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बिहार में बाल विवाह के इन आकड़ों से हमें डरना चाहिए

भारत में कानूनी तौर पर लड़कियों के लिए शादी की उम्र 18 वर्ष तय की गई है। लेकिन बिहार में 18 वर्ष से कम उम्र में ही लड़कियों के विवाह का प्रतिशत तुलनात्मक रूप से काफी ज़्यादा रहा है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस -4, 2015-16) के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में 20-24 साल के आयु वर्ग की महिलाओं में 42.5% की शादी 18 साल से पहले ही कर दी जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह आंकड़ा 44.5 है जबकि शहरी क्षेत्रों में 29.1% है।

ज्ञात हो कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस -3, 2005-06) के अनुसार यह आंकड़ा पहले  69.00% था। सरल शब्दों में कहें तो उच्च माध्यमिक (इंटरमीडिएट) शिक्षा पूरी करने से पहले, हर 5 अल्पवयस्क में से 2 लड़कियों की शादी कर दी जाती है।

पुरुषों पर किए गए सर्वे के मुताबिक 25 से 29 साल के आयुवर्ग के पुरुषों में 21 वर्ष (पुरुषों के लिए विवाह की तय कनूनन आयु सीमा) से पहले जिनका विवाह हुआ उनका प्रतिशत 35.3 रहा है। यह आंकड़ा ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 38.0% जबकि शहरी क्षेत्रों के लिए 21.9% रहा है। इसके पहले के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस -3, 2005-06) में यह आंकड़ा उच्चतम 43.0% था।

तुलनात्मक विश्लेषण में लगातार दो राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षणों (एनएफएचएस-3, 2005-06 और एनएफएचएस -4, 2015-16) द्वारा दर्ज किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि राज्य में 18 साल के कम उम्र की महिलाओं के शादी के मामलों में 20% से भी ज़्यादा की गिरावट आई है, जो कि सकारात्मक है। एक और गंभीर चिंता की बात जो इस सर्वेक्षण से सामने आई, वह 15-19 वर्ष आयुवर्ग की महिलाओं में से 18.6% का पहले से ही माँ होना या गर्भवती होना थी।

भारत के सभी राज्यों में किए गए ज़िला स्तर के घरेलू सर्वेक्षण आंकड़ों (डीएलएचएस -4, 2015-16) के अनुसार, बिहार के सुपौल ज़िले में बाल विवाह का दर उच्चतम रही है। सुपौल में बाल विवाह का आंकड़ा 60.8% का रहा है, जो शर्मनाक कुरीति और घातक प्रवृति के रूप में जाना जाएगा। इसी क्रम में जमुई ज़िला दूसरे नंबर पर है जहां बाल विवाह की दर 60.2% है। तीसरे नंबर पर 58.6% के साथ मधेपुरा और 57.9% के साथ चौथे नंबर पर बेगुसराय का नंबर आता है।

बिहार के अन्य ज़िलों में महिला बाल विवाह के आंकड़े:

अररिया 48.9, अरवल 41.5, औरंगाबाद 34.2, बांका 48.0, भागलपुर 29.9, भोजपुर 34.9 बक्सर 37.5, दरभंगा 44.3 गोपालगंज 30.8 जहानाबाद 42.2 कैमूर 37.7 कटिहार 39.2 खगड़िया 50.4 किशनगंज 25.7 लखीसराय 48.7 मधुबनी 42.7 मुंगेर 36.9 मुजफ्फरपुर 44.6 नालंदा 53.1 नवादा 53.1 पश्चिम चंपारण 44.0 पटना 29.1 पूर्वी चंपारण 44.1 पूर्णिया 39.0 रोहतास 38.3 सहरसा 42.7 समस्तीपुर 52.3 सारण 29.6 शेखपुरा 50.8 शिवहर 40.9 सीतामढ़ी 37.6 सिवान 24.7 वैशाली 47.8 (सभी आंकड़े प्रतिशत में)।

हालांकि, बिहार की लड़कियों के लिए इस साल बालिका दिवस को और अधिक सकारात्मक रूप में मनाने का एक बड़ा कारण होगा, क्योंकि राज्य सरकार ने 2 अक्टूबर 2017 से बाल विवाह और दहेज प्रथा के खिलाफ एक राज्यव्यापी अभियान शुरू करने की घोषणा की थी। इस अभियान को सार्थक बनाने के लिए रविवार 21 जनवरी 2018 को विशाल जनसमूह को मानव शृंखला के रूप में फैलाकर समाज को जागरूक करने का काम राज्य सरकार द्वारा किया गया था। आपको बता दें कि यह मानव शृंखला बहुत ही विवादास्पद रही थी, जिसमें उच्च न्यायालय तक को हस्तक्षेप करना पड़ा था।

सामाजिक स्तर पर, बाल विवाह के खिलाफ सरकार के इस राज्यव्यापी अभियान का स्वागत करते हुए कहा जाएगा कि यह एक सकारात्मक कदम है, क्योंकि सरकार ने वास्तव में राज्य में बाल विवाह की स्थिति की गंभीरता को ध्यान में रखा है।

शादी के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार होने और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण है। जनगणना- 2011 के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में 13 लाख से अधिक लड़कियां हैं जो 10 से 19 साल की आयु के बीच शादी कर रही हैं और इनमें से 3.8 लाख लड़कियां किशोरावस्था में ही माँ बन चुकी हैं। किशोरावस्था पूरी करने से पहले ही 3.8 लाख अल्पव्यस्क माताओं में से 1.4 लाख को 2 या उससे भी अधिक बच्चे थे। उनकी शिक्षा की जानकारी का एक संक्षिप्त विश्लेषण करने पर, स्कूल तक उनकी पहुंच का अभाव इसका एक बड़ा कारण नज़र आता है। अक्सर माध्यमिक (हाईस्कूल) और उच्चतर माध्यमिक (इंटरमीडिएट) स्तर पर लड़कियों की आगे की पढ़ाई छूट जाती है या फिर पारिवारिक कारणों से छुड़ा दी जाती है।

इस समस्या का हल राज्य सरकार द्वारा सभी ज़िलों के हर ब्लॉक में लड़कियों के लिए आवासीय स्कूलों की स्थापना किया जाना हो सकता है। इस अभियान के तहत महिलाओं की एजेंसी को विकसित करने और उसे मजबूत बनाने और सभी प्रकार के लाभ, अधिकार, निर्णय लेने की पहुंच महिलाओं तक सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।

केवल बाल विवाह को कम करने के लिए ही नहीं बल्कि लड़कियों और बच्चों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए भी यह अतिआवश्यक है।

अगामी 11 अक्टूबर यानि अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस (International Day of the Girl Child) का दिन उनके जीवन मूल्य और शक्ति दोनों को पहचानने और बाधाओं को फिर से देखने के लिए एक वैश्विक अवसर है। सिविल सोसाइटी संगठनों, सरकारों और निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिए यह एक प्राथमिकता हो कि वह महिला सशक्तिकरण से जुड़ने के लिए प्रभावी ढंग से सहयोग करें। जब आप लड़कियों के स्कूल में बने रहने के बारे में सोच सकते हैं तो बालविवाह और अवांछित गर्भावस्था जैसे मुद्दों से अलग क्यों हो जाते हैं?

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