Site icon Youth Ki Awaaz

मज़हब से परे सुमित चौहान और अज़रा परवीन के मुहब्बत की कहानी

अंकित सक्सेना की निर्मम हत्या सिर्फ एक युवक की हत्या नहीं है बल्कि हर उस प्रेमी को एक धमकी है जो जाति और धर्म की बेड़ियां तोड़कर प्यार भरी दुनिया बसाना चाहता है।

झूठी शान के नाम पर हत्याएं बाकी नौजवान लड़के-लड़कियों को खुलेआम बताती हैं कि इस गुस्ताखी का अंजाम क्या होगा। प्यार की इतनी बड़ी सज़ा सिर्फ दो प्रेमियों को नहीं मिलती बल्कि ये उनके लिए भी सबक होता है जिनके दिल में इश्क की कोपलें फूट रही होती हैं।

मैंने और अज़रा ने जब शादी का फैसला लिया था तो हमारे मन भी ऐसी ही तमाम उलझने और डर था। मैं हरियाणा के एक गांव का रहने वाला और अज़रा चावड़ी बाज़ार (दिल्ली) की गलियों में पली बढ़ी। हमने ऐसी कई अधूरी कहानियों को देखा था जो पूरी नहीं हो सकी।

मैं और मेरी बहन एक ही क्लास में पढ़े हैं तो हमारे ज़्यादातर दोस्त भी कॉमन ही हैं। पिछले दिनों हम ऐसे ही अपने उन दोस्तों के नाम याद करने लगे जो बचपन में साथ थे। कुछ नामों का ज़िक्र आते ही आंखें नम हो गई, क्योंकि वो झूठी शान का शिकार हुए थे। खैर हम लोग खुशकिस्मत हैं जो इस वक्त लैपटॉप पर ये सब टाइप कर पा रहे हैं। आइये आपको हमारी लव स्टोरी के बारे में बताते हैं।

मैं (सुमित चौहान) और अज़रा परवीन 2010 में कॉलेज के फर्स्ट इयर में मिले थे। एक ही क्लास थी और दोस्ती अच्छी थी इसलिए साथ रहने लगे और धीरे-धीरे हमारी दोस्ती प्यार में बदलने लगी। 5 साल की रिलेशनशिप के बाद रिश्ता आगे बढ़ाने का फ़ैसला लिया लेकिन धर्म दीवार बनकर खड़ा हो गया। मेरा नास्तिक होना या अज़रा का अल्लाह की इबादत करना हमारे लिए कोई समस्या नहीं थी, लेकिन कुछ लोगों के लिए हमारा मज़हब हमारे प्यार से ज़्यादा मायने रखता था।

ऐसे धर्माधिकारी किसी के रिश्ते की खूबसूरती नहीं देख सकते। खैर किसी और के कुछ भी सोचने से फर्क नहीं पड़ता, फर्क पड़ता है तो अपने परिवार के सोचने और बोलने से और परिवार को मनाना लोहे के चने चबाने जैसा ही है। हां मेरे हिस्से के चने कुछ नर्म थे जिन्हें मैं जल्द ही हज़म कर पाया, लेकिन अज़रा के हिस्से असली लोहे के चने ही आए। घर वालों को खूब मनाने की कोशिश की लेकिन वो नहीं माने। हालात बिगड़ते देख हमने फैसला किया कि पहले शादी कर लेते हैं, फिर घर वालों को बताएंगे।

22 जून 2016 को हम दोनों ने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी कर ली, यानी हम दोनों में से किसी ने भी अपना धर्म नहीं बदला। मेरा परिवार मान गया लेकिन अज़रा का परिवार नहीं माना तो अज़रा ने घर छोड़ दिया। उसके घरवाले अब भी हमसे नाराज़ है। तमाम मुश्किलों के बावजूद हम हमेशा एक दूसरे के साथ खड़े रहते हैं और अपने शादीशुदा जीवन को खूब एंजॉय करते हैं। शादी को डेढ़ साल हो गया, अब लगता है कि हमने वक्त रहते सही फैसला लिया।

हमारा प्यार भी अंकित और शहज़ादी जैसा ही मासूम था, हम खुशकिस्मत हैं जो बच गए, लेकिन अंकित नहीं बच पाया। अंकित की हत्या हमारे या हमारे जैसे किसी भी कपल के दिल में डर पैदा करती है।

कभी झूठी शान के नाम पर तो कभी लव ज़िहाद के नाम पर मासूम मुहब्बत को कुचलने की साज़िश होती रहती है। लोग राधा-कृष्ण की पूजा तो करते हैं, लेकिन किसी कपल को साथ देख लें तो जाने क्या-क्या उल्टी-सीधी बातें करने लगते हैं। जिस प्रेम की संस्कृति पर गर्व होना चाहिए, उसे ही कलंकित करते रहते हैं। झूठी शान के नाम पर अपने ही बच्चों की हत्याएं करना और फिर खुद ज़िंदगी भर तक जेल में सड़ते रहने में पता नहीं लोगों को क्या मिल जाता है।

कितना अच्छा होता अगर अंकित और शहज़ादी की शादी हो जाती और दोनों के परिवार सर्दियों में आग तापते हुए मुंगफली खा रहे होते। लेकिन देखिए कैसे शहज़ादी के घरवालों ने पूरा परिवार बर्बाद कर लिया। इस वेलेंटाइन्स डे हम यही उम्मीद करते हैं कि नफरत के खिलाफ मुहब्बत की जीत हो और कभी किसी की मुहब्बत को अंकित जैसा अंजाम ना भुगतना पड़े।

Exit mobile version