राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने लम्बे भाषण के एक हिस्से में आधार कार्ड का ‘बीज रहस्य’ खोल रहे थे। ठीक उसी वक्त उनके दाहिने तरफ की कुर्सियों से एक ठहाके की आवाज़ आई। यह ठहाका सदन की गरिमा के खयाल से निश्चित रूप से अशोभनीय था और इस ठहाके के लिए राज्यसभा के सभापति वेंकैय्या नायडू ने तुरंत कड़ी आपत्ति और नाराज़गी जताई।

ठीक उसी वक्त प्रधानमंत्री ने उन्हें टोकते हुए कहा, “सभापति जी रेणुका जी को कुछ मत कीजिये, रामायण सीरियल के बाद ऐसी हंसी सुनने का आज सौभाग्य मिला है।” इस टिप्पणी का साफ मतलब यह है कि रेणुका चौधरी के ठहाके की तुलना रामानंद सागर निर्देशित ‘रामायण’ के खल पात्रों के ठहाकों से की गई।

प्रधानममंत्री के ऐसा कहते ही उनके इर्द-गिर्द बैठे सत्ताधारी दल के बहुत सारे नेता एकसाथ डेस्क पीटते हुए ठहाके लगाने लगे। सामूहिक ठहाकों का यह दौर देर तक चला और ठहाके लगाने वाले नेता हंस-हंस कर लोटपोट हुए जा रहे थे। लेकिन इस पर किसी ने कोई आपत्ति जताई हो, कम से कम यह अब तक मेरी जानकारी में नहीं है।

इस बात को समझने की ज़रूरत है कि आखिर क्यों रेणुका चौधरी का ठहाका इतना नागवार गुज़रा जबकि सत्ताधारी दल के सदस्यों का सामूहिक अट्टहास अपत्तिजनक नहीं माना गया।

अफसोस होता है, लेकिन यह सच बार-बार उभरकर सामने आता है कि हमारे प्रधानमंत्री अपने विचार और व्यवहार में घोर पुरुषवादी हैं। वैसे पुरुषवादी मानिसकता अपवाद को छोड़कर हमारे पूरे समाज का कटु यथार्थ है। सदन ही नहीं, कहीं भी स्त्रियों का ठहाका लगाना अच्छा नहीं माना जाता। कल्पना करिए कि रेणुका चौधरी की बजाय यह ठहाका विपक्ष के किसी पुरुष सदस्य का होता, तो क्या प्रधानमंत्री की ऐसी ही प्रतिक्रिया होती?

मेरी ये दलीलें रेणुका चौधरी के ठहाके को उचित ठहराने के लिए नहीं हैं। यह उनकी जानबूझकर की गई गलती हो सकती है या हो सकता है कि न चाहते हुए भी वह किसी कारण से अपनी हंसी नहीं रोक पाई हों। लेकिन दोनों ही सदनों के इतिहास में बैठकों के दौरान ठहाके पहली बार लगे हों ऐसा नहीं है। यह ज़रूर है कि इन ठहाकों की ठेकेदारी अक्सर पुरुष सदस्यों की रही है, इसलिए इनका आपत्ति से परे होना कोई अचरज की बात नहीं है। यही कारण है कि रेणुका चौधरी प्रधानमंत्री की जिस टिप्पणी का शिकार हुईं, उस टिप्पणी ने प्रधानमंत्री की कुत्सित मानसिकता को ही एकबार फिर से बेनकाब किया है।

मेरे खयाल से सदन की गरिमा के प्रति निष्ठा दिखाते हुए रेणुका चौधरी को अपने बेवक्त ठहाके के लिए माफी मांग लेनी चाहिए। लेकिन इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि प्रधानमंत्री भी अपने पद की मर्यादा और सदन की गरिमा के प्रति निष्ठा दिखाते हुए, अपनी अनुचित टिप्पणी के लिए न सिर्फ रेणुका चौधरी से बल्कि इस देश की सभी स्त्रियों से माफी मांगे।उनकी टिप्पणी पर अट्टहास करने वाले सत्ताधारी दल के सभी नेता भी सामूहिक रूप से पूरे देश से क्षमायाचना करें।

स्त्रियों के लिए ठहाकों के वर्जित होने की धारणा पर बात चली है, तो प्रसंगवश सदन में कल हुई घटना के एक विशेष पहलू पर ध्यान देना ज़रूरी है।

जब प्रधानमंत्री के आस-पास बैठे सत्ताधारी दल के सभी पुरुष सदस्य ठहाके लगाकर लोटपोट हो रहे थे, ठीक उसी वक्त प्रधानमंत्री से दो बेंच पीछे बैठी साध्वी उमा भारती को कुछ खयाल आया और वह मुंह पर हाथ रखकर दबी हंसी हंसती रहीं। ऐसा करके दरअसल उमा भारती प्रधानमंत्री और हमारे समाज की पुरुषवादी मानसिकता की उस अपेक्षा पर ही खरा उतरने का प्रयास कर रही थी, जिसमें स्त्रियों का ठहाका लगाना वर्जित होता है।

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