जुलाई 2016 बुलंदशहर NH 91 पर दरिंदों ने मां-बेटी के साथ हैवानियत की सारी हदें पार कर दी थी। ना उस रात माँ अकेली थी और ना बेटी। पूरा परिवार साथ था, ना माँ ने कम कपड़े पहने थे, ना बेटी ने। जैसा कि कथित संस्कृति के रक्षक कपड़ों को दोष देकर हमेशा रेप के दोषियों की मूक सी पैरवी करते दिखते हैं।
उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में हुए इस गैंगरेप को लेकर देश में ज़बर्दस्त आक्रोश का माहौल बना था। लोगों में गुस्सा था, माँ बेटी के प्रति सहानुभूति रख न्याय की मांग थी। लोग दोषियों पर कड़ी कार्रवाई चाहते थे लेकिन एन वक्त पर कांग्रेस की सीनियर नेता रेणुका चौधरी ने अपने राजनीतिक अंदाज़ में कहा “रेप तो चलते ही रहते हैं।”
मुझे नहीं पता उनका यह कहने का क्या आशय था। इसके पीछे कौन सा दर्शन काम कर रहा था, ये सहानुभूति थी या आक्रोश? लेकिन उस समय एक सवाल ज़रूर उठा था कि कम से कम एक महिला होते हुए, देश के प्रतिष्ठित राजनीतिक दल से भी जुड़े होने के कारण, उनसे इस बयान की उम्मीद नहीं थी। पर उन्होंने बयान दिया और अपने बयान पर कायम रहीं…
बहरहाल इसके लगभग डेढ़ पौने दो साल बाद जब संसद में भारत के प्रधानमंत्री ने उनकी हंंसी की तुलना लाखों वर्ष पहले हुए किसी हंसी के कांड से की तो उसे इनकी गरिमा का अपमान बताया गया। इसे पूरे देश की नारी जाति के स्वाभिमान, अस्मिता से जोड़ा गया। लिखा गया भारत के प्रधानमंत्री महिलाओं की इज्ज़त करना नहीं जानते। मैं सोच रहा था कि प्रधानमंत्री किन महिलाओं की इज्ज़त करना नहीं जानते? उनकी जो खुद महिला होने के नाते रेप जैसे गंदे कृत्य पर दर्शन झाड़ रही थी?
हालांकि ये भारत है यहां अपनी बेटी को बेटी और दूसरे की बेटी को आइटम कहने में लोग देर नहीं लगाते। अपना सम्मान गरिमा से जुड़ा होता है लेकिन दूसरे के अपमान का विश्लेषण करने से नहीं चूकते। मैं यह नहीं कहता कि संसद में जो हुआ वो सही था। क्योंकि पद गरिमामय हो तो लोग शब्दों की अपेक्षा भी उसी लिहाज़ से करते हैं। पर राजनेता सोच समझकर कब बयान देते हैं ये ज़रूर विश्लेषण का विषय है। ये किसी नेता, व्यक्ति से जुड़ा मामला नहीं बल्कि सदन के पटल से जुड़ा मामला है।
जब मायावती के लिए अभद्र शब्दों का इस्तेमाल कोई दयाशंकर करता है तो भी इसी सदन और राजनीति की गरिमा गिरती है। इसके बाद जब कोई नसीमुद्दीन दयाशंकर की पत्नी बेटी के लिए गलत शब्दों का सहारा लेता है तब भी राजनीति की गरिमा गिरती है। जब राजनीति की गरिमा गिरती है वो किसी एक से जुड़ी नहीं होती तब पूरे देश की गरिमा तार-तार होती है।
रेणुका का अपमान राजनीतिक हो सकता है उससे राजनीतिक फायदा उठाया जा सकता है लेकिन रेप जैसे बुरे कृत्य से भला कोई मासूम या कमज़ोर नारी क्या फायदा उठा सकती है? रेणुका की हंसी वाले बयान के बाद जब शोर उठा तो मैंने एक दोस्त से इसकी चर्चा की तो उसने एकदम से पूछा, अरे यह वही रेणुका हैं क्या, जो बुलंदशहर घटना के बाद यह कह रहीं थी कि रेप तो चलते ही रहते हैं? मैंने कहा हां, उसने कुछ देर रुककर कहा यदि इनपर दिए प्रधानमंत्री जी के बयान से समस्त महिला जाति का अपमान हुआ है तो इनके बयान से कौन सा सम्मान बढ़ा था?