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भगत सिंह के बारे में झूठ फैलाकर युवाओं को बड़गलाने वालों से सावधान

आज 23 मार्च का दिन पूरे भारत में भगत सिंह की शहादत को बहुत ही जोश से मनाया जायेगा। 23 मार्च, 1931 के दिन ही भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने हंसते हुए और गीत गाते हुए फांसी को गले लगाया था। भगत सिंह ने एक सपना देखा था, वो सपना जो एक ऐसे आज़ाद भारत का था जो गरीबी और शोषणमुक्त हो। एक ऐसा भारत जो फासीवाद का मुहतोड़ जवाब दे, जहां समाजवाद और बराबरी हो।उन्होंने कहा था “दुनिया में सबसे बड़ा पाप गरीब होना है। गरीबी एक अभिशाप है, यह एक दंड है।”

पिछले कुछ दिनों में भगत सिंह के सपनो के भारत में ऐसी कई घटनाए हुई हैं जो शायद इस महान शहीद के सपनो के विपरीत है। साथ ही जिस तरह से भगत सिंह के नाम का दुरुपयोग कर के लोकतांत्रिक और सामाजिक मूल्यों को एक विकृत रूप प्रदान करने का प्रयास किया गया है, वह निंदनीय है।

अगर हम केवल 14 फरवरी के दिन का ही उदाहरण ले तो देखते हैं किस प्रकार से सोशल मीडिया, व्हाटसएप पर यह गलत खबर फैलाई गई की 14 फरवरी 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गयी थी। जो की सरासर गलत खबर थी। खबर के पीछे का मकसद एक हिन्दू कट्टर विचारधारा को फैलाना था, जिन्हें शायद सभ्यता और संस्कृति के नाम पर शहीदों की अस्मिता के साथ छेड़-छाड़ करने में ज़रा भी शर्म नहीं आई।

इतना ही नहीं जब त्रिपुरा में लेनिन की मूर्ति को गिराया गया तब भी कुछ मीडिया चैनल द्वारा यह कहा गया की भगत सिंह को लेनिन के बारे में कुछ पता नहीं था. जबकि सच्चाई यह है की अपनी फांसी से ठीक पहले भगत सिंह लेनिन की किताब “रिवॉल्युशनरी लेनिन” को पढ़ रहे थे। इस बात में कोई दो राय नहीं है के भगत सिंह समाजवादी विचारधारा से प्रभावित थे और साथ ही उनका सपना केवल अंग्रेज़ों से भारत की आज़ादी का नहीं बल्कि हर तरह के शोषण से आज़ादी का था। देश के नाम उनके आखरी शब्द थे “सिर्फ़ दो संदेश… साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और ‘इंक़लाब ज़िदाबाद!”

आज जब कट्टर और अतिवादी हिन्दू विचारधारा के लोग भगत सिंह की शहादत को अपनी राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल करेंगे तो शायद यह सबसे बड़ा तिरस्कार होगा उनकी शहादत का।

जिस नौजवान क्रान्तिकारी को अपने नास्तिक होने पर जीवन के आखिरी पल तक गर्व था उनका इस्तेमाल आज खुलेआम बेरोज़गार युवाओं को इतिहास की गलत व्याख्या कर के राजनीतिक फायदा उठाने  के लिए किया जा रहा है।

यदि आप भगत सिंह के लेख ‘मै नास्तिक क्यों हूँ’ को पढ़ लें, तो आप शायद इस धर्म और कट्टरता के भ्रम से बहार आ सकते हैं। उन्होंने ना केवल हिंदुत्व/ हिन्दू धर्म को सवालों के कटघरे में खड़ा किया है बल्कि इस्लाम और इसाई धर्म पर भी सवाल उठाये हैं। अपने समय में अपने समय से काफी आगे की सोच रखने वाले भगत सिंह ने जाति के प्रश्न पर भी कुठाराघात किया है, उनके शब्दों में

तुम क्या सोचते हो, किसी गरीब या अनपढ़, जैसे एक चमार या मेहतर के यहां पैदा होने पर इन्सान का क्या भाग्य होगा? चूंकि वह गरीब है, इसलिए पढ़ाई नहीं कर सकता,वह अपने साथियों से तिरस्कृत एवं परित्यक्त रहता है, जो ऊंची जाति में पैदा होने के कारण खुद को ऊंचा समझते हैं।”

मनुस्मृती और वेदों-पुराणों को भी उन्होंने सिरे से खारिज कर दिया है। उनके शब्दों में “धर्म, उपदेशकों तथा सत्ता के स्वामियों के गठबंधन से ही जेल, फांसी, कोड़े और यह सिद्धांत उपजते हैं।”

आज देश के युवा एक ओर शिक्षा और रोज़गार के सवालों को लेकर सड़कों पर आन्दोलन कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर युवाओं का एक हिस्सा धार्मिक कट्टरता के मद में चूर हो चुका है। सवाल बस इतना है कि आप कैसा भारत चाहते हैं? भगत सिंह के सपनों का भारत या जाति और धर्म के नाम पर सदियों से चलते आ रहे शोषण का पिछलग्गू भारत?

याद रखिये भगत सिंह एक क्रान्तिकारी थे जिन्होंने युवाओं के लिए एक ऐसी विचारधारा छोड़ी है जिसका मूल प्रश्न करना है, तर्क करना है और रुढ़िवादी परंपरा का नाश करना है।

आज देश के सभी युवाओं को केवल भगत सिंह के नाम से एकजुट किया जा सकता है, लेकिन इसमें भी सावधानी बरतने की ज़रूरत है क्योंकि जिस तरह से इतिहास की गलत व्याख्या कर के तथ्यों के साथ छेड़-छाड़ की गई है, उसपर एक गंभीर चर्चा की ज़रूरत है। आज के दौर में जब धार्मिक कट्टरता और राजनीति एक दूसरे का पर्याय बन चुके हैं, इस समय भगत सिंह को पढ़ना और समझना बहुत ही ज़रूरी हो गया है। साथ ही इस बात को याद दिलाने की ज़रूरत है कि भगत सिंह की देशभक्ति उस समय के हुक्मरानों के लिए देशद्रोह था। आशा करता हूं की केवल जोश और उन्माद में भगत सिंह को याद नहीं किया जायेगा बल्कि उनके विचारों को अपनाया जायेगा।

इंक़लाब ज़िंदाबाद!!!

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