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दरियागंज का संडे बुक मार्केट एक सांस्कृतिक उत्सव था जिसे बंद किया जा रहा है

पिछले तीन संडे से यह मार्केट बंद है। पहले कहा जा रहा था कि गणतंत्र दिवस के बाद फिर से यह मार्केट लगने लगेगा पर ऐसा नहीं हुआ। हर संडे को पुस्तक प्रेमियों से भरा रहने वाला यह मार्केट लगातर पिछले कुछ संडे से बंद पड़ा है। बात हो रही है दिल्ली के दरियागंज संडे बुक मार्केट की। दरियागंज में प्रत्येक संडे को लगने वाला पुस्तक मेला या यूं कह लीजिए कि बुक मार्केट अपने आप में एक सांस्कृतिक उत्सव जैसा रहा है जो पिछले पचास वर्षों से भी अधिक समय से चलता आ रहा था।

प्रोफेसर शिव विश्वनाथन कहते हैं “यह मार्केट ऐसा मार्केट है जहां रेयर से रेयर किताबें आराम से मिल जाया करती हैं, जो अलग-अलग लाइब्रेरी तक में नहीं ढूंढी जा सकती।”

मुझे याद है जब मैं पहली बार दरियागंज बुक मार्केट, संडे को सुबह-सुबह पहुंच गया था, भीड़भाड़ तो थी पर उतनी ही लापरवाही से डिलाइट सिनेमा हॉल से लेकर जामा-मस्जिद तक किताबें बिखरी पड़ी थी। एक से एक किताबें, हर कैटेगरी की। शायद इसलिए भी यहां हर तरह के लोग आते थे। जिन किताबों को बाहर ढूंढना तक मुश्किल होता है, वे किताबें यहां थोड़ी मशक्कत के बाद सस्ते रेट पर मिल जाया करती थी।

‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ जिसका अंकित मूल्य लगभग 700 रुपये है, उसे मैंने यहां से 90 रुपये में खरीदा था। इसी तरह कई महंगी किताबें मुझे यहां सस्ते मिली। इंजीनियरिंग और मेडिकल की महंगी-महंगी किताबों को भी यहां सस्ते दर पर प्राप्त किया जा सकता था।

दूसरी ओर, यह बुक मार्केट अन्य कई मामलों में भी खास थी। मसलन कई दफे आप पुस्तक खरीदने ही नहीं जाते, तरह-तरह की पुस्तकों को देखते हुए पुस्तकों से आपकी पहचान भी बढ़ती है और फिर आपको पता चलता है कि हां, ये बुक ले लेनी चाहिए।

इसी तरह दरियागंज में घूमते हुए कई ऐसी पुस्तकें भी मिल जाती थी जिन पर लेखक का ऑटोग्राफ होता, या किसी का पर्सनल मैसेज लिखा होता था, जिन्होंने किसी को वह किताब गिफ्ट की होगी कभी। और कई बार तो किताबों को उलटते-पलटते किसी का लेटर भी मिल जाता। तो इस तरह यहां दरियागंज बुक मार्केट में घूमते हुए कई दिलचस्प वाकयों से सामना भी होता।

गणतंत्र दिवस के ठीक बाद वाले संडे को यानी पिछले संडे को सुबह-सुबह मैं दरियागंज बुक मार्केट के लिए निकला पर यहां आकर पता चला कि आज भी यह मार्केट बंद है। यह लगातार चौथा संडे है जब यह मार्केट बंद पड़ा है।

हिंदुस्तान टाइम्स में लिखे अपने एक लेख में रामचंद्र गुहा लिखते हैं कि इस मार्केट को 90 के दशक में भी एक बार बंद कर दिया गया था पर तब के प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव जी तक बात पहुंचने के बाद उनके हस्तक्षेप से यह मार्केट फिर से खोल दिया गया।

दरियागंज में घूमते हुए, लोगों से बातचीत करने पर पता चलता है कि गणतंत्र दिवस के कारण इस मार्केट को बंद कर दिया गया। तो कुछ लोग ये भी कहते हैं कि संडे को इतनी भीड़ हो जाया करती थी कि आना-जाना तक मुश्किल हो जाता था और फिर इस पर म्यूनिसिपैलिटी वालों को हुई कंप्लेन के कारण इस मार्केट को बंद किया गया। और भी कई तरह की बातें लोग कहते हैं, जितने मुंह उतनी बातें। परंतु इस मार्केट का बंद होना महज़ पुस्तक प्रेमियों के लिए ही नहीं बल्कि वो सभी लोगों जो यहां पुरानी पुस्तकों का कारोबार करते थे, उनके लिए भी नुकसानदेह है।

एक तो, जिस लोकेशन पर यह मार्केट थी वहां घूमते हुए पांव नहीं थकते थे। कब डिलाइट सिनेमा से किताबों को देखते हुए नेताजी सुभाष मार्ग से जामा-मस्जिद पहुंच जाते, पता ही नहीं चलता। और फिर जामा-मस्जिद में बैठकर कुछ देर सुस्ताना। तो सब मिलाकर दरियागंज संडे मार्केट एक उत्सव जैसा था। एक ऐसा उत्सव जो मात्र मनोरंजन तक सीमित नहीं था।

अब इस मार्केट को बंद कर दिया गया है और जैसे कि गुहा कहते हैं कि आवाज़ उठाने से 90 के दशक में इस मार्केट को फिर से शुरू करवाया गया। तो इसी क्रम में इस बार बारी हम सब की है कि हम आवाज़ उठाएं। ना जाने कितने प्रसिद्ध लोगों से लेकर हम सभी की यादें इस मार्केट से जुड़ी हुई हैं। इसलिए हम सबको आगे आना होगा ताकि इस सांस्कृतिक उत्सव को फिर से बरकरार किया जा सके।

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