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हिजाब के खिलाफ ईरान की महिलाओं के विद्रोह को सलाम

पिछले दिनों जब हम पैडमैन के प्रचार के तरीकों पर यह सोच रहे थे कि यह मुद्दा है या फिल्म, उस समय ईरान की महिलाएं अपनी आज़ादी के लिए सार्वजनिक जगहों पर सड़क के किनारे यूटिलिटी बॉक्स पर चढ़कर अपने हिजाब को एक छड़ी से बांधकर झंडे के तरह लहरा रही थी। 19 महीने के बच्चे की माँ ‘विदा मुव्हैद’ समेत 29 महिलाओं को हिजाब विरोधी आंदोलन के अपराध में गिरफ्तार किया गया। ज़ाहिर है कि ये महिलाएं अपनी आज़ादी का इज़हार आंचल को परचम में बदलकर कर रही हैं।

दशकों पहले ईरान के शाह पहलवी ने हिजाब को प्रतिबंधित कर दिया था, पर ईरान में 1979 की क्रांति के बाद इस्लामिक कानून लागू किया गया, तब से ईरान की महिलाओं के लिए हिजाब अनिवार्य हो गया और यह देश में आने वाली विदेश महिलाओं पर भी लागू होता है।

इस्लामी नेताओं ने जब इस प्रथा की शुरूआत की तो इसका व्यापक विरोध हुआ था, विरोध विफल रहा और महिलाओं को सिर ढककर निकलने के लिए बाध्य होना पड़ा। आज भी यह कानून लागू है, बहुत सारी महिलाएं इससे नाखुश हैं तो बहुत सी महिलाएं हिजाब की समर्थक भी हैं और मानती है कि यह महिलाओं को कई मुसीबतों से बचाता है।

फोटो आभार: फेसबुक पेज My Stealthy Freedom

आज ईरान की जो महिलाएं भीड़ के बीच सड़क पर खड़ी होकर अचानक सिर से हिजाब हटा रही हैं, वो अचानक होने वाली प्रतिक्रिया नहीं है। यह ईरान की महिलाओं के अंदर का दबा-छुपा विद्रोह है जो आज से नहीं कई वर्षों से उनके अंदर जमा हुआ है। ईरान की ये युवतियां भीड़ में अपना स्कार्फ उछालकर अपनी निजी ज़िंदगी में निर्णय लेने की स्वतंत्रता की मांग कर रही हैं।

स्वतंत्रता की यह चाह इन युवतियों का सबसे बड़ा मानवाधिकार है। कुछ लोगों का यह तर्क है कि मात्र कपड़ों या परिधान के माध्यम से महिलाओं को कौन सा वास्तविक अधिकार और स्वतंत्रता प्राप्त हो सकती है। इन युवतियों को पश्चिमी दुनिया में झांक कर देखना चाहिए कि क्या वहां औरतों को वास्तविक अधिकार प्राप्त हो सका है या उनको नंगाकर मात्र उपभोग का वस्तु बना दिया गया है।

लेकिन रुकिए, कोई भी राय बनाने पहले यह समझना ज़रूरी है कि ईरान की महिलाएं यह कहने की कोशिश कर रही हैं कि यह शरीर हमारा है, इसे ढकने के लिए हम कैसी पोशाक पहनेंगे या नहीं पहनेंगे, यह फैसला हम स्वयं लेंगे, कोई और नहीं। उनका यह कहना नहीं है कि हिजाब महिलाओं के उचित नहीं है, वे हिजाब के अनिवार्य किए जाने का विरोध कर रही हैं। इस आंदोलन का कहना है कि वो कपड़े के एक टुकड़े के खिलाफ नहीं है, हम अपने सम्मान के लिए लड़ रहे हैं, हम खुद पर अपने मलिकाना हक के लिए लड़ रहे हैं।

महिलाओं के स्वतंत्र अधिकारों को अकसर धर्म या आधुनिकता का हवाला देकर मारा जाता है, जिस वजह से महिलाओं को अपने अस्तित्व को लेकर अधिक संघर्षरत होना पड़ता है। आमतौर पर महिलाओं को केवल घरेलू निर्णय लेने का अधिकार ही मिल पाता है और यह भी उसके खुद के अपने निर्णय नहीं होते, बल्कि पारिवारिक होते हैं।

2014 में ईरानी पत्रकार मसीह अलीनेजाद ने ईरान की महिलाओं को एक फोरम मुहैय्या कराने के लिए My Stealthy Freedom (मेरी गुप्त आज़ादी) नाम से एक फेसबुक पेज बनाया, जिसे 2 लाख 48 हज़ार लाइक्स मिले। चंद रोज़ में ही लाखों ईरानी महिलाओं ने बिना हिजाब की अपनी तस्वीर साझा की और हिजाब से मुक्ती की इच्छा ज़ाहिर की। इसे अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने स्कार्फ क्रांति का नाम दिया।

पिछले वर्ष मसीह अलीनेजाद ने एक और आंदोलन शुरू किया, जिसका नाम रखा “सफेद बुधवार”। इस बार उन्होंने महिलाओं को अनिवार्य रूप से सफेद रंग के हिजाब पहनने के कानून के खिलाफ एक आंदोलन खड़ा करने के लिए आमंत्रित किया।

27 दिसंबर को विदा मुव्हैद ने मसीह अलीनेजाद से प्रेरित होकर सफेद हिजाब लहराया था, जो धीरे-धीरे My Stealthy Freedom आंदोलन को तेज़ कर रहा है।

मौजूदा आंदोलन में महिलाओं कि बढ़ती भागीदारी को देखते हुए ईरान के राष्ट्रपति ने कहा, “ठीक ही तो है, तुम अपनी पसंद-नापसंद भावी पीढ़ी पर जबरन नहीं थोप सकते।” सरकार थोड़ी नरम पड़ रही है। लेकिन ईरान की महिलाओं को आसानी से अधिकार मिल जाएगा यह कहना कठिन है, क्योंकि इस्लामी कानून और महिलाओं की आज़ादी की बात ही एक दूसरे के परस्पर विपरीत है। महिलाओं की सम्पूर्ण स्वतंत्रता के अधिकार के रास्ते इतने सीधे नहीं है। परंतु, जिस साहस का परिचय ईरानी महिलाओं ने दिया है उससे प्रेरित होकर कई महिलाएं हिजाब खोल कर फेंक रही हैं, उस जज़्बे को सलाम किया जाना चाहिए।

मुस्लिम महिलाओं के लिए इस्लामी कानून में मानवीय पक्ष के आधार पर समता के लिए समाज को नए सिरे से गढ़ना होगा। महिलाओं की समानता और स्वतंत्रता के लिए तमाम लोकतांत्रिक देशों ने कई कानूनों को गढ़ा है, पर समाज के रगों में खून के तरह बहती हुई पूर्वाग्रही/सामंती मानसिकता अच्छे से अच्छे कानून के सामने उकड़ूं होकर बैठी रहती है।

राष्ट्र को धर्म से अलग रखकर सभ्य कानून की दिशा में पुरुषों और महिलाओं दोनों को एक साथ कदम उठाने होंगे, इस यकीन के साथ कि जहां चाह होती है रास्ते खुद बन जाते है। विदा मुव्हैद और मसीह अलीनेजाद के विचार बदलाव की दिशा में छोटे ही सही लेकिन महत्वपूर्ण कदम माने जाने चाहिए? ईरान की इन महिलाओं ने असरारूल हक मजाज़ (मजाज़ “लखनवी”) की नज़्म को पढ़ा हो या नहीं पर उस खयाल को ज़िंदा ज़रूर कर दिया है, जिसमें वो मुल्क की नौजवान महिलाओं से कहते हैं-

तेरे माथे पे ये आंचल बहुत ही खूब है लेकिन,
तू इस आंचल से एक परचम बना लेती तो अच्छा था।”

फीचर्ड फोटो आभार: फेसबुक पेज White Wednesdays

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